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भारत बंद को प्रासपा का पूरा समर्थन
लखनऊ। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के अध्यक्ष शिवपाल यादव ने बुधवार को कहा कि नये अध्यादेशों के तहत सरकार मंडियों को छीनकर कॉरपोरेट कंपनियों को देना चाहती है। ज़्यादातर छोटे जोत के किसानों के पास न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए लड़ने की ताकत है और न ही वह इंटरनेट पर अपने उत्पाद का सौदा कर सकते हैं। इससे तो किसान बस अपनी जमीन पर मजदूर बन के रह जायेगा।
शिवपाल ने कहा कि इन अध्यादेशों के तहत सरकार ने देश के अन्नदाताओं पर आजादी के बाद का सबसे बड़ा हमला किया है। सरकार के इन तथाकथित सुधारों में न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई चर्चा नहीं है। उन्होंने कहा कि आज अगर चौधरी चरण सिंह, लोहिया और समाजवादियों की विरासत सत्ता में होती तो अन्नदाताओं के साथ इतना बड़ा छल नहीं हो सकता था।
प्रासपा अध्यक्ष ने कहा कि किसान संगठनों के आह्वान पर 25 सितंबर को आयोजित होने वाले ‘भारत बंद’ को हमारा सम्पूर्ण समर्थन है और उनकी पार्टी किसानों के संघर्ष में सहभागी है।
उन्होंने कहा कि इन अध्यादेशों के तहत किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन के रह जायेगा। इस अध्यादेश के जरिये केंद्र सरकार कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है। लेकिन सरकार यह बात भूल जाती है कि हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती। क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है और हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है।
शिवपाल ने कहा कि सरकार जिसे सुधार कह रही है वह अमेरिका, यूरोप जैसे कई देशों में पहले से ही लागू है बावजूद इसके की वहां के किसानों की आय में कमी आयी है। 1960 के दशक से किसानों की आय में गिरावट आयी है। इन सालों में यहां पर अगर खेती बची है तो उसकी वजह बड़े पैमाने पर सब्सिडी के माध्यम से दी गई आर्थिक सहायता है।
प्रसपा अध्यक्ष ने कहा कि इस अध्यादेश के तहत बड़े कारोबारी सीधे किसानों से उपज खरीद कर सकेंगे, लेकिन इस देश में 80 फ़ीसदी छोटे जोत वाले किसान हैं, जिनके पास मोल-भाव करने की क्षमता नहीं है, वे इसका लाभ कैसे उठाऐंगे? एक राष्ट्र, एक मार्केट बनाने की बात करने वाली सरकार को यह नहीं पता कि जो किसान अपने जिले में अपनी फसल नहीं बेच पाता है, वह राज्य या दूसरे जिले में कैसे बेच पायेगा। क्या किसानों के पास इतने साधन हैं और दूर मंडियों में ले जाने में खर्च भी तो आयेगा।
इस अध्यादेश की धारा 4 में कहा गया है कि किसान को पैसा तीन कार्य दिवस में दिया जाएगा। किसान का पैसा फंसने पर उसे दूसरे मंडल या प्रांत में बार-बार चक्कर काटने होंगे। न तो दो-तीन एकड़ जमीन वाले किसान के पास लड़ने की ताकत है और न ही वह इंटरनेट पर अपना सौदा कर सकता है। यही कारण है किसान इसके विरोध में है।