नैवेद्य चित्रकला प्रदर्शनी का समापन समारोह
लखनऊ। कलाएं लोकाश्रयी हो रही हैं। कभी केवल दरबारी या धर्माश्रयी थीं। पर रचनाएं जब लोकाश्रयी होती हैं, तब उनका विकास समुचित रूप से हो पाता है। प्रयास भी करना चाहिए कि कलाएं परजीवी न हों और उनसे समाज को जो अपेक्षा होती है, वह पूरा कर सकें। सन 2000 से प्रकाशित हो रही कलादीर्घा, अंतर्राष्ट्रीय दृश्य कला पत्रिका इसी विचार को लेकर चली थी। वह राजाश्रयी कभी नहीं रही। इसीलिए स्वतंत्र रूप से देश दुनिया में पल्लवित पुष्पित हो रही कलाओं को सदैव प्रकाशवृत्त में लाकर कला प्रेमियों, अध्येताओं और कलाकारों के समक्ष रखा है। अक्टूबर 2025 का अंक शीघ्र आ रहा है। समानांतर रूप से कलादीर्घा पत्रिका ने विभिन्न कला संस्थाओं के संयुक्त तत्वावधान में देश विदेश में कला गतिविधियों को आयोजित कर कला और कलाकारों का दस्तावेजीकरण किया है और उनको आलोकवृत्त में लाकर ध्यातव्य बनाया है जो किन्हीं कारणों से सामने नहीं थी। उन पर किसी की दृष्टि नहीं पड़ती थी। ऐसे बहुत सारे कलाकारों और कला समीक्षकों को कला दीर्घा ने अपने 25 वर्षों की यात्रा में मंच दिया है। उन्हें अपने साथ जोड़ा है। उनमें आत्मविश्वास पैदा किया है और उनके रचनाकर्म को एक धार दी है। वर्षपर्यंत चलने वाली कला गतिविधियों के क्रम में कला स्रोत और कला दीर्घा के सहआयोजन के रूप में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को शुरू हुई प्रदर्शनी का 8 सितंबर 2025 को नगर के अनेक कलाकारों और कला प्रेमियों की उपस्थिति में समापन हुआ। देश भर से सम्मिलित 41 कलाकारों की कलाकृतियों से समृद्ध कला प्रदर्शनी के समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रख्यात रचनाधर्मी महेंद्र भीष्म थे। उन्हें कला दीर्घा की ओर से अंग वस्त्र, स्मृति चिन्ह, लेखनी और बाल वृक्ष से सम्मानित किया गया। मुख्य अतिथि ने कला महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ रतन कुमार को प्रदर्शनी पुस्तिका और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। प्रदर्शनी की कलाकृतियों को कलाकारों की दृष्टि से देखते और आस्वाद करते हुए उन्होंने बताया कि कलाकारों पर ईश्वर की अपरिमित कृपा होती है, तभी वे वह रच पाते हैं जो सामान्य व्यक्ति की सोच की परिधि के बाहर होता है। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी कलाकारों के लिए चुनौती हो सकता है। उससे भी उबरने का रास्ता हम सबको खोजना होगा। इस अवसर पर कला दीर्घा के संपादक डॉ अवधेश मिश्र ने कहा कि दस्तावेजीकरण का महत्व दीर्घकालिक होता है। एक लंबा समय बीत जाने के बाद दस्तावेजीकरण ही गवाक्ष के रूप में अध्येताओं या संस्कृतिकर्मियों के सामने खुलता है और वह इन्हीं दस्तावेजों के सहारे अपनी समृद्ध संस्कृति के उस कालखंड में पहुंच पाते हैं जहां से उनकी कला, संस्कृति, साहित्य और अन्य रचना विधाओं का प्रस्थान बिंदु रहा होता है। हम सबको इस तरह की पत्रिकाओं, पुस्तकों, रचना विधाओं एवं गतिविधियों के साथ जुड़ना चाहिए। कला दीर्घा दृश्य कलापत्रिका की प्रकाशक डॉ लीना मिश्र ने कहा कि संस्थापक प्रकाशक अंजू सिन्हा और संस्थापक संपादक डॉ अवधेश मिश्र द्वारा स्थापित रचना मूल्यों को यथावत बनाए रखते हुए पत्रिका को वैश्विक पटल पर और मजबूती से स्थापित किया जाएगा जिससे भारतीय कला और नवप्रयोग का परचम पूरी दुनिया में लहरा सके। इस आयोजन के समन्वयकत्रय डॉ अनीता वर्मा, प्रशांत चौधरी और सुमित कुमार को शुभकामनाएं देते हुए समापन समारोह का संपन्न हुआ और कला प्रेमियों को दोनों संस्थाओं से जुड़े रहने और निरंतर स्नेह देने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इस अवसर पर उपस्थित कला स्रोत कला वीथिका के निदेशकद्वय मानसी डिडवानिया और अनुराग डिडवानिया ने कहा कि वह सदैव ऐसी गतिविधियों को साकार करते रहेंगे।