नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को गैर सरकारी संगठन जकात फाउंडेशन से पूछा कि क्या वह सुदर्शन टीवी मामले में हस्तक्षेप करना चाहता है, क्योंकि इसमें उसकी भारतीय शाखा पर विदेश से आतंकवाद से जुड़े संगठनों से वित्तीय मदद मिलने का आरोप लगाया गया है। बता दें कि जकात फाउंडेशन प्रशासनिक सेवा में शामिल होने के इच्छुक मुस्लिम उम्मीदवारों को प्रशिक्षण मुहैया कराता है।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ के समक्ष जकात फाउंडेशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगडे ने कहा कि सुदर्शन टीवी द्वारा दाखिल हलफनामे में उनके मुवक्किल पर विदेश से चंदा लेने का आरोप लगाया गया है। हेगड़े ने कहा कि उनका मुवक्किल एक धर्मार्थ संगठन है जो गैर मुस्लिमों की भी मदद कर रहा है और इस तरह की समाज सेवा सरकारी स्तर पर भी नहीं जानी जाती।
पीठ ने हेगड़े से कहा कि टीवी चैनल की ओर से विदेश से मिले चंदे के संबंध में विदेशी चंदा नियमन कानून (एफसीआरए) के दस्तावेज जमा किए गए है और यह उसके मुवक्किल पर निर्भर है कि वह मामले में हस्तक्षेप करना चाहता है या नहीं। हेगड़े ने कहा कि जकात फांडेशन कोई आवसीय कार्यक्रम संचालित नहीं करता है और केवल आईएसएस कोचिंग के लिए शुल्क का भुगतान करता है।
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत सुदर्शन चैनल के कार्यक्रम बिंदास बोल के खिलाफ शिकायत पर सुनवाई कर रही है। कार्यक्रम के प्रोमो में दावा किया गया है कि वह प्रशासनिक सेवा में मुस्लिमों की घुसपैठ की साजिश का बड़ा खुलासा करेगा। वहीं, प्रधान संपादक के जरिए दाखिल हलफनामे में सुदर्शन टीवी ने कहा, जवाब देने वाले प्रतिवादी (सुरेश चव्हाणके) ने यूपीएससी जिहाद शब्द का इस्तेमाल किया है क्योंकि विभिन्न स्रोतों से जानकारी मिली कि जकात फांउडेशन को आतंकवाद से संबंध रखने वाले विभिन्न संगठनों से धन मिला।
चैनल ने अपने जवाब में कहा, ऐसा नहीं है कि जकात फांउडेशन को मिले सभी चंदों का संबंध आतंकवाद से है। हालांकि, कुछ चंदा ऐसे संगठनों से मिला है या ऐसे संगठनों से प्राप्त हुआ है जो चरमपंथी समूहों का वित्तपोषण करते हैं। जकात फाउंडेशन को मिले धन का इस्तेमाल आईएएस, आईपीएस या यूपीएससी आकांक्षियों की मदद के लिए किया जाता है।
चैनल ने अपने हलफनामे में आगे कहा कि विभिन्न स्रोतों से प्रकाश में आया कि बदनाम संगठनों द्वारा मिले चंदे का इस्तेमाल यूपीएससी में शामिल होने के इच्छुक लोगों की मदद में किया जा रहा है, यह गंभीर मामला है और इसपर सार्वजनिक बहस, चर्चा और समीक्षा किए जाने की जरूरत है। अपने 91 पन्नों के हलफनामे में चव्हाणके ने कहा, अबतक प्रसारित चार एपिसेाड में कहीं कोई बयान या संदेश नहीं था कि एक समुदाय विशेष के लोगों को यूपीएससी में शामिल नहीं होना चाहिए।