सभी भारतीयों का एक है डीएनए : भागवत

गाजियाबाद। अक्सर चुनावी मुद्दा बनने वाला डीएनए फिर चर्चा में है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने गाजियाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान डीएनए को लेकर बयान दिया। संघ प्रमुख ने कहा कि सभी भारतीयों का डीएनए एक है, भले ही वे किसी भी धर्म के क्यों न हों। उन्होंने कहा कि हिंदू-मुस्लिम एकता की बातें भी भ्रामक हैं, क्योंकि ये दोनों अलग नहीं, बल्कि एक हैं। लोगों के बीच पूजा पद्धति के आधार पर अंतर नहीं किया जा सकता है। उन्होंने मॉब लिंचिंग करने वालों के बारे में कहा कि ऐसे लोग हिंदुत्व के खिलाफ हैं। भागवत ने कहा कि ये सिद्ध हो चुका है कि हम पिछले 40 हजार साल से एक पूर्वजों के वंशज हैं। इसमें एकजुट होने जैसी कोई बात नहीं है, सभी लोग पहले से ही एक साथ हैं। भागवत का यह बयान ऐसे वक्त आया है जब यूपी से लगातार जबरन धर्मांतरण की खबरें आ रहीं हैं। योगी सरकार ने भी धर्मांतरण को लेकर सख्ती शुरू कर दी है। यूपी में मुस्लिम वोटर कई सीटों पर हार-जीत तय करते हैं। सरकार बनाने में उनका अहम रोल होता है। चुनाव के पहले भागवत का यह बयान इस ओर भी इशारा करता है कि बीजेपी प्रदेश में मुसलमानों को साथ लेकर चलेगी। 2015 में मुजफ्फरपुर में एक रैली में पीएम मोदी ने इशारों में नीतीश कुमार का जिक्र कर कहा था कि शायद उनके डीएनए में ही गड़बड़ है। 2016 में मध्य प्रदेश के बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा ने राहुल गांधी के बारे में विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि राहुल आतंकवादी हैं। उनका डीएनए टेस्ट होना चाहिए।
पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने डीएनए की बात कर राहुल गांधी के बारे में कहा था कि मुस्लिम बाप और विदेशी ईसाई मां का बेटा ब्राह्मण कैसे हो सकता है? संघ प्रमुख ने गाजियाबाद में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के सलाहकार रहे डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार की किताब ‘वैचारिक समन्वय-एक व्यावहारिक पहल’ रिलीज की। इस किताब में अयोध्या-बाबरी विवाद पर बड़ा खुलासा किया गया है। डॉ. ख्वाजा ने लिखा है कि अगर नेता और बुद्धिजीवी सही तरीके से इस पर बातचीत करते तो ये विवाद पहले ही शांत हो गया होता। उन्होंने लिखा है कि अगर बातचीत से इसका समाधान निकलता तो मुसलमानों को बहुत कुछ मिल सकता था। डॉ. इफ्तिखार अयोध्या के राम मंदिर विवाद में बनाई गई अटल हिमायत कमेटी के अहम सदस्य रहे हैं।

क्या-क्या है किताब में ?

किताब में पिछले 100 साल (1920-2020) के अंदर देश में हुई घटनाओं का जिक्र किया गया है।
किताब में राम जन्मभूमि विवाद का भी किस्सा है। बताया गया है कि कैसे देश के मुस्लिमों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को स्वीकारा।
राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव के उस वक्त लिए गए फैसलों का उदाहरण दिया गया है।
डॉ. इफ्तिखार ने अपनी किताब में फरर को वैचारिक संगठन बताया है। लिखा है कि इसका प्रभाव काफी बड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ भी की गई है। एक पैराग्राफ में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का जिक्र करते हुए बताया गया है कि अटव को कट्टरवादी लोग निशाना बनाते रहे हैं, लेकिन इसकी स्थापना के 100 साल पूरे होने पर आॅनलाइन कार्यक्रम में ढट नरेंद्र मोदी ने शिरकत करके उन्हें करारा जवाब दिया है।

विमोचन से पहले देश के 500 लोगों तक पहुंची पुस्तक

पहले यह किताब दिल्ली के विज्ञान भवन में रिलीज होनी थी। कोरोना की वजह से यह कार्यक्रम टल गया। फिर इसके लिए गाजियाबाद को चुना गया। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के बैनर तले होने वाले इस कार्यक्रम में सिर्फ 30-40 लोग ही मौजूद रहे। हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में लिखी गई यह किताब रिलीस से पहले देशभर के 500 धर्मगुरुओं, शिक्षाविदों और मुस्लिम समाज के प्रभावी लोगों तक पहुंच गई है। फरर के मुताबिक, यह पुस्तक मुस्लिम समाज के हर प्रभावी व्यक्ति तक पहुंचाने की कोशिश होगी।

इंद्रेश बोले- समस्या समाधान को टकराव नहीं, संवाद जरूरी

मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के प्रमुख इंद्रेश कुमार ने इस किताब के बारे में अपने फेसबुक पेज पर लिखा- ‘अनेक वर्षों से कट्टरपंथी व राजनीतिक द्वेष वाले नेताओं ने मुसलमानों को यह समझाया है कि फरर-इखढ उनके दुश्मन हैं, लेकिन ऐसा नहीं है’। यह पुस्तक इस बात का आह्वान करेगी कि फरर-इखढ से नफरत नहीं, संवाद करेंगे। फसाद नहीं, भाईचारा लाएंगे। इंद्रेश कुमार ने यह भी कहा कि समस्याओं के समाधान के लिए भयानक आलोचना और टकराव नहीं, बल्कि सौहार्दपूर्ण संवाद जरूरी है।

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