एक राष्ट्र, एक चुनाव पर बहस के बीच निर्वाचन आयोग ने पूर्व में यह सुझाव दिया था कि अगर भारत यह मॉडल अपनाता है तो केंद्र या राज्य में सरकार गिरने से हुई रिक्ति को पांच साल के बाकी कार्यकाल के लिए वैकल्पिक सरकार द्वारा भरा जाएगा। आयोग ने पूर्व में कहा था कि ऐसा या तो विपक्ष द्वारा विश्वास मत के माध्यम से अपना बहुमत साबित करने से हो सकता है, या बाकी अवधि के वास्ते सरकार चुनने के लिए मध्यावधि चुनाव के माध्यम से हो सकता है।
संविधान में संशोधन का सुझाव देते हुए आयोग ने कहा था कि लोकसभा का कार्यकाल आम तौर पर एक विशेष तारीख को शुरू और समाप्त होगा (न कि उस तारीख को जब संसद अपनी पहली बैठक की तारीख से पांच साल का कार्यकाल पूरा करती है)। इसने कहा था कि नये सदन के गठन के लिए आम चुनाव की अवधि इस प्रकार निर्धारित की जानी चाहिए कि लोकसभा अपना कार्यकाल पूर्व-निर्धारित तिथि पर शुरू कर सके।
एक राष्ट्र, एक चुनाव के मुद्दे पर अपने सुझाव साझा करते हुए निर्वाचन आयोग ने कहा था कि लोकसभा को समय से पहले भंग होने से बचाने के लिए, सरकार के खिलाफ किसी भी अविश्वास प्रस्ताव में भविष्य के प्रधानमंत्री के रूप में नामित व्यक्ति के नेतृत्व वाली सरकार के पक्ष में एक और विश्वास प्रस्ताव शामिल होना ही चाहिए और दोनों प्रस्तावों
पर एक साथ मतदान कराया जाना चाहिए।आयोग ने यह भी सुझाव दिया था कि यदि सदन को भंग करने को टाला नहीं जा सकता है, तो सदन का शेष कार्यकाल लंबा होने पर नये सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं और ऐसे में सदन का कार्यकाल मूल कार्यकाल के बराबर होना चाहिए आयोग ने अपने सुझाव में कहा था कि यदि लोकसभा का शेष कार्यकाल लंबा नहीं है, तो यह प्रावधान किया जा सकता है कि राष्ट्रपति उनके द्वारा नियुक्त मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर देश का प्रशासन तब तक चलाएंगे, जब तक कि अगले सदन का गठन निर्धारित समय पर नहीं हो जाता। इसने राज्य विधानसभाओं के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था का सुझाव दिया था।
इसमें कहा गया था कि लंबी अवधि और लंबी अवधि नहीं शब्दों को परिभाषित किया जाना चाहिए। कानून और कार्मिक विभाग से संबंधित स्थायी समिति दिसंबर 2015 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की व्यवहार्यता पर एक रिपोर्ट लेकर आई थी। उसने इस मुद्दे पर निर्वाचन आयोग द्वारा दिए गए सुझावों का हवाला दिया था।
संसदीय समिति ने निर्वाचन आयोग के सुझावों का हवाला देते हुए कहा था, सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल भी आम तौर पर उसी तारीख को समाप्त होना चाहिए, जिस दिन लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। समिति ने कहा था, शुरुआत में इसका मतलब यह भी हो सकता है कि एक बार के उपाय के रूप में, मौजूदा विधानसभाओं का कार्यकाल या तो पांच साल से अधिक बढ़ाना होगा या कम करना होगा, ताकि लोकसभा चुनाव के साथ-साथ नए
चुनाव कराए जा सकें।निर्वाचन आयोग ने सुझाव दिया था कि यदि चुनाव के बाद कोई भी पार्टी सरकार बनाने में सक्षम नहीं होती है, और एक और चुनाव आवश्यक हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में सदन का कार्यकाल नए सिरे से चुनाव के बाद केवल मूल कार्यकाल के शेष भाग के लिए होना चाहिए। इसी प्रकार, निर्वाचन आयोग ने सुझाव दिया था कि यदि किसी सरकार को किसी कारण से इस्तीफा देना पड़ता है और कोई विकल्प संभव नहीं है, तो नए सिरे से चुनाव कराने के प्रावधान पर विचार किया जा सकता है, यदि शेष कार्यकाल तुलनात्मक रूप से लंबा हो और अन्य मामलों में, राज्यपाल या राष्ट्रपति शासन द्वारा शासन किया जा सकता है।निर्वाचन आयोग ने कहा था कि किसी विशेष वर्ष में होने वाले सभी उपचुनावों के आयोजन के लिए डेढ़-डेढ़ महीने की दो विंडो तय की जा सकती हैं।
निर्वाचन आयोग ने कहा था कि एक विकल्प के रूप में, एक वर्ष में होने वाले सभी चुनावों को वर्ष की एक विशेष अवधि में एक साथ कराने के प्रावधानों पर विचार किया जा सकता है। आयोग ने कहा था, इस व्यवस्था में लाभ यह होगा कि एक वर्ष में होने वाले विभिन्न विधानसभाओं के आम चुनाव एक साथ होंगे, न कि वर्ष में अलग-अलग अवधियों में। जिस वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं, उस वर्ष के सभी विधानसभाओं के चुनाव भी कराए जा सकते हैं।
निर्वाचन आयोग ने एक साथ चुनाव कराने में आने वाली कई कठिनाइयों की ओर भी इशारा किया था। इसमें मुख्य मुद्दा यह था कि एक साथ चुनाव कराने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम और वोटर वेरिफिएबल पेपर आडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) मशीनों की बड़े पैमाने पर खरीद की आवश्यकता होगी।
एक साथ चुनाव कराने के लिए आयोग ने अनुमान जताया था कि ईवीएम और वीवीपैट की खरीद के लिए कुल 9284.15 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। साथ ही उसने कहा था कि मशीनों को हर 15 साल में बदलने की भी आवश्यकता होगी, जिस पर फिर से व्यय करना होगा। स्थायी समिति ने ईसी के सुझावों का हवाला देते हुए कहा था, इसके अलावा, इन मशीनों के भंडारण से भंडारण
लागत में वृद्धि होगी।