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भारत के विकास की राह में स्वास्थ्य अभी भी प्रमुख चुनौती: राष्ट्रपति कोविंद

वर्धा: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को कहा कि स्वास्थ्य (क्षेत्र) भारत के विकास में एक प्रमुख चुनौती बना हुआ है लेकिन केंद्र अपने विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए उससे निपटने के लिए प्रतिबद्ध है। कोविंद ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी, कुपोषण और नजरंदाज किए गए उष्णकटिबंधीय रोग देश पर गंभीर दबाव डालते हैं। कोविंद यहां महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एमजीआईएमएस) के स्वर्ण जयंती समारोह के दौरान एक सभा को संबोधित कर रहे थे। राष्ट्रपति ने कहा, दुनिया की कुल जनसंख्या के 18 प्रतिशत आबादी वाले देश के रूप में, हम वैश्विक बीमारियों के प्रसार का 20 प्रतिशत वहन करते हैं। हमारे समक्ष संचारी, गैर-संचारी और नए व उभरते रोगों के तिहरे बोझ की चुनौती है।

 

उन्होंने कहा, स्वास्थ्य (क्षेत्र) भारत के विकास की राह में प्रमुख चुनौती बना हुआ है। स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी, कुपोषण और नजरंदाज किए गए उष्णकटिबंधीय रोग हम पर गंभीर दबाव डालते हैं। हमारी सरकार महत्वाकांक्षी आयुष्मान भारत कार्यक्रम और अन्य स्वास्थ्य योजनाओं के जरिए इन सबसे निपटने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, हमारी समस्याएं जटिल और हमारे व्यापक सामाजिक आर्थिक चुनौतियों से उलझी हुई हैं। कोविंद ने कहा कि संस्थान ने पिछले 50 वर्षों में देश की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है तथा अपनी शैक्षणिक उत्कृष्टता के साथ ही लोगों की अपनी सेवा के लिए काफी प्रशंसा एवं सम्मान हासिल किया। उन्होंने कहा कि इस तरह से ऐसा ही संस्थान सफल हो सकता था जो कि महात्मा गांधी के जीवन और शिक्षाओं से प्रेरित है। राष्ट्रपति ने इस मौके पर महाराष्ट्र सहित देश के विभिन्न हिस्सों में विनाशकारी बाढ़ में लोगों की मौतों पर संवेदना जताई।

 

इससे पहले राष्ट्रपति यहां सेवाग्राम आश्रम गए जहां महात्मा गांधी एक दशक से अधिक समय तक रहे थे। उन्होंने कहा, इस आश्रम की चार दीवारें हमें काफी कुछ सिखाती और प्रेरित करती हैं। जब मैं इसके आंगन से गुजर रहा था गांधीजी के संघर्ष और उनके बलिदान मेरे मस्तिष्क में उभरे और यह समझने का प्रयास किया कि एक राष्ट्र के तौर पर हम उनके कितने आभारी हैं। सेवाश्रम आश्रम उनके कई प्रयोगों का केंद्र था जिसमें सत्य, अहिंसा और मानवता का उद्धार शामिल है। उन्होंने कहा कि सेवाग्राम, वर्धा और विदर्भ का एक गौरवशाली अतीत रहा है। इन्हीं क्षेत्रों में आचार्य विनोबा भावे ने अपने भूदान आंदोलन की शुरूआत की। यहां से बहुत दूर नहीं है जहां बाबा आम्टे ने कुष्ठ रोगियों की देखभाल एवं वंचितों के लिए अपना सामाजिक सुधार आंदोलन चलाया।

 

उन्होंने कहा, महात्मा गांधी स्वस्थ जीवन के लिए प्राकृतिक उपचार में विश्वास करते थे। स्वास्थ्य एवं समुदाय को जोडऩे के अपने प्रयासों में आपको प्रकृति और पारंपरिक ज्ञान से संवर्धित वैकल्पिक उपचारों पर भी ध्यान देना चाहिए। और इसलिए भी क्योंकि आप ग्रामीण लोगों की सेवा करते हैं जो कि सांस्कृतिक रूप से ऐसे प्रथाओं से अभ्यस्त हैं। राष्ट्रपति ने फैकल्टी सदस्यों और छात्रों से विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं अन्य वैश्विक एजेंसियों के साथ अपना सम्पर्क बढ़ाने का आह्वान किया ताकि वे अधिक ज्ञान एवं अनुभव हासिल कर सकें।

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