अरबों डॉलर मूल्य के उपकरण भी अफगानिस्तान में छोड़कर भागे अमेरिकी सैनिक
काबुल। अमेरिका ने अफगानिस्तान से जिस जल्दबाजी में अपनी सेना को वापस बुलाया, उसका असर यह हुआ कि अब काबुल समेत पूरे देश पर तालिबान का कब्जा है। यहां तक कि अमेरिका द्वारा 88 अरब डॉलर (करीब 6.5 लाख करोड़ रुपये) के खर्च से तैयार की गई अफगान सेना भी बेअसर साबित हुई और अधिकतर सैनिकों ने तालिबान के सामने घुटने टेक दिए। इन 6.5 लाख करोड़ रुपये में से 2.5 लाख करोड़ रुपये के तो केवल हथियार, विमान और अन्य साजो-सामान थे। सैनिकों के इस सरेंडर के बाद तालिबान के हाथ अमेरिका के वो खतरनाक हथियार लग गए हैं, जो दुनियाभर के कई देशों तक के पास नहीं हैं। इस सिलसिले में गुरुवार रात रिपब्लिकन पार्टी के एक सांसद और नौसेना के पूर्व रिजर्व सैनिक ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कई बड़े दावे किए। अमेरिका में सत्तासीन जो बाइडेन की डेमोक्रेट पार्टी को विपक्षी रिपब्लिकन पार्टी ने अफगानिस्तान के मुद्दे पर जमकर घेरा है। उसके एक सांसद जिम बैंक्स ने कहा, बाइडेन प्रशासन की लापरवाही की वजह से तालिबान के पास अब अमेरिकी सेना के अरबों डॉलर मूल्य के उपकरण मौजूद हैं। इनमें 75 हजार वाहन, 200 से ज्यादा एयरक्राफ्ट्स और 6 लाख से ज्यादा छोटे हथियार शामिल हैं। तालिबान के पास अब दुनिया के 85 फीसदी देशों से ज्यादा ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर मौजूद हैं। उनके पास नाइट विजन गॉगल्स, बॉडी आर्मर्स व मेडिकल सप्लाई हैं।
तालिबान के पास अब उन अफगान लोगों के बायोमैट्रिक रिकॉर्ड्स, उनके फिंगरप्रिंट्स और आंखों के स्कैन्स मौजूद हैं, जिन्होंने अमेरिका की पिछले 20 सालों में मदद की।” अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने अफगानिस्तान में हथियार मुहैया कराने से जुड़े खर्च के आंकड़े रिलीज नहीं किए हैं। बाइडेन प्रशासन ने इसे युद्ध के मद्देनजर संवेदनशील जानकारी बताते हुए रोका है। हालांकि, अमेरिकी कांग्रेस की ओर गठित युद्ध के खर्चों पर नजर रखने वाले वॉचडॉग ‘आॅफिस आॅफ द स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फॉर अफगानिस्तान रिकंस्ट्रक्शन’ (स्ढ्ढत्र्रक्र) के मुताबिक आंकड़े कुछ अलग हैं। दरअसल, वॉचडॉग की रिपोर्ट में साफ किया गया है कि अमेरिका ने ८८ अरब डॉलर की रकम अफगान सेना की ट्रेनिंग और हथियारों पर खर्च की है। रक्षा विभाग ने तो सिर्फ २००५ से २०२१ के बीच हथियारों पर खर्च हुई रकम का आंकड़ा मुहैया कराया है। यह करीब १८ अरब डॉलर (१.३२ लाख करोड़ रुपए) दिखाया गया। हालांकि, कुछ और रिपोर्ट्स में तो इन आंकड़ों को सिरे से खारिज किया गया है। न्यूयॉर्क पोस्ट की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि २००२ से २०१७ तक अमेरिका ने अफगान सेना को २८ अरब डॉलर ( २.०६ लाख करोड़ रुपए) के हथियार मुहैया कराए। एक और रिपोर्ट में इस खर्च को २००१ से २०२१ के बीच ३५ अरब डॉलर (करीब २.५० लाख करोड़) से ज्यादा बताया गया।
अमेरिका ने अफगानिस्तान को कौन से हथियार दिए?
अफगानिस्तान में तालिबान शासन आने से पहले तक अफगान सेना के पास कई बड़े हथियार थे। इनमें ६ लाख रू१६ असॉल्ट राइफल्स, १ लाख ६२ हजार संचार उपकरण, रात में सेना आपरेट करने के लिए १६ हजार नाइट विजन गॉगल्स, मशीन गन, तकरीबन १ लाख वाहन और १६ हजार के करीब खुफिया सर्विलांस से जुड़े उपकरण शामिल हैं। इस साल जून तक अफगान सेना के पास २११ एयरक्राफ्ट्स भी मौजूद थे, जिनकी संख्या बाद में बढ़ाई गई थी। इनमें ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर से लेकर ए-२९ सुपर टुकानो अटैक एयरक्राफ्ट और सी-२०८ लाइट अटैक एयरप्लेन भी शामिल थे।
तालिबान के कब्जे में क्या-क्या?
