चित्रकार गोगी सरोज पाल के निधन से कला जगत में शोक
-1962-67 में कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ से पेंटिंग में डिप्लोमा किया था
लखनऊ। बचपन से एक चित्रकार बनने का सपना के साथ सफर की शुरूआत करते हुए कला के संसार में एक महत्त्वपूर्ण योगदान देते हुए जीवन का एक लंबा सफर तय करते हुए अपनी शर्तों पर जीने वाली देश की महत्त्वपूर्ण महिला चित्रकार गोगी सरोज पाल का आकस्मिक निधन शनिवार को दोपहर में नई दिल्ली में हो गया, वह 79 वर्ष की थीं। इस समाचार से कला जगत में एक शोक की लहर फैल गयी। सोशल मीडिया के जरिये लोगों ने उनसे जुड़े हुए स्मृतियों और अपने अपने भाव के साथ उन्हे श्रद्धांजलि दे रहे हैं। कला जगत में उनके निधन से अपूर्णीय क्षति हुई है। चित्रकार गोगी सरोज पाल अपने कृतियों के माध्यम से चिरकाल तक जीवित रहेंगी।
प्रख्यात भारतीय चित्रकार गोगी सरोज पाल गोगी सरोज पाल का जन्म 3 अक्टूबर 1945 को नियोली, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने कला के कई माध्यम में काम किया। उनकी कृतियों में आम तौर पर महिलाएं ही विषयवस्तु रही हैं, और उनकी कई पेंटिंगों में एक काल्पनिक तत्व होता है जो अभी भी महिला स्थिति पर टिप्पणी करता है। उनके शुरूआती काम अधिक यथार्थवादी थे, लेकिन समय के साथ वह सरल, अधिक शैलीबद्ध चित्रों की ओर बढ़ गईं, जिनका काफी प्रभाव है। गोगी सरोज पाल ने 1961-1962 तक राजस्थान के वनस्थली में कला महाविद्यालय में अध्ययन किया जिसके बाद उन्होंने 1962-67 में भारत के उत्तर प्रदेश के लखनऊ में स्थित महत्त्वपूर्ण कला महाविद्यालय कॉलेज आॅफ आर्ट से चित्रकला में डिप्लोमा प्राप्त किया। उन्होंने 1968 में दिल्ली के कला महाविद्यालय से चित्रकला में स्नातकोत्तर की उपाधि भी प्राप्त की। इन वर्षों में उन्होंने लगभग 30 एकल शो किए। और ललित कला अकादमी से राष्ट्रीय पुरस्कार सहित कई पुरस्कार भी मिले। उन्होंने भारत और विदेशों में बड़ी संख्या में ग्रुप शो में भी भाग लिया था।
लखनऊ से चित्रकार व क्यूरेटर भूपेन्द्र अस्थाना ने बताया कि चित्रकार पाल से मुलाकात 2015 में जयपुर आर्ट समिट के दौरान मुलाकात हुई थी। उस दौरान उनसे काफी बातचीत भी हुई थी। ललित कला अकादमी के समकालीन पत्रिका के संपादक सुमन कुमार सिंह ने कहा कि समकालीन कला में स्त्री की भावनाओं और आकाँक्षाओं को सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान करने वाले कलाकारों में अग्रणी कही जाने वाली गोगी सरोज पाल का निधन एक अपूरणीय क्षति है।
उनकी कला में दिखता है नारी संवेदना का विस्तार
लखनऊ से वरिष्ठ मूर्तिकार पाण्डेय राजीवनयन ने कहा कि गोगी सरोज पाल देश की एक महत्वपूर्ण कलाकार थी। उनकी कृतियों में विशेष रूप से नारी रूपाकारों के माध्यम से विशेष संवेदना का विस्तार देखने को मिलता है। गोगी देश की प्रमुख महिला चित्रकार के साथ साथ भारतीय समकालीन कला के क्षेत्र अपनी विशिष्ट शैली एवं अभिव्यक्त के स्तर अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती थी। लखनऊ में शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत उन्होंने दिल्ली को अपना कर्म क्षेत्र बनाया। समकालीन कला आंदोलन में उनकी कृतियां युवा कलाकारों के लिए सदैव प्रेरणा श्रोत रहेंगी।
