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विपत्ति काल में भी धैर्य रखें

मनुष्य को विपत्ति के समय भी संयम नहीं खोना चाहिए। क्योंकि धैर्य वह दवा है जो लाखों समस्याओं का प्रभावी समाधान तलाश लेती है। अनेक व्यक्ति आपत्तियों से इतने भयभीत रहते हैं कि वे तरह-तरह की सच्ची और झूठी आपत्तियों की कल्पना करके अपने जीवन को चिंता ग्रस्त बना लेते हैं।

यदि विचारपूर्वक देखा जाये तो भूतकाल की गुजरी हुई घटनाओं और भविष्यकाल की भली-बुरी संभावनाओं के लिए व्याकुल होना निरर्थक है पर ये व्यक्ति प्राय: वर्तमान का ख्याल छोड़कर पुरानी घटनाओं का ही रोना रोया करते हैं अथवा भविष्यकाल में आने वाली संभावित कठिनाइयों की कल्पना करके डरते रहते हैं। वे दोनों ही प्रवृत्तियां बुद्धिहीनता और डरपोकपन की परिचायक हैं।

पुरानी या नई, कैसे भी आपत्तियों के कारण चिंता करना सब तरह से हानिकारक है। इसमें हमारी बहुत ही शक्ति व्यथ ही नष्ट हो जाती है और हम अपने सम्मुख उपस्थित वास्तविक समस्याओं का हल करने में भी पूरी तरह से असमर्थ हो जाते हैं।
चिंता, मन में केन्द्रीयभूत नाना दुखद स्मृतियां तथा भावी भय की आशंका से उत्पन्न मानव मात्र का सर्वनाश करने वाला, उसकी मानसिक,शारीरिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों का ह्रास करने वाला दुष्ट मनोविकार है। एक बार मानसिक व्याधि के रोगी बन जाते से मनुष्य बड़ी ही कठिनता से इससे पूरी तरह से मुक्ति पा सके हैं। क्योंकि अधिक देर तक रहने के कारण यह गुप्त मन में एक जटिल मानसिक भावना के रूप में प्रस्तुत रहता है। वही हमारी शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं को परिचालित करता है।

आदत बन जाने से, चिंता नैराश्य का रूप ग्रहण कर लेती है। ऐसा व्यक्ति निराशावादी हो उठता है। उसका सम्पूर्ण जीवन नीरस, निरुत्साह और असफलताओं से परिपूर्ण हो उठता है। चिंता का प्रभाव संक्रामक रोग की भांति विषैला है। जब हम चिन्तित व्यक्ति के सम्पर्क में रहते हैं, तो हम भी निराशा के तत्व खींचते हैं और अपना जीवन निरुत्साह से परिपूर्ण कर लेते हैं। बहुत से व्यक्ति कहा करते हैं कि भाई अब हम थक गये हैं, बेकाम हो गये हैं। अब परमात्मा हमें संभल ले तो अच्छा।

ऐसे लोग प्राय: इसी रोने को रोते रहते हैं कि हम बड़े अभागे हैं, बदनसीब हैं, हमारा भाग्य फूट गया है, दैव हमारे प्रतिकूल हैं, हम दीन हैं, गरीब हैं पूरी तरह से असहाय हो गये हैं आदि आदि। हमने सर तोड़ परिश्रम किया किन्तु भाग्य ने साथ नहीं दिया। ऐसी चिंता करने वाले व्यक्ति यह नहीं जानते कि इस तरह का रोना रोने से हम अपने हाथ से अपने भाग्य को फोड़ते हैं, उन्नति रूपी कौमुदी को काले बादलों से ढंक लेते हैं और संभावनाओं को क्षींण करते हैं।

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