माधव में दिखा श्री कृष्ण का सम्पूर्ण जीवन

आशुतोष द्विवेदी द्वारा लिखा लिखे गए इस नाटक माधव का 9वीं प्रस्तुति हुई लखनऊ में

  • एक ही मंच और एक समय पर चार महिला कलाकारों ने निभाए लगभग 40 किरदार
    लखनऊ। भारत के मथुरा में एक बालक का जन्म होता है, जो एक महत्वपूर्ण उद्देश्य बस होता है। उद्देश्य की पूर्णता के पाश्चात वह अपने धाम वापस होते हैं। हालांकि इस धरा पर हर व्यक्ति का जन्म एक उद्देश्य बस ही होता है। लेकिन जो अपने उद्देश्य से भटकते नहीं है वह ही कृष्ण है। कृष्ण को मानव जाति में आध्यात्मिक और लौकिक भाग्य को नया आकार देने के लिए नियत किया गया था। अपने सम्पूर्ण जीवन में श्री कृष्ण ने मानव जाति की सामूहिक चेतना पर एक अमिट छाप छोड़ी ।
    अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में नाट्य ग्रुप सम्पूर्णम और मुंबई कारवां के सहयोग से उत्तर प्रदेश लखनऊ की सबसे पुरानी नाट्य संस्था दर्पण द्वारा दो दिवसीय नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन संगीत नाटक अकादमी में नाटक माधव का मंचन किया गया।
    नाटक माधव के बारे में बताएं तो मथुरा के निरंकुश शासक कंस के वध के उपरांत, उसके श्वसुर जरासंध के आक्रमणों से त्रस्त मथुरा को हरसंभव बचाने का प्रयास करते माधव व्यावहारिक निर्णय लेते हैं सौराष्ट्र जाकर नई नगरी द्वारका बसाने का।
    बचपन की स्मृतियां उन्हें गोकुल वृंदावन की गलियों, वनों में ले जाया करती थी। जहां मधुर स्मृतियों के साथ ही बुनी हुई है,कंस के द्वारा हत्या के अनेक प्रयासों की और उन्हें विफल करने की यादें। प्रथम शाश्वत पारलौकिक प्रेम की परिणिति राधा! गोप, गोपियों के साथ किया महारास। विप्लव और क्रांति का उन्मेष गोवर्धन पूजन। जहां उनने जन विरोधी राजा को खुली चुनौती दी।
    कंस के कूटनीतिक आमंत्रण पर जाकर उस का वध करना और मथुरा को पूर्ववत गणतंत्र बनाते हुए खुद का संदीपनी से शिक्षा प्राप्त करना। द्वारका में रहते हुए मुरलीधर से चक्रधर बने माधव ने अपने फुफेरे भाइयों पांडवों को उनका पैतृक राज्य दिलाने में सहायता की, और पांडवों की मदद से अपने प्रबल शत्रु जरासंध का नाश किया। पांडवों के कौरवों द्वारा छले जाने पर, पांडवों के साथ चट्टान की तरह खड़े रहे और निर्णायक युद्ध महाभारत में धर्म की स्थापना करते हुए पांडवों को विजय दिलाई!
    बहुत ही बारीकी से तैयार किए गए इस नाटक में चार महिला कलाकारों द्वारा कई किरदारों के चित्रण के माध्यम से इसका सार निहित है, जिसमें मयूरभंज, छाउ, मणिपुर मार्शल आर्ट, थांगता और कलरीपट्टू,जात्रा,कैबुल की प्राचीन भारतीय मार्शल आर्ट जैसी स्वदेशी लोक कलाओं का समावेश है। नाटक में 4 महिलाओं ने एक ही मंच पर एक ही समय में लगभग 40 किरदार निभाती हैं। नाटक में कृष्ण को बचपन की यादें अक्सर उन्हें गोकुल और वृंदावन की गलियों और जंगलों में वापस ले जाती थीं। नाटक में दिखाया गया कि कृष्ण ने किस तरह जनवादी सत्ता की स्थापना की। वे निरंकुश राजाओं से सत्ता लेकर उनके योग्य पुत्रों को सौंप देते थे।
    नाटक के अंत में संदेश वाहिका माधव के देहावसान का संदेश राधा को देने जाती है, किंतु राधा तो पहले ही स्वर्गवासी हो चुकी थीं। स्थानीय लोग लोक विश्वास के आधार पर राधा की छवि का यमुनातट पर अक्सर देखा जाना बताते हैं। संदेश वाहिका को वहां राधा और कृष्ण एक ही छवि में नजर आते हैं, जो उनके आध्यात्मिक एकाकार होने का दयस्पर्शी संदेश देते हैं। राधा कहती हैं कि राधा कृष्ण को कोई अलग अलग नहीं कर सकता है वह सदैव एक रहेंगे। इस भाव को बड़े ही सुंदर तरीके से लाइट और संगीत के माध्यम से दिखाया गया है। कहानी में यह भी दिखाया गया कि हम कृष्ण को तो मानते हैं लेकिन कृष्ण की नहीं मानते। पूजते तो हैं लेकिन उन्हें समझते नहीं। नाटक में संगीत प्रसिद्ध संगीतकार एआर रहमान का दिया हुआ है। और सुंदर गीतों को आवाज हंसिका अय्यर ने दी है। कृष्ण बांसुरी से चक्र की ओर कैसे मुड़ते हैं कि माधव बांसुरी बजाने वाले ‘मुरली मनोहर’ से सुदर्शन चक्र धारण करने वाले योद्धा में बदल जाते हैं। यह भी बड़े सुंदर भाव में व्यक्त किया गया है। नाटक में खास बात चारों महिला कलाकारों ने युद्ध प्रेम संघर्ष और मातृत्व जैसे जटिल भावों को पूरी जीवंतता के साथ प्रस्तुत किया। नाटक में मुख्य किरदारों की भूमिका में विनीता जोशी,नौयरिका बठेजा,चांदनी श्रीवास्तव और संजना देशमुख ने निभाई थी।

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