बेबाक किस्म की छात्रा रहीं सरोज पाल : अखिलेश निगम
लखनऊ से ही वरिष्ठ चित्रकार, कला समीक्षक/ इतिहासकार, कला शिक्षाविद् अखिलेश निगम ने अपने शब्दों में कहा कि सरोज पाल को उनके अध्ययन काल से देखा है। वे एक बेबाक किस्म की छात्रा रहीं हैं। अपने सहपाठियों और गुरुओं दोनों के सम्मुख अपनी बात रखने और उस पर तर्क करने की उनकी आदत की शुरूआत लखनऊ आर्ट्स कालेज से ही पड़ी। यहीं ग्राफिक विभाग में प्रवक्ता रहे जय कृष्ण अग्रवाल जी की वे विवाहिता बनीं पर यह संबंध ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाया। गोगी की शुरूआत ग्राफिक्स से ही हुई थी। वे एक प्रयोगधर्मी कलाकार रहीं। जय जी संबंध विच्छेद होंने के बाद वे दिल्ली चलीं गयीं, और कला के प्रति समर्पित हो गयीं। यहीं वे वेद नायर जी के संपर्क में आयीं,और फिर उनकी परिणीता बन बैठीं। ग्राफिक्स,चित्र, इंस्टालेशन आदि विभिन्न माध्यमों में उन्होंने काम किया,और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की। एक महिला होकर भी जिस संघर्ष से उन्होंने समकालीन भारतीय कला में अपना स्थान बनाया वह काबिले तारीफ है। उनका जाना कला जगत के लिए एक अपूर्णीय क्षति है परंतु उनका कला-कर्म सदैव उन्हें जीवित रखेगा।
आधुनिक कला के क्षेत्र में गोगी का योगदान अतुलनीय : संजीव किशोर गौतम
नेशनल गैलरी आॅफ मॉडर्न आर्ट नई दिल्ली के डायरेक्टर जनरल संजीव किशोर गौतम ने कहा कि गोगी सरोज पाल के आकस्मिक देहावसान की सूचना स्तंभित करने के साथ साथ अंत:करण को गहन शोकाकुल करने वाली है। आपकी गणना आधुनिक नारीवादी महिला चित्रकारों में सर्वोपरि स्थान पर की जाती रही है। आधुनिक कला के क्षेत्र में गोगी का योगदान अतुलनीय एवं अविस्मरणीय है। उनके जीवन का प्रारंभिक काल उत्तर प्रदेश एवं लखनऊ से संबंध रहा है आप न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि देश की महिला कलाकारों में प्रतिष्ठित स्थान रखती थी। जयपुर आर्ट समिट के संस्थापक शैलेंद्र भट्ट ने कहा कि मैंने अपनी माँ के बाद यदि किसी स्त्री को, विचारों से अधिक मजबूत देखा है, तो वो और कोई नहीं गोगी सरोज पाल जी हैं। इनके सृजन का मुख्य अलंकरण इनके चुनिंदा रंगों में रंगा बोलता हुआ कैनवास है।
उनकी भावाभिव्यक्ति सरल और सहज थी : शहंशाह हुसैन
लखनऊ से कला समीक्षक शहंशाह हुसैन ने कहा कि गोगी सरोज पाल का विमर्श स्त्रैयोचित था। अपने चित्रण में स्त्री मन की अंतर्वेदना का उनका अभिव्यक्ती करण जहाँ एक ओर यथार्थवादी था तो वहीं दूसरी ओर दार्शनिकता के समावेशी भावों से भी ओतप्रोत था। यथार्थवादी और दार्शनिक पृष्ठभूमि के बावजूद उनकी भावाभिव्यक्ति सरल और सहज थी जो दर्शक चेतना पर सीधा और सटीक प्रहार करती थी। गोगी सरोज पाल की कला शिक्षा चूंकि लखनऊ कालेज आॅफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट में हुई थी इसलिए वे हम सबके मनोभावों और हृदय के नैसर्गिक रूप से निकट थी। हमने एक विदुषी महिला कलाकार को खोया है जिसका हम सभी को हार्दिक दुख है।