साल 2012 और साल 2020 के बीच भारत में बोर्डरूम पर महिलाओं की संख्या में 8.6 फीसदी की वृद्घि दर्ज की गई है। एगोन जेंडर ग्लोबल बोर्ड डायवर्सिटी ट्रैकर 2020 के मुताबिक इस समय यानी साल 2020 में भारत के कार्पाेरेट बोर्डरूम में 17 फीसदी महिलाएं हैं, जो कि अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा हैं। इस बड़े सर्वे के मुताबिक भारत के लगभग 96 प्रतिशत कार्पाेरेट बोर्डरूम में कम से कम एक महिला मौजूद है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह प्रतिशत महज 89 फीसदी है।
हालांकि यह बहुत अच्छी स्थिति नहीं है, क्योंकि अभी भी भारत की सभी बड़ी सार्वजनिक कंपनियों में भी कम से कम एक महिला निदेशक बोर्ड में नहीं है, जो कि होनी चाहिए। पुरुषों से बराबरी का तो अभी दूर-दूर तक कोई मतलब ही नहीं है, अभी तो महज हर जगह महिलाओं की उपस्थित का सवाल है। हालांकि भारत में एशिया के दूसरे देशों से स्थिति थोड़ी बेहतर है।
भारत में 5 फीसदी महिलाएं कार्पाेरेट बोर्डरूम में निर्णायक कुर्सी में बैठी हुई हैं यानी वे फैसले कर सकती हैं। जबकि 10 फीसदी से ज्यादा महिलाओं की स्थिति गैर निर्णायक पदों में होने की है। एशिया के दूसरे देशों में यह स्थिति नहीं है। यहां तक कि जापान और कोरिया जैसे विकसित देशों में भी महिलाओं को बोर्डरू म में यह तव्वजो नहीं मिली। शायद भारत में बोर्डरू म में महिलाओं की हाल के सालों में सुधरी स्थिति का कारण ये रहा है कि भारत में एक जीवंत लोकतंत्र है और धीरे-धीरे अब तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं में भी महिलाओं की प्रभावशाली भागीदारी बढ़ी है।
भारत की संसद में अभी भी 20 फीसदी महिलाएं नहीं हैं। 17वीं लोकसभा में पहली बार 78 महिला सांसद हैं, जो कि कुल संख्या की महज 14 फीसदी हैं। लेकिन यह संख्या आजतक की सबसे ज्यादा है। पिछली लोकसभा में 62 महिलाएं जीतकर संसद पहुंची थीं। जबकि अगर महिलाओं की सफलता दर देखें तो वह पुरुष उम्मीदवारों से कहीं ज्यादा है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल पुरुष उम्मीदवार 7,334 थे और महिला उम्मीदवारों की संख्या महज 715 थी।
इस तरह देखें तो महिलाओं की जीत का प्रतिशत पुरु षों से काफी ज्यादा है। लेकिन यह स्थिति रखने के बाद भी महिलाएं संसद में उतनी नहीं हैं, जितनी होनी चाहिए। ठीक यही स्थिति भारत के कारपोरेट दुनिया में भी है। विश्व बैंक और यूनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम ने अपने अलग अलग अध्ययन निष्कर्षों में कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में अगर 25 फीसदी महिलाओं की हिस्सेदारी हो जाए तो अर्थव्यवस्था को पंख लग सकते हैं।
बावजूद इसके न तो रोजगार के तमाम क्षेत्रों में महिलाओं की अभी तक एक तिहाई संख्या हुई है और न ही बोर्डरूम में अभी तक महिलाएं एक चौथाई पहुंची हैं। लेकिन यह बात भी सही है कि जब से हिंदुस्तान आजाद हुआ है, लगातार महिलाओं की हर क्षेत्र में स्थिति बेहतर हो रही है। अभी दो दशक पहले तक भारत के कार्पोरेट बोर्डरूम में एक फीसदी महिलाओं की भी वास्तविक भागीदारी नहीं थी। तकनीकी तौर पर जो महिलाएं बोर्डरूम में शामिल भी रहीं थीं, वह अपने प्रोफेशनल कौशल की वजह से नहीं थीं बल्कि इसके पीछे उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि थी।
लेकिन अब महिलाएं अपने प्रोफेशनल योग्यता की बदौलत बोर्डरू म में हिस्सेदारी कर रही हैं। भारत में हाल के सालों में लगातार बोर्डरूम में लिंग विविधता में प्रगति हुई है, जैसा कि एशिया के दूसरे देशों में नहीं हुआ। आज भी पूरे एशिया में महिलाओं की बोर्डरूम में कार्यकारी भागीदारी महज 2.6 फीसदी है, जो कि हमारे यहां के मुकाबले करीब आधी है। यही नहीं एशिया के दूसरे देशों में महिलाओं की गैरकार्यकारी कुर्सियों में विराजे होने की भूमिका भी महज 5 फीसदी है, जबकि हम यहां 10 फीसदी से भी आगे हैं।





