नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सेना में स्थाई कमीशन देने की मांग कर रही कई महिला एसएससी अधिकारियों की याचिकाओं पर बृहस्पतिवार को सुनवाई की और कहा कि एसीआर मूल्यांकन प्रक्रिया में खामी है तथा वह भेदभावपूर्ण है। न्यायालय ने यह भी कहा कि हमारे समाज का ढांचा पुरुषों ने पुरुषों के लिए ही बनाया है जहां समानता की बात एक स्वांग है और आजादी के बाद से पुरुषों तथा महिलाओं के बीच की खाई भरने तथा उन्हें समान अवसर देने की कोशिशें की गई हैं।
शीर्ष अदालत ने कई महिला अधिकारियों की याचिकाओं पर फैसला सुनाया जिन्होंने पिछले साल फरवरी में केंद्र को स्थाई कमीशन, पदोन्नति और अन्य लाभ देने के लिए दिए निर्देशों को लागू करने की मांग की। न्यायालय ने कहा कि महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन देने के लिए वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) मूल्यांकन मापदंड में उनके द्वारा भारतीय सेना के लिए अर्जित उपलब्धियों एवं पदकों को नजरअंदाज किया गया है।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि जिस प्रक्रिया के तहत महिला अधिकारियों का मूल्यांकन किया जाता है उसमें पिछले साल उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनाए फैसले में उठाई लैंगिक भेदभाव की चिंता का समाधान नहीं किया गया है। पिछले साल 17 फरवरी को दिए अहम फैसले में शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया था कि सेना में महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन दिया जाए।
न्यायालय ने केंद्र की शारीरिक सीमाओं की दलील को खारिज करते हुए कहा था कि यह महिलाओं के खिलाफ लैंगिक भेदभाव है। न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया था तीन महीनों के भीतर सभी सेवारत एसएससी महिला अधिकारियों के नाम पर स्थाई कमीशन के लिए गौर किया जाए चाहे उन्हें सेवा में 14 साल से अधिक हो गए हो या चाहे 20 साल। न्यायालय ने बृहस्पतिवार को दिए फैसले में कहा कि सेना में एसएससी महिला अधिकारियों के लिए एसीआर मूल्यांकन का मापदंड व्यवस्थागत भेदभाव है।
पीठ ने कहा, एसीआर मूल्यांकन प्रक्रिया से ही यह पता चलता है कि इसमें खामी है और हम इसे अनुचित तथा मानमाने ठहराते हैं। न्यायालय ने कहा, जिन महिलाओं को स्थाई कमीशन नहीं दिया गया है वे हमारे पास चैरिटी के लिए नहीं बल्कि अपने अधिकारों के लिए आई हैं। कुछ महिला अधिकारियों ने उच्चतम न्यायालय में दायर अपनी याचिका में कहा कि पहले दिए गए निर्देशों का अनुपालन नहीं किया गया है।