इस समय पाकिस्तानी मीडिया और उसके प्रधानमंत्री इमरान खान की पूरी निगाहें ट्रंप की यात्रा पर है। उन्हें लगता है, कश्मीर पर एक शब्द भी यदि डोनाल्ड ट्रंप निकालते हैं तो वह पाकिस्तान की कूटनीतिक सफलता होगी। मगर, मोटेरा स्टेडियम से पाकिस्तान को अतिवाद के सफाये में सहयोग की जो नसीहत ट्रंप ने दी है, उससे इस्लामाबाद में निराशा जरूर दिखनी है। इमरान खान की तकलीफ शदीद होने की दूसरी वजह भारत-अमेरिका सैन्य सहयोग है। संडे को इमरान खान ‘कश्मीर महिला प्रतिरोध दिवस’ मना रहे थे। यह सब उपक्रम इसलिए हो रहा था, ताकि प्रेसिडेंट ट्रंप का ध्यान किसी न किसी बहाने कश्मीर पर केंद्रित कराया जा सके।
क्या प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप भारत आने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जो पाकिस्तान नहीं जाकर सीधा भारत पधार रहे हैं? 72 घंटे के टीवी शो में ऐसी ही जानकारी, मोदी समर्थक विश्लेषक और भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता परोस रहे थे। इस कूटनीति की क्रेडिट भी प्रधानमंत्री मोदी को दी जा रही है कि उनकी वजह से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान का रुख नहीं कर रहे हैं। हर बात पर ‘पहली बार वाला गुब्बारा फुलाते समय विश्लेषक ट्रंप के पूववर्ती प्रेसिडेंट ओबामा की भारत यात्रा को नजरअंदाज कर जाते हैं, जब वे 6 से 9 नवंबर 2010 को मुंबई और दिल्ली आये थे। ओबामा भारत आये और वापस सीधा वाशिंगटन ही लौटे थे। दक्षिण एशिया के किसी देश में उस समय अमेरिकी प्रेसिडेंट ओबामा नहीं गये थे।
बराक ओबामा जब दूसरी बार 25 से 27 जून 2015 को भारत आये, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें 26 जनवरी के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनाया था। तब भी ओबामा वापसी में पाकिस्तान क्या, किसी और देश नहीं गये थे। बराक ओबामा की यादें अब इतिहास के पन्नों में कहीं लुप्त सी है। पीएम मोदी ने अपने हम प्याला-हम निवाला बराक का नाम शायद ही ट्रंप के शासन काल में कहीं लिया हो। खुदा न ख्वास्ता डेमोक्रे ट प्रत्याशी बर्नी सैंडर्स 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में निर्वाचित हो गये, तो क्या पीएम मोदी, ट्रंप को वैसे ही बिसार देंगे, जैसे ओबामा के साथ हुआ था? जो सबसे अधिक ज्वलंत सवाल है, वह यह कि ‘अबकी बार ट्रंप सरकार के नारों से लबरेज जो कूटनीति पीएम मोदी कर रहे हैं, डेमोक्रेट के जीतने के बाद उसका साइड इफेक्ट क्या भारत-अमेरिका संबंधों पर नहीं पड़ना है? इस चिंताओं को हम विमर्श के दायरे से बाहर नहीं कर सकते।
बहरहाल भारत-अमेरिका संबंधों को हमें चार अलग-अलग फलकों में बांटकर देखना चाहिए। पहला, विश्व राजनीति में भारत को अमेरिका किस रूप में मजबूती देता है? दूसरा, हमारे उभयपक्षीय संबंध व्यापार और सुरक्षा कितने सुदृढ़ होते हैं? तीसरा, पाकिस्तान के संदर्भ में अमेरिका को कैसे भारत के पाले में रखना है? और चौथा, चीन को काउंटर करने के वास्ते अमेरिका कैसे भारत का सहयोगी बनेगा? ट्रंप ने अपने कार्यकाल में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता वाले सवाल को हाशिये पर ही रखा है। मगर, जी-20 जैसे फोरम पर भारत की अहमियत को बनाये रखा है। इंडो-पैसेफिक में भारत की भूमिका ट्रंप का एक बड़ा कूटनीतिक कार्ड रहा है, इससे हम इंकार नहीं कर सकते। 29 फरवरी 2020 को तालिबान से समझौते पर अंतिम मुहर के बाद अमेरिकी-नाटो फौज की वापसी आरंभ हो जाएगी।
