लखनऊ। उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने राज्य में 69 हजार बेसिक शिक्षकों की नियुक्ति पर उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाए जाने का ठीकरा विपक्ष के सिर फोड़ते हुए उस पर पूरी भर्ती प्रक्रिया को पटरी से उतारने की कोशिश करने का आरोप लगाया। द्विवेदी ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि बेसिक स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए 69 हजार अभ्यर्थियों की भर्ती प्रक्रिया सुचारू रूप से चल रही थी। तीन से छह जून तक काउंसिलिंग के बाद नियुक्ति पत्र दिए जाने थे। इसी बीच न्यायालय ने प्रक्रिया रोक दी।
उन्होंने आरोप लगाया कि इसी दौरान अनावश्यक राजनीति करते हुए, नौजवानों के भविष्य से खिलवाड़ करते हुए, सरकार की अच्छी छवि खराब करने के लिए भर्ती प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश की गई है। उन्होंने कहा मेरा आरोप है कि पूरी भर्ती प्रक्रिया को पटरी से उतारने के लिए और कोरोना वायरस महामारी में जनता की सेवा करने का श्रेय योगी सरकार को न मिले, इसलिए कुछ राजनीतिक लोगों ने यह अभियान चलाया है।
मंत्री ने किसी का नाम लिए बगैर कहा, कुछ लोग ऐसे हैं, जिनका खानदानी पेशा ही भ्रष्टाचार और घोटालों का रहा है। उनका पूरा इतिहास भ्रष्टाचार और घोटालों से भरा है। उनकी कल्पना ही नहीं है कि इतनी बड़ी भर्ती या रोजगार देने का अभियान बिना भ्रष्टाचार के कैसे हो सकता है। गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने प्रदेश के बेसिक स्कूलों में 69 हजार शिक्षकों की प्रकिया पर गत तीन जून को रोक लगा दी थी। प्रथम दृष्टया अदालत ने पाया था कि कुछ सवाल एवं जवाब गलत थे इसलिए उनकी नए सिरे से जांच की आवश्यकता है।
उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा था कि प्रश्नपत्रों की जांच में त्रुटि है। भर्ती के लिए परीक्षा छह जनवरी 2019 को हुई थी और उसके परिणाम इस साल 12 मई को घोषित हुए। द्विवेदी ने भर्ती परीक्षा से जुड़े विभिन्न सवालों पर अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि शिक्षक भर्ती के लिए प्रयागराज में परीक्षा केन्द्र बनाए गए एक विद्यालय में एक धोखाधड़ी गिरोह का मामला सामने आया था। राहुल नामक व्यक्ति की शिकायत पर डॉक्टर के. एल. पटेल नामक चिकित्सक, संतोष कुमार बिंद नामक लेखपाल तथा 11 अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया था।
उन्होंने बताया कि पूछताछ में पता चला कि यह गिरोह पंचमलाल आश्रम उच्चतर माध्यमिक विद्यालय प्रयागराज के प्रबन्धक चंद्रमा यादव से साठगांठ करके इस विद्यालय में परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों की गैरकानूनी तरीके से मदद करता है और उसके बदले धन वसूली करता है। शासन ने इस मामले की गहराई से जांच कराने के लिए यह मामला एसटीएफ को सौंप दिया है। मंत्री ने कहा कि जांच में अगर यह बात पता चली कि किन्हीं अभ्यर्थियों ने गलत तरीके से भर्ती परीक्षा पास की है तो उनके खिलाफ कार्वाई होगी।
साथ ही उस परीक्षा केन्द्र को भविष्य में कभी केन्द्र नहीं बनाया जाएगा और दोषियों के खिलाफ कार्वाई की जाएगी। उन्होंने कहा कि इसी भर्ती परीक्षा में कुछ लोगों द्वारा किसी सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी जिसका सरनेम तिवारी है, उसका अन्य पिछड़ा वर्ग में चयन किए जाने का आरोप भी लगाया गया है। जवाब यह है कि अभी किसी के दस्तावेजों की जांच नहीं हुई थी। काउंसेलिंग होती ही इसीलिए है। इसलिए अभी किसी को अनुचित लाभ मिल जाएगा, यह सम्भव ही नहीं है।
द्विवेदी ने कहा कि कुछ लोगों ने आरक्षण को लेकर भी सवाल किए हैं। आप सब जानते हैं कि प्रक्रिया के मुताबिक किसी भी भर्ती परीक्षा में 50 प्रतिशत सीटें अनारक्षित होती हैं। बाकी में अलग-अलग वर्गों का आरक्षण है। अनारक्षित सीटों पर मेरिट के आधार पर चयन होता है। चाहे ओबीसी, एससी या एसटी हों, जिनकी भी मेरिट बेहतर होती है वे सभी इन अनारक्षित वर्ग में चयनित होते हैं। इस भर्ती में भी यही हुआ है। किसी को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि अनारक्षित वर्ग में केवल सामान्य जातियों के लोग ही भर्ती होते हैं।
उन्होंने कहा कि न्यायालय ने भर्ती प्रक्रिया से सम्बन्धित अपने निर्णय को सुरक्षित कर लिया है। जैसा निर्णय आएगा उसी के अनुरूप हम कार्रवाई करेंगे। इस मामले में कई बातें उच्चतम न्यायालय से भी आई हैं। प्रतिवादियों की एक अर्जी पर एक अन्य न्यायमूर्ति ने मामले को सुना है। मीडिया के माध्यम से मिली सूचना के मुताबिक अदालत ने निर्देश दिए हैं कि 69 हजार में से करीब 37 हजार पदों को रोककर शेष पर भर्ती की जाए। उन्होंने कहा कि चूंकि इसमें हमारे विभाग का पक्ष नहीं सुना गया है इसलिए हम इस आदेश में संशोधन की अपील कर रहे हैं।