पीजीआई में पोषण माह पर जागरूकता कार्यक्रम
वरिष्ठ संवाददाता लखनऊ। कई लोगों को रोटी, पराठा, पूड़ी खाने से पेट में दर्द होता है। गैस बनती है। अक्सर यह समस्या अक्सर बनती रहती है तो यह सीलिएक रोग के लक्षण हो सकते हैं। दरअसल सीलिएक रोग में गेंहू से एलर्जी होती है।
यह जानकारी बुधवार को संजय गांधी पीजीआई में आयोहित राष्ट्रीय पोषण माह के अवसर पर विशेषज्ञों ने दी। इस मौके पर ने बताया कि पाीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के प्रो एल के भारती बताया कि सीलिएक बीमारी में शरीर गेहूं में मौजूद ग्लूटेन प्रोटीन के प्रति एलर्जिक हो जाता है। जिन लोगों को यह बीमारी होती है, उनका पाचन तंत्र गेहूं के आटे से बने किसी भी खाद्य को पचा नहीं पाता। नतीजतन यह खाना उनके लिए जहर बन जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस बीमारी से ग्रसित अधिकांश लोगों को इस बीमारी के बारे में उम्र भर पता ही नहीं चल पाता।
ऐसे लोग पेट दर्द, उल्टी और इससे जुड़ी दूसरी बीमारियों का इलाज कराते रहते हैं। अगर समय रहते बीमारी की पहचान कर ग्लूटेन फ्री डाइट ना ली जाए तो आंतों का कैंसर तक हो सकता है। इसके अलावा हार्ट अटैक, आर्टरी डिजीज और दूसरी कार्डियोवस्कुलर डिजीज का खतरा रहता है। कार्यक्रम में मौजूद संस्थान के निदेशक प्रो. आर के धीमन ने कहा कि ग्लूटेन एलर्जी दूर करने का दुनिया में कोई भी इलाज नहीं है। ना ही इसकी कोई दवा मौजूद है। इलाज के तौर पर सिर्फ डाइट कंट्रोल की जाती है।
गेहूं के अलावा जौ और ज्वार में भी ग्लूटेन होता है, इसलिए जौ और ज्वार नहीं खाने की सलाह भी दी जाती है। कभी-कभी सीलिएक होने पर अगर डाइट कंट्रोल नहीं की गई है, तो दूध इंटॉलरेंस यानी दूध पचाने की ताकत भी खत्म हो जाती है, इसलिए सही समय पर इसका पता चलना जरूरी है। जिन्हें ग्लूटेन से एलर्जी है, उन्हें गेहूं के अलावा प्रोटीन की चीजें जैसे दूध, दूध से बने उत्पाद, अंडे, सारे मांसाहारी उत्पादों को अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए। खाने में मक्के की रोटी दी जा सकती है। कार्यक्रम के दौरान प्रो एल के भारती व डायटीशियन नीलू द्वारा सीलिएक बीमारी पर लिखित पुस्तिका का विमोचन भी किया गया।
क्या है सीलिएक बीमारी
सीलिएक रोग होने पर गेहूं में मौजूद प्रोटीन ग्लूटेन के विरुद्ध शरीर में एंटीबॉडीज बनती हैं। ये एंटीबॉडीज कई बार कुछ लोगों में आंतों में ग्लूटेन पचाने वाले तत्वों को डैमेज करने लगती हैं। जिससे वह व्यक्ति गेहूं और इससे बनी किसी भी चीजों को नहीं पचा पाता। आमतौर पर बच्चों में छह माह की उम्र के बाद इस बीमारी के लक्षण दिखते हैं। यह बीमारी अधिकांश मामलों में जेनेटिक है, लेकिन कुछ मामलों में परिवार में किसी सदस्य को हुए बिना भी यह हो सकती है।