माता पार्वती और भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा की जाती है
लखनऊ। सावन माह की पावन समाप्ति के बाद भाद्रपद मास का आरंभ होता है, जो हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह माह अनेक प्रमुख व्रत-त्योहारों से समृद्ध होता है, जिनमें एक विशेष पर्व है कजरी तीज। यह पर्व भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और विशेष रूप से विवाहित महिलाओं और कन्याओं द्वारा श्रद्धा व भक्ति से मनाया जाता है। इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। मान्यता है कि कजरी तीज व्रत से वैवाहिक जीवन में प्रेम, सौहार्द और स्थायित्व बना रहता है, साथ ही संतान सुख की प्राप्ति का भी योग बनता है। इस शुभ अवसर पर व्रत, पूजा और धार्मिक अनुष्ठान का विशेष महत्व होता है। पंचांग के अनुसार, इस वर्ष कजरी तीज भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाएगी। तृतीया तिथि का प्रारंभ 11 अगस्त को सुबह 10:33 बजे होगा और इसका समापन 12 अगस्त को सुबह 8:40 बजे तक होगा। चूंकि उदया तिथि को पूजा और व्रत का महत्व दिया जाता है, इसलिए कजरी तीज 12 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी।
पूजा का शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:23 से 05:06 बजे तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:38 से 03:31 बजे तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 07:03 से 07:25 बजे तक
निशीथ काल मुहूर्त: रात 12:05 से 12:48 बजे तक
कजरी तीज का महत्व
कजरी तीज का व्रत खासकर विवाहित महिलाएं और कुवांरी कन्याएं बड़े श्रद्धा से करती हैं। इस व्रत की शुरूआत मां पार्वती ने ही की थी, जब उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए यह उपवास रखा था। माना जाता है कि इस व्रत को करने से पति की लंबी आयु और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। साथ ही इस व्रत से सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है, जिससे वैवाहिक जीवन खुशहाल और सुखमय बनता है। इसलिए कजरी तीज का व्रत परिवार और समाज में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
कजरी तीज पूजा विधि
कजरी तीज के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और शुद्ध व स्वच्छ वस्त्र पहनें। स्नान के बाद पूजा में उपयोग होने वाली सारी सामग्री जैसे बेलपत्र, धतूरा, फूल, धूप, दीप, रोली, चावल, कलश, फल, मिठाई, और सुहाग का सामान (चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, आदि) एकत्रित करें। फिर व्रत का संकल्प लें। हाथ में जल लेकर भगवान शिव और माता पार्वती का स्मरण करते हुए व्रत की नीयत करें। एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, भस्म और सफेद पुष्प अर्पित करें, और माता पार्वती को कुमकुम, मेहंदी, चूड़ी, सिंदूर, बिंदी और अन्य सुहाग सामग्री चढ़ाएं। धूप और दीप जलाकर विधिवत पूजा करें, मंत्रोच्चारण करें और आरती करें। पूजा के बाद कजरी तीज की व्रत कथा का श्रद्धापूर्वक पाठ करें और घर के अन्य सदस्यों को भी सुनाएँ। दिनभर उपवास रखें। यह निर्जल या फलाहार व्रत हो सकता है, जैसी आपकी क्षमता और परंपरा हो। रात्रि को चंद्रमा के उदय पर चंद्र दर्शन करें और उसे अर्घ्य अर्पित करें। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करें और भगवान शिव-पार्वती से सुख-समृद्धि की कामना करें।