अमेरिका चाह रहा है कि भारत अपनी भूमिका का विस्तार अफगानिस्तान में करे और वाशिंगटन की आंख-नाक-कान बने। अमेरिका इस इलाके में भारत से इंटेलीजेंस शेयरिंग चाहता है। मगर, यह सब भी जोखिम भरा है। यह ठीक है कि भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण तक अपनी भूमिका को सीमित कर रखा है, बावजूद इसके काबुल स्थित भारतीय दूतावास बराबर अतिवादियों के निशाने पर रहा है। उसकी वजह पाकिस्तान समर्थक अफगान आतंकी हैं। चाबहार बंदरगाह से मध्य एशिया तक पहुंचने का जो मार्ग हम तैयार कर रहे हैं, वह अफगानिस्तान में शांति के बिना अधूरा सा है।
तालिबान की वापसी के बाद, नई परिस्थितियां और चुनौतीपूर्ण होंगी, इसे नकारा नहीं जा सकता। बराक ओबामा से पहले, पांच अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आये थे। सबसे पहले आइजनहावर 7 से 9 दिसंबर 1959 को अफगानिस्तान, पाकिस्तान के दौरे के बाद 9 से 14 दिसंबर 1959 को नई दिल्ली और आगरा पधारे थे। यह किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की पहली भारत यात्रा थी। प्रेसिडेंट जॉनसन 23 दिसंबर 1967 को करांची अपने समकक्ष अयूब खान से मिलने गये। मगर, उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में भारत का रू ख नहीं किया।
उनके बाद, रिचर्ड निक्सन अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति थे, जो 31 जुलाई से 1 अगस्त 1969 को नई दिल्ली और 1 से 2 अगस्त 1969 को लाहौर पधारे थे। तीसरे अतिथि जिम्मी कार्टर 1 से 3 जनवरी 1978 को भारत आये, तब प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई और राष्टÑपति नीलम संजीव रेड्डी की मौजूदगी में उन्होंने साझा संसद को संबोधित किया था। जिम्मी कार्टर ने अपने पूरे कार्यकाल पाकिस्तान का रुख नहीं किया था। चौथे प्रेसिडेंट बिल क्लिंटन ने 19 से 25 मार्च 2000 की दक्षिण एशिया यात्रा में बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत की यात्रा की थी। पांचवें राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश 1 से 4 मार्च 2006 की यात्रा में अफगानिस्तान, भारत और पाकिस्तान की यात्रा पर आये।
आइजन हावर से लेकर ओबामा तक अमेरिका के जो पांच राष्ट्रपति भारत आये, उनमें से दो जिम्मी कार्टर और बराक ओबामा ने पाकिस्तान का रू ख नहीं किया था। तो यह कहना कि प्रेसिडेंट ट्रंप पहले राष्ट्रपति हैं, जो इस यात्रा में पाकिस्तान नहीं गये और यह मोदी कूटनीति की सबसे बड़ी सफलता है, अतिश्योक्तिपूर्ण है। इसे पाठक स्वयं तय करें कि इस तरह का बयान कितना हास्यास्पद हो जाता है। बहरहाल अहमदाबाद में नमस्ते ट्रम्प कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति ट्रम्प ने जो कुछ कहा उसमें भारत-अमरीका संबंधों की भावी झलक साफ दिखायी देती है। दोनों देश अब यह स्वीकार कर रहे हैं भविष्य में विश्व शांति, स्थिरता, विकास के लिए दोनों देशों के बीच हर क्षेत्र में मजबूत कूटनीतिक, आर्थिक और सामरिक संबंध आवश्यक हैं।