हरियाली अमावस्या आज, स्नान-दान का विशेष महत्व

श्राद्ध-कर्म करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है
लखनऊ। हिंदू धर्म में हरियाली अमावस्या का विशेष महत्व है। भोलेनाथ को सावन का महीना अत्यंत प्रिय है। सावन माह की अमावस्या को हरियाली अमावस्या या श्रावण अमावस्या कहा जाता है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान व दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं। हरियाली अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान करने, पिंडदान करने व श्राद्ध-कर्म करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान शंकर का जलाभिषेक करने से जीवन सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है।हिंदू पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि 24 जुलाई को सुबह 02 बजकर 28 मिनट पर प्रारंभ होगी और 25 जुलाई को सुबह 12 बजकर 40 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि में हरियाली अमावस्या 24 जुलाई 2025 को मनाई जाएगी।

हरियाली अमावस्या पर स्नान-दान का मुहूर्त
हरियाली अमावस्या पर स्नान-दान का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:15 से सुबह 04:57 मिनट तक रहेगा। अभिजित मुहूर्त दोपहर 12 बजे से दोपहर 12:55 बजे तक रहेगा। गुरु पुष्य योग व अमृत सिद्धि योग शाम 04:43 बजे से प्रारंभ होगा। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन रहेगा।

हरियाली अमावस्या का महत्व
नारद पुराण के अनुसार, श्रावण मास की अमावस्या को दान, तप, पूजन, स्नान व ध्यान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि व्रत और पूजा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

जीवन में सुख-शांति के लिए करें ये उपाय
हरियाली अमावस्या के दिन किसी गरीब व जरूरतमंद को अन्न का दान करना चाहिए। इस दिन गाय को चारा खिलाना चाहिए। हरियाली अमावस्या के दिन मछलियों को आटे की गोलियां डालें।

अमावस्या पूजन की विधि
सुबह जल्दी उठकर गंगा नदी में स्नान करें या घर पर ही अपने स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर पवित्र स्नान करें। पूजा अनुष्ठान शुरू करने से पहले घर को साफ करें। ब्राह्मण के लिए सात्विक भोजन बनाएं। परिवार के बड़े सदस्य ब्राह्मण को आमंत्रित करें और पितृ तर्पण करें। ब्राह्मण को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा के साथ कपड़े और जूते आदि भी दान करें। ब्राह्मण के पैर छूकर आशीर्वाद लें। गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों को खाना खिलाएं। बाद में सात्विक भोजन करके अपना व्रत खोलें। इस तिथि की पूजा मध्याह्न काल के दौरान की जाती है,क्योंकि यह विशेष अवधि पितरों को समर्पित है। इस दिन किसी भी प्रकार का तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह वर्जित है। शाम के समय मंदिर जाएं और सरसों के तेल का दीपक पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं।

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