समुद्री सुरक्षा, शांति बनाए रखने और काउंटर टेररिज्म के मुद्दे पर काम करेगा भारत
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल (यूएनएससी) की बैठक की अध्यक्षता करेंगे। वे ऐसा करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री होंगे। यूनाइटेड नेशन में भारत के पूर्व राजदूत सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि बीते 75 साल में ऐसा पहली बार हो रहा है कि भारत के प्रधानमंत्री यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल की मीटिंग की अध्यक्षता करेंगे। भारत आज (रविवार को) यूएनएससी का अध्यक्ष बन गया है।
सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल की अध्यक्षता करना भारतीय राजनीतिक नेतृत्व की फ्रंट से लीड करने की भावना को दिखाता है। भारत समुद्री सुरक्षा, शांति बनाए रखने और काउंटर टेररिज्म के मुद्दे पर काम करेगा। बता दें कि यूएनएसी की इस मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा विदेश मंत्री एस. जयशंकर और विदेश सचिव भी मौजूद रहेंगे। इस हाई लेवल मीटिंग में दुनिया के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होगी। जान लें कि इससे पहले साल 1992 में भारत के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने भारत की ओर से वठरउ की मीटिंग में भाग लिया था। यूनाइटेड नेशन सिक्योरिटी काउंसिल की अध्यक्षता भारत को आज (रविवार को) मिली है। इससे पहले काउंसिल का अध्यक्ष फ्रांस था। संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने फ्रांस को धन्यवाद देते हुए कहा कि फ्रांस और भारत के संबंध ऐतिहासिक हैं। संयुक्त राष्ट्र में साथ देने के लिए फ्रांस का आभार है।
उधर, भारत के लिए उज्बेकिस्तान के राजदूत दिलशाद आखतोव ने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र के सबसे बड़े सदस्यों में से एक है और महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अगले दो साल के लिए इसकी स्थायी सदस्यता एक अहम घटना है। परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता देने के लिए उज्बेकिस्तान भारत को पूरा समर्थन करता है। उन्होंने कहा कि भारत आतंकवाद और अफगानिस्तान के मुद्दे पर सक्रिय रहा है और हमारे दो देशों के लिए ये अहम मुद्दे हैं। इसीलिए जरूरी है कि भारत अगस्त के लिए यूएनएससी की अध्यक्षता करे। उन्होंने कहा कि मध्य एशिया में स्थिर और सतत विकास की संभावना सीधे तौर पर पड़ोसी अफगानिस्तान में शांति से जुड़ी है।
जहां स्थिति गंभीर बनी हुई है। उज्बेकिस्तान का प्रयास एक शांतिपूर्ण अंतर-अफगानी राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने का है और अफगानिस्तान को हमारी ओर से दी गई आर्थिक सहायता ने वहां की पूरी सरकार और तालिबान समेत विपक्ष का विश्वास भी कमाया है। तालिबान आंदोलन अफगानिस्तान की समावेशी सरकार का एक हिस्सा है। ताशकंद, अफगान-स्वामित्व वाली, अफगान-नेतृत्व वाली और अफगान-नियंत्रित शांति प्रक्रिया के सिद्धांत का सख्ती से पालन करते हुए हर प्रयास करता है।