गीत गजलों तरानों का घर लखनऊ… सुनाकर बांधा समां
लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग और सांस्कृतिकी की ओर से कवि सम्मेलन हुआ। एपी सेन सभागार में हिंदी पखवाड़े के तहत आयोजित कार्यक्रम का उद्धाटन कुलपति प्रो. मनुका खन्ना ने किया। यहां कई अंचलों से आए कवियों ने अपने लहजे में व्यंग्य, राष्ट्रभक्ति और हास्य रूपी कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस दौरान हास्य कवि निर्भय निश्चल की व्यंग्यपूर्ण पंक्तियों हमारे घर कभी कट्टा रहा होगा पहले, जो बहुत मीठा है खट्टा रहा होगा पहले… पर खूब ठहाके लगे। बहराइच के गीतकार अभिषेक अवस्थी ने लखनऊ की तहजीब और संस्कृति पर गीत गजलों तरानों का घर लखनऊ, जिसकी शाखा ये सब वो शहर लखनऊ… सुनाया। महाराजगंज के अभिषेक अभिराम ने सभी पर प्रेम की बंसी बजाई तो नहीं जाती, बने शिशुपाल जो कोई बनो फिर कृष्ण जैसा तुम… और रायबरेली के मधुप श्रीवास्तव नरकंकाल ने अपने चुटीले अंदाज में प्यार का बल्ब जलाए रहिए, बस फ्यूज होने से बचाए रहिए… सुनाकर समां बांध दिया। इसी तरह लखनऊ की वंदना विशेष ने हिंदी के महत्व पर ह्यभावों का संचार हमारी हिन्दी है, जीवन का आधार हमारी हिन्दी है.. और अंबेडकर नगर के अभय सिंह निर्भीक ने ओजस्वी स्वर में राष्ट्रभक्ति का आह्वान करते हुए ह्यभारत माता का हरगिज सम्मान नहीं खोने देंगे, अपने पूज्य तिरंगे का अपमान नहीं होने देंगे.. सुनाकर लोगों में देशभक्ति की भावना का संचार किया। अंत में लखनऊ के मुकुल महान ने ह्यमाना हमारा देश ओलंपिक में फेल है, पर उल्लू सीधा करना, हमारे बाएं हाथ का खेल है.. जैसे कई हास्य-व्यंग्य रचनाओं से मंच का संचालन करते हुए श्रोताओं को लगातार हंसाया। संचालन मुकुल महान ने किया। विभागाध्यक्ष प्रो. पवन अग्रवाल, प्रो. योगेंद्र प्रताप सिंह, प्रो. अलका पांडेय, प्रो. श्रुति, प्रो. हेमांशु सेन, डॉ. ममता तिवारी, डॉ. सुधा, डॉ. अनुपम, डॉ. आकांक्षा समेत कई अन्य उपस्थित रहे।