पितरों का तर्पण करने से पूर्वज तृप्त होते हैं
लखनऊ। सनातन धर्म में पितृ पक्ष का खास महत्व है। यह पक्ष पितरों को समर्पित माना जाता है। इस दौरान पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। पितृपक्ष में पितरों का तर्पण करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। वहीं, व्यक्ति विशेष पर पितरों की कृपा बरसती है। पितृ पक्ष के दौरान इंदिरा एकादशी मनाई जाती है। इंदिरा एकादशी के दिन पितरों का तर्पण करने से पूर्वज तृप्त होते हैं। उनकी भक्ति आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति पर भगवान विष्णु और पितरों की कृपा बरसती है। पितृ पक्ष के दौरान इंदिरा एकादशी मनाई जाती है। इंदिरा एकादशी के दिन पितरों का तर्पण करने से पूर्वज तृप्त होते हैं। उनकी भक्ति आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही व्यक्ति पर भगवान विष्णु और पितरों की कृपा बरसती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरूआत 17 सितंबर (अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार यानी 16 सितंबर की रात) को देर रात 12 बजकर 21 मिनट होगी। वहीं, एकादशी तिथि का समापन 17 सितंबर को देर रात 11 बजकर 39 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। इसके लिए 17 सितंबर को इंदिरा एकादशी मनाई जाएगी।
उदया तिथि के आधार पर, यह व्रत 17 सितंबर को रखा जाएगा। इस दिन सिद्ध योग और साध्य योग का संयोग रहेगा, जो पूजा और व्रत के प्रभाव को और अधिक बढ़ाएगा।
हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन इंदिरा एकादशी मनाई जाती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति द्वारा जाने-अनजाने में किए गए समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही साधक को मृत्यु उपरांत उच्च लोक में स्थान मिलता है। इस दिन श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इंदिरा एकादशी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, इंदिरा एकादशी 2025 में 17 सितंबर 2025, बुधवार को मनाई जाएगी।
एकादशी तिथि प्रारंभ : 17 सितंबर 2025, रात 12:21 बजे
एकादशी तिथि समापन : 17 सितंबर 2025, रात 11:39 बजे
व्रत पारण का समय : 18 सितंबर 2025, सुबह 6:15 बजे से 8:38 बजे तक
शुभ पूजा मुहूर्त : सुबह 7:45 बजे से 9:15 बजे तक और दोपहर 1:30 बजे से 3:00 बजे तक
इंदिरा एकादशी का महत्व
इंदिरा एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यंत विशेष है। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से न केवल व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है, बल्कि उनके पितरों को भी नरक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है। यह व्रत सात पीढ़ियों तक के पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करने में सक्षम माना जाता है। पुराणों में वर्णित है कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को इस व्रत का महत्व बताया था। इसके अतिरिक्त, इंदिरा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को हजारों वर्षों की तपस्या, कन्यादान और अन्य पुण्य कार्यों के समान फल प्राप्त होता है। यह व्रत पापों का नाश करता है और मृत्यु के पश्चात बैकुंठ धाम में स्थान दिलाने में सहायक होता है।
इंदिरा एकादशी का पूजन विधि
एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। संकल्प मंत्र ‘अद्य स्थित्वा निराहार: सर्वभोगविवर्जित:। श्वो भोक्ष्ये पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत’ अर्थ : हे कमलनयन भगवान नारायण ! आज मैं सभी भोगों से अलग होकर निराहार रहूंगा और कल भोजन करूंगा। आप मुझे शरण दें। पूजा स्थल को साफ करें और एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाएं। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। भगवान विष्णु को दूध, दही, घी, मिश्री और शहद से बने पंचामृत से अभिषेक करें। पीले फूल, तुलसी दल, पीला चंदन, अक्षत और केसर वाली खीर का भोग लगाएं। शुद्ध घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं और सुगंधित अगरबत्ती या कपूर से वातावरण को शुद्ध करें। पितृपक्ष में होने के कारण इस दिन पितरों का तर्पण और पिंडदान करें। यह कार्य तीन बार करना चाहिए ताकि तीन पीढ़ियों के पितरों को मोक्ष प्राप्त हो। पूजा के अंत में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें। प्रसाद को ब्राह्मणों, गाय, कौवे और कुत्ते को अर्पित करें। अगले दिन (द्वादशी) शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें। पारण से पहले तुलसी पत्र मुंह पर रखें और गंगाजल पीएं। इसके बाद सात्विक भोजन ग्रहण करें।