विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी आज, भक्त करेंगे बप्पा की पूजा

अपने जीवन की बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करते हैं
लखनऊ। हर साल भक्तों के बीच गणेश जी की भक्ति का विशेष पर्व विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भगवान गणेश को समर्पित है, जिन्हें विघ्नहर्ता और सुख-समृद्धि का दाता माना जाता है। इस दिन भक्त सच्चे मन से गणपति की पूजा-अर्चना करते हैं और अपने जीवन की बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करते हैं। साल 2025 में विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का पर्व 10 सितंबर को मनाया जाएगा।

विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह पर्व 10 सितंबर 2025, बुधवार को होगा। इन शुभ मुहूर्तों में पूजा करने से भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त होती है। खासकर चंद्रोदय के समय चंद्र दर्शन और अर्घ्य देना इस व्रत का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 10 सितंबर 2025, दोपहर 3:37 बजे
चतुर्थी तिथि समापन: 11 सितंबर 2025, दोपहर 12:45 बजे
चंद्रोदय समय: रात 8:06 बजे

पूजा का शुभ मुहूर्त
सुबह: 6:04 बजे से 7:37 बजे तक
दोपहर: 12:19 बजे से 1:47 बजे तक
शाम: 4:58 बजे से 6:32 बजे तक
रात्रि: 9:28 बजे से 1:45 बजे तक

विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का महत्व
विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का पर्व भगवान गणेश को समर्पित है, जिन्हें सभी बाधाओं को दूर करने वाला और प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। ‘संकष्टी’ शब्द का अर्थ है संकटों को हरने वाली चतुर्थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत और पूजा करने से भक्तों को संतान सुख, अच्छा स्वास्थ्य, आर्थिक समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह पर्व विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जो अपने जीवन में किसी भी प्रकार की बाधा या कठिनाई का सामना कर रहे हैं। इस दिन भगवान गणेश के साथ चंद्र देव की पूजा का भी विशेष विधान है। माना जाता है कि चंद्र दर्शन और अर्घ्य देने से मानसिक तनाव कम होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह पर्व गणेश उत्सव के बाद पहला बड़ा व्रत होता है, जिसे भक्त विशेष भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाते हैं।

पूजन विधि: कैसे करें गणपति की पूजा
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर और पूजा स्थल को अच्छी तरह साफ करें। पूजा स्थल पर गंगाजल का छिड़काव करें। एक लकड़ी की चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं। चौकी पर भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। साथ ही, यदि संभव हो तो माता सकट की छोटी मूर्ति भी रखें। पूजा शुरू करने से पहले जल, अक्षत और फूल लेकर व्रत और पूजा का संकल्प लें। गणेश जी को घी का दीपक जलाएं और सिंदूर का तिलक लगाएं। गणेश जी को पुष्प, दूर्वा, बेलपत्र और 21 मोदक या लड्डू अर्पित करें। ‘ॐ गं गणपतये नम:’ मंत्र का 108 बार जाप करें। इसके अलावा, गणेश चालीसा और गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। पंचामृत- दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर का मिश्रण से गणेश जी का अभिषेक करें। चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य दें। चंद्रमा को दूध और जल का मिश्रण अर्पित करें। संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा पढ़ें या सुनें। यह कथा भगवान गणेश की महिमा और भक्तों पर उनकी कृपा को दशार्ती है। अंत में गणेश जी की आरती करें और प्रसाद वितरित करें। व्रत का पारण चंद्र दर्शन के बाद या अगले दिन सुबह करें। व्रत के दौरान फलाहार या सात्विक भोजन ग्रहण करें और नमक से परहेज करें।

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