१. वाहन
तालिबान ने जिन अमेरिकी हथियारों पर कब्जा जमाया है, उनमें सैनिकों के कई वाहन शामिल हैं। २०१६ तक अमेरिका ने करीब ७५ हजार वाहन अफगान सेना को दिए थे, जबकि पिछले चार सालों में ही १० हजार और वाहन अफगानिस्तान पहुंचाए गए। इस लिहाज से तालिबान की पहुंच इस समय ८५ हजार सैन्य वाहनों तक है, जिसमें ४५ हजार लाइट टैक्टिकल व्हीकल से लेकर ३० हजार हमवी, करीब २०० पर्सनल आर्मर्ड कैरियर (मुख्य तौर पर टैंक) भी शामिल हैं।
२. एयरक्राफ्ट
इसी महीने तालिबान ने अमेरिका के ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर और ए-२९ सुपर टुकानो एयरक्राफ्ट कब्जा लिए। एक ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर की कीमत १५५ करोड़ रुपए आंकी जाती है। बताया जाता है कि अफगान सेना के पास तकरीबन ४५ ब्लैक हॉक हेलिकॉप्टर मौजूद थे। इसके अलावा उसके पास ५० एमडी-५३०एस और ५६ एमआई-१७ हेलिकॉप्टर भी थे। अफगान वायुसेना के पास २३ सुपर टुकानों अटैक हेलिकॉप्टर के अलावा सी-२०८, सी-१८२, सी-१३० सुपर हक्युर्लीस, टी-१८२, जी-२२२ और एन-३२ जैसे ट्रांसपोर्ट विमान भी मौजूद थे। १८ यूटिलिटी एयरक्राफ्ट और एसी-२०८ फिक्स विंग एयरक्राफ्ट भी अफगान वायुसेना का हिस्सा रहे।
बताया गया है कि अफगान वायुसेना के कई सैनिक तालिबान के खिलाफ चलाए जा रहे अपने मिशन के दौरान एयरक्राफ्ट लेकर ही पड़ोसी देश चले गए। उज्बेकिस्तान सरकार ने दावा किया है कि बीते दिनों ४६ अफगान एयरक्राफ्ट उसकी जमीन पर उतरे, जिनमें २४ हेलिकॉप्टर शामिल हैं। वहीं, कुछ और विमानों के पड़ोसी ताजिकिस्तान जाने की भी आशंका है। इसके बावजूद तालिबान के कब्जे में करीब १५० एयरक्राफ्ट्स होने का अनुमान लगाया गया है।
अमेरिकी अफसरों के मुताबिक, अगर तालिबान के आतंकी अमेरिकी विमानों को उड़ा नहीं पाए, तो भी उनके लिए हमारी तकनीक काफी अहम साबित हो सकती है, क्योंकि इनकी पुर्जों की कीमत ही उन्हें जबरदस्त फायदा पहुंचा सकती है। एक सैन्य विमान की कंट्रोल स्टिक की कीमत १८ हजार डॉलर (करीब १३ लाख रुपए) और फ्यूल टैंक ३५ हजार डॉलर (करीब २५ लाख रुपए) तक में बिकता है।
३. बंदूकें
अमेरिका की तरफ से अफगान सेना को बीते २० सालों में चार लाख रायफल्स, १.५ लाख से ज्यादा पिस्तौल, करीब ६५ हजार मशीन गन दी गईं। इसके अलावा उसे ग्रेनेड लॉन्चर, शॉटगन, रॉकेट-प्रोपेल्ड वेपन्स और मोर्टार लॉन्चर दिए गए। डीओडी की रिपोर्ट के मुताबिक, फिलहाल तालिबान २० सालों में अफगानिस्तान को मुहैया कराए गए ६ लाख से ज्यादा आधुनिक हथियारों तक पहुंच बनाकर अपनी स्थिति और मजबूत कर सकता है।
अफगान सेना के पास जो सबसे आम बंदूक थी, वह थी एम१६ राइफल, जिसकी कीमत ७५० डॉलर से लेकर १२ हजार डॉलर (करीब ५५ हजार रुपए से ९ लाख रुपए) तक जा सकती है। इसके अलावा मशीन गन एम२४० मॉडल की कीमत ६.६७ लाख रुपए और ग्रेनेड लॉन्चर की कीमत ३.७० लाख रुपए तक जाती है। उधर सैनिकों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली जीलॉक जेनरेशन की ०.४ कैलिबर गोली वाली पिस्तौल की कीमत २४ हजार रुपए तक आंकी जाती है।
४. निगरानी-जासूसी उपकरण
अफगानिस्तान में अल-कायदा को खत्म करने के लिए अमेरिका की तरफ से जब अफगान सेना को तैयार करना शुरू किया गया, तो उन्हें पारंपरिक हथियारों के साथ खुफिया तंत्र मजबूत करने लायक उपकरण चलाने की ट्रेनिंग भी दी गई। आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका ने अफगान सेना और पुलिस को १६ हजार से ज्यादा ऐसे उपकरण दिए, जिनके जरिए आतंकी संगठन के खिलाफ निगरानी और जासूसी तंत्र काफी मजबूत हुए। इनमें नाइट विजन डिवाइस से लेकर रेडियो मॉनिटरिंग सिस्टम और मानवरहित ड्रोन्स भी शामिल रहे हैं, जिन्हें आतंकियों को ढूंढ कर बम बरसाने के लिए जाना जाता है।
कीमतों की बात करें तो एक नाइट विजन गॉगल की कीमत ८ करोड़ डॉलर (करीब ५८९ करोड़ रुपए) तक हो सकती है। इसके अलावा रेडियो उपकरणों (रिसीवर, ट्रांसमीटर, एम्पलीफायर, रिपीटर) की कीमत ३.५ लाख डॉलर (करीब २.५ करोड़ रुपए) तक जा सकती है। हालांकि, अमेरिकी सेना के लिए एक सुकून की बात यह है कि तालिबान को इन उपकरणों को चलाने के लिए काफी ट्रेनिंग की जरूरत पड़ सकती है, जिसके बिना यह उपकरण उनके लिए पूरी तरह बेकार होंगे।