वरिष्ठ संवाददाता
लखनऊ। टीबी मल्टी ड्रग रजिस्टेंट (एमडीआर) मरीजों के इलाज पर संकट की स्थिति है। अस्पताल में उन्हें सिर्फ डॉक्टर की सलाह मिल रही रही है। दवाओं के लिए उन्हें भटकना पड़ रहा है।
दरअसल टीबी यानि क्षय रोग का इलाज आधा-अधूरा कराने पर टीबी मल्टी ड्रग रजिस्टेंट (एमडीआर) हो जाती है। एमडीआर के इलाज के लिए मरीजों को और भी हाई डोज की दवाएं देनी पड़ती है और दवाएं न मिलने पर मरीज की जान को खतरा होता है। इन दिनों ऐसे कई मरीजों की जान पर संकट है।
सरकारी अस्पतालों में टीबी मरीजों की जांच, दवाएं व भर्ती आदि सब मुफ्त होने के बावजूद मरीजों को दवाओं के लिए भटकना पड़ रहा है। मालूम हो कि प्रदेश में एमडीआर टीबी के लगभग 10 हजार मरीज हैं। सबसे ज्यादा साइक्लोजरीन, लिंजोलेड और लेवोफ्लॉक्सिासिन जैसी दवाएं की किल्लत है। ऐसे में कई बार मरीजों को बाहर से दवाएं खरीदनी पड़ रही है।
केजीएमयू के पल्मोनरी मेडिसीन विभाग के डा. अजय वर्मा का कहना है ओपीडी में प्रतिदिन करीब 20 से 25 मरीज एमडीआर टीबी से ग्रसित आते हैं। करीब एक माह से ऐसी स्थिति है कि उन्हें दवाएं नहीं मिल पा रही है। उनका कहना है कि एमडीआर टीबी की समस्या टीबी के मरीजों में इलाज के दौरान गलत तरीके से दवाओं के सेवन के कारण सबसे ज्यादा होती है।
जब मरीज टीबी का इलाज करा रहा होता है उस दौरान टीबी की दवाओं का सही तरीके से सेवन न होने या दुरुपयोग होने की वजह से एमडीआर टीबी हो जाता है। इस समस्या में मरीजों के शरीर में मौजूद ट्यूबरक्लोसिस के बैक्टीरिया दवाओं के प्रति इतने रेजिस्टेंट हो जाते हैं कि इनपर दवाओं का असर बिलकुल भी नहीं होता है। ऐसे में जरूरी है कि टीबी के उपचार के दौरान इलाज बीच में न छोड़ा जाये और दवा की कोई डोज मिस न की जाये।