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ऐतिहासिक फैसला

संसद ने मुस्लिम महिलाओं के विवाह अधिकारों का संरक्षण करने वाले कानून को मंजूरी देकर शाहबानो मामले में 1986 में की गयी गलती का न सिर्फ तार्किक पश्चाताप किया, बल्कि महिलाओं के अधिकारों के साथ खड़े होकर अधिकांश पार्टियों ने दलगत हितों के बजाय महिलाओं के अधिकारों को प्राथमिकता दी। बेहतर होता कि तीसरी बार जब लोकसभा से पास होकर तीन तलाक बिल राज्यसभा में आया था, तो इसको सभी दल मिलकर ध्वनि मत से पास करते। अगस्त 2017 में जब सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अवैध करार देते हुए इसको रोकने के लिए संसद से कानून बनाने के लिए कहा था, दरअसल तीन तलाक की इस कुप्रथा को खत्म करने की शुरूआत तभी से हो गयी थी। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अवैध करार दिया और संसद ने कानून बनाकर अपराध घोषित कर दिया। अब कोई व्यक्ति तीन तलाक देता है तो उसको तीन साल तक की सजा और जुर्माना या फिर दोनों हो सकता है। तीन तलाक बिल पास होने और राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद यह इसी साल 21 फरवरी को जारी अध्यादेश का स्थान लेगा।

 

तीन तलाक बिल मुस्लिम महिलाओं के विवाह अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में ऐतिहासिक पहल तो साबित होगा ही, लेकिन साथ ही इससे महिलाओं के सशक्तीकरण में भी मदद मिलेगी। यह कानून महिला सम्मान,  महिला अधिकारिता और समानता से जुड़ा था और जब संसद ने इसको मंजूरी दे दी है तो इससे निश्चय ही महिला सशक्तीकरण को नयी दिशा मिलेगी। ठीक उसी तरह से जैसे बाल विवाह, सती प्रथा और दहेज प्रथा के खिलाफ कानून बनने से महिलाओं की सामाजिक  दशा में क्रांतिकारी सुधार देखने को मिला। लोकहित के मुद्दे पर कानून बनने से इसका सामाजिक के साथ राजनीतिक असर भी भविष्य में देखने को मिल सकता है।

 

कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के साथ ही उसे देश को आजाद कराने का श्रेय जाता है। बेहतर होता की कांग्रेस महिलाओं की व्यापक आजादी से जुड़े इस कानून को पास कराने में न सिर्फ सरकार का साथ देती, बल्कि मार्गदर्शन भी करती। कांग्रेस इस मुद्दे से सामाजिक सहभागिता हासिल कर व्यापक सहमति के साथ सामाजिक सुधार से जुड़े इस मुद्दे को आगे बढ़ाकर अपनी छवि सुधार सकती थी। लेकिन बेहतरीन मौके को कांग्रेस ने हाथ से जाने दिया। तीन तलाक बिल पर सरकार का फ्लोर प्रबंधन भी गजब का रहा। एनडीए के घटक दल जो वोटों की गुणा-गणित में तीन तलाक बिल का समर्थन नहीं कर रहे थे, उनको भी विरोध में खड़ा नहीं होने दिया। जेडीयू, एआईएडीएमके , बीएसपी, पीडीपी, टीआरएस, टीडीपी जैसे दलों को सदन का बॉयकॉट करने के लिए राजी कर परोक्ष समर्थन जुटा लिया। कई दलों के बहिष्कार से सदन की प्रभावी संख्या घट गयी और इस तरह तीन तलाक विल 84 के मुकाबले 99 मतों से पास हो गया। विधेयक के विरोध में खड़ी पार्टियों ने अड़ंगा लगाने की आखिरी कोशिश में सेलेक्ट कमेटी में भेजने का प्रयास किया लेकिन सरकार के प्रबंधन के सामने एक न चली। इस तरह सबसे विवादित, महत्वपूर्ण और भाजपा की सर्वोच्च प्राथमिकता वाला यह बिल भी पास हो गया और विपक्षी एकता भी तार-तार हो गयी।

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