बुद्धि, पाप, इच्छाओं और वासनाओं पर लगाम लगाती है। उन्हें बार-बार नियंत्रण में लाती है। किन्तु इन्द्रियां और उनके विषय भी बड़े शक्तिशाली और प्रमथनकारी होते हैं। चोट खाये हुए सर्प, हारे हुये जुआरी की तरह वे बार-बार दांव लगाते हैं और परिस्थितियां पाकर मनुष्य की सारी बुद्धि और विवेक में घमासान हचचल मचा देते हैं। काम और क्रोध, लोभ और मोह, भय और आशंका के तूफान एक क्षण मनुष्य की बुद्धि पर पर्दा डाल देते हैं, उसे साधना ये विचलित करने का हर संभव प्रयत्न करते हैं।
कुचली हुई वासनाओं को जब भी अवकाश मिलता है वे ऐसे-ऐसे प्रलोभनकारी रूप रचकर मनुष्य को लुभाती हैं कि आत्मज्ञान का सारा महत्व उसकी आंखों से ओझल हो जाता है। बात की बात में साधक पथभ्रष्ट होकर रह जाता है। ऐसे कठिन समय में जिसकी बुद्धि में विवेक होता है, जिनका मन एकाम और समाहित होता है, उसकी की इन्द्रियां सावधान रहती हैं और वही आत्म साधना के पथ पर धैर्यपूर्वक अंत तक टिके रह पाते हैं। आत्मज्ञान की इच्छा करने वालों को स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि जो अनावश्यक जान पड़ता है।
अपनी बुद्धि को यथा संभव एकाम और निर्मल बनाने की वैसी ही आवश्यकता होती है जिस प्रकार भरे हुए जल से प्रतिबिम्ब देखने के लिए लहरों का रोकना आवश्यक होता है। कामनायें एक प्रकार की लहरें ही होती हैं जिनके रहते हुए आत्मा का प्रतिबिम्ब साफ नहीं झलकता। इस बता का पक्का और पूर्ण विश्वास नहीं रहती। इसके बाद आत्मा स्वयं अपना गुरु, नेता या मार्गदर्शक हो जाता है और सभी सदाचरण स्वत: उसमें प्रकट होने लगते हैं।
वह स्वयं ही सत्य और शुद्ध चरित्रमय बनने लगता है। भय और लोभ आत्म विकास के मार्ग में निरन्तर बाधाएं पहुंचाते रहते हैं। बहिर्मुखी इन्द्रियां भी चैन से नहीं बैठने देती हैं। अन्तर आत्मा को देखने की दूर दृष्टि थोड़ी देर के लिए जाग्रत होती है अन्यथा अधिकांश समय यह इन्द्रियां तरह-तरह के बाहरी प्रलोभनों की ओर ही आकर्षित होती रहती है। अच्छे स्वादयुक्त भोज्य पदार्थ अधिक धन, विपुल ऐश्वर्य कुच और कंचन की अतृप्त तृष्णा बार-बार अन्तर्मुखी इन्द्रियों को बहकाती रहती है।
अज्ञानी लोग वाह्य विषयों के प्रलोभनों में फंस जाते हैं, इसीलिए बताया गया है कि यह मार्ग अति कठिन है और उसके पार जाना कोई आसान बात नहीं है। पर अमृत्व की तीव्र आकांक्षा रखने वाले साहसी पुरुष इन्द्रियों की क्षणिक लोलुपता और मन के विद्रोह के आगे नहीं झुकते। वे नचिकेता की तरह ही निष्ठाभाव से आध्यात्मिक विकास की साधना में संलग्न रहते हैं और आत्मज्ञान का लाभ प्राप्त करते हैं। यह मार्ग कायरों के लिए कठिन है।