फ्रांस को लेकर दुनियाभर में अधिकांश मुस्लिम देश और मुसलमान आक्रोशित हैं, लेकिन जेहादी आतंकवाद से पीड़ित फ्रांस अगर अपने नागरिकों की सुरक्षा के समुचित कदम उठाता है तो यह उसका अधिकार है और उसे ऐसा करना भी चाहिए। ऐसे में मुस्लिम देशों की नाराजगी का क्या मतलब है? जिस हरकत के लिए पूरी दुनिया को शर्मसार होना चाहिए, हैरत की बात यह है कि उस हरकत की न केवल अनदेखी कर रहे हैं बल्कि उस पर की गई फ्रांस के राष्ट्रपति की टिप्पणी के खिलाफ गैरजरूरी गोलबंदी का नाटक दिखा रहे हैं।
गौरतलब है कि 16 अक्टूबर 2020 को पेरिस से 35 किलोमीटर दूर कॉनफ्लैंस सेंट-होनोरिन में एक 18 वर्षीय मुस्लिम युवक अब्दुल्लाह अंजोरोफ ने 47 वर्षीय शिक्षक सैमुअल पैटी का सिर कलम कर दिया था। यह बर्बर हत्यारा फ्रांस में चेचेन्या से आया शरणार्थी था। इसकी बर्बरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसने न केवल शिक्षक की बेरहमी से हत्या की बल्कि उसके सिर विहीन शव का वीडियो भी बनाया और इस क्लिप को आॅनलाइन पोस्ट भी कर दिया।
जबकि इतिहास इस शिक्षक का कसूर सिर्फ इतना था कि इसने अपनी कक्षा के छात्रों को अभिव्यक्ति की आजादी के इतिहास का पाठ पढ़ाते हुए, मोहम्मद साहब के उस क ैरिकेचर को दिखाया था, जिस पर कई साल पहले हंगामा हुआ था। यह शिक्षक न तो इस कैरिकेचर के बनाये जाने को सही ठहरा रहा था और न ही इसके बनाये जाने पर हुए हंगामे के लिए मुसलमानों की आलोचना कर रहा था। यह तो सिर्फ अपने छात्रों को यह बता रहा था कि अभिव्यक्ति की आजादी के इतिहास को कहां कहां से गुजरना पड़ता है।
लेकिन इस करपंथी अब्दुल्लाह अंजोरोफ को शिक्षक के शिक्षण का यह ढंग इतना बुरा लगा कि उसने शिक्षक का गला काट दिया। इसी शिक्षक की याद में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए 25 अक्टूबर 2020 को फ्रांस के 42 वर्षीय राष्ट्रपति इमैनुअल मैंक्रो ने कहा कि फ्रांस अभिव्यक्ति के अपने संस्कारों से समझौता नहीं करेगा। गौरतलब है कि फ्रांस के राष्ट्रपति ने इसके पहले अब्दुल्लाह अंजोरोफ के बर्बर हमले को इस्लामिक आतंकवाद बताया था और यह भी कहा था कि ऐसे इस्लाम से पूरी दुनिया को खतरा है।
साथ ही मैंक्रो ने अपनी यह आंशका भी जाहिर की थी कि इस्लामिक आतंकवाद के चलते फ्रांस में मौजूद 60 लाख से ज्यादा मुसलमान मुख्य धारा से पीछे जा सकते हैं। कुल मिलाकर उनका वही कहना था, जो आतंकवाद के तमाम दूसरे आलोचक कहते हैं। लेकिन इस्लामिक जगत ने मैंक्रो की इस टिप्पणी को न सिर्फ इस्लाम के विरूद्ध टिप्पणी करार दिया बल्कि यह भी जताने की कोशिश की कि फ्रांस के राष्ट्रपति शार्ली एब्दो मैगजीन कुछ साल पहले बनाये गये मोहम्मद साहब के कार्टूनों को सही ठहरा रहे हैं।