शादियों में गाई जाने वाली गारी लोक शैली है : मालिनी अवस्थी

केकेसी में लिट फेस्ट के दूसरे संस्करण का शुभारंभ हुआ
लखनऊ। श्री जय नारायण मिश्र पीजी कॉलेज में दो दिवसीय केकेसी लिट फेस्ट के दूसरे संस्करण का आयोजन हुआ। मुख्य अतिथि प्रख्यात लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने शुभारंभ किया। उन्होंने बताया कि संयुक्त परिवार ही आज संस्कृति की वास्तविक धरोहर है। पूरे विश्व में इसकी कमी है। मालिनी अवस्थी ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप की बात दोहराई। जिसमें उन्होंने कहा कि परिवार ही सब कुछ है और अब हमको अपने पुराने फॉर्मेट यानी संयुक्त परिवार की तरफ लौटना है। उन्होंने कहा कि यहीं लखनऊ के गणेशगंज में उनका ददिहाल था। गणेशगंज में जैसे पूरा लखनऊ बसता था। उन्होंने बताया कि गणेशगंज एक पूरी संस्कृति है। आज हम किस्सा सुनने के लिए किसी मंच या कलाकार को ढूंढते हैं। किंतु यह किस्से हमें सरलता से अपने घर के बुजुर्गों से सुनने को मिल जाते थे। जो रस उनके मुंह से इन किस्सों को सुनने में मिलता था, वैसा आनंद और कहीं नहीं था।
उन्होंने कहा कि केकेसी में उनके ताऊ पंडित अमरनाथ मिश्रा भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर थे। उनके यहां संयुक्त परिवार की प्रथा थी। उन्होंने कहा कि किस्सा सुनाने और सुनने वालों दोनों के पास इत्मिनान होना चाहिए। इस मौके पर महाविद्यालय मंत्री प्रबंधक जीसी शुक्ला समेत कई अन्य उपस्थित रहे। लिट फेस्ट-2 के प्रथम सत्र में मालिनी अवस्थी से डॉ. अंशुमालि शर्मा रूबरू हुए। एक सवाल के जवाब में पद्मश्री मालनी अवस्थी ने कहा कि शास्त्रीय संगीत का आनंद आप तभी ले सकते हैं जब आपको शास्त्रीय संगीत की समझ हो। किंतु लोक कलाएं सभी के हृदय पर राज करती हैं। उन्होंने उदाहरण दिया कि शादियों में गाई जाने वाली गारी एक अद्भुत लोक शैली है। भगवान राम ने भी अपने ससुराल में उन्हें सुनाए गए गारी के गीत आशीर्वाद के रूप में लिए। लोगों के कहने पर उन्होंने गारी की दो पंक्तियां कहीं गोरी से नैना लड़े होइहैं, जेल खाने में समधि पड़े होइहैं, खद्दर का कुर्ता, खद्दर का पजामा-उनके कुर्ता पर नंबर पड़े होइहैं… गाकर सुनाई।

लोक कलाओं और गीतों की शिक्षा दें
मालिनी अवस्थी ने हाल ही में दिवंगत भोजपुरी लोक गायिका शारदा सिन्हा के बारे में बताया कि लोग कहते हैं कि भोजपुरी को फिल्मों की वजह से समृद्धि मिली लेकिन मैं ऐसा नहीं मानती। भोजपुरी भाषा को जो प्रबलता शारदा सिन्हा से मिली वह अतुलनीय है। उन्होंने महाविद्यालय प्रबंधन से कॉलेज के छात्रों तक लोक कलाओं और लोकगीतों की शिक्षा देने की व्यवस्था करने को कहा। जिस पर महाविद्यालय प्रबंधन ने भी सहमति दी।

सेवा और शौक दोनों व्यक्ति के लिए जरूरी: डॉ. हरिओम
लिटफेस्ट के तीसरे सत्र में प्रो. अनिल त्रिपाठी ने प्रख्यात गजल गायक और आईएएस डॉ. हरिओम से गुफ्तगू की। एक सवाल के जवाब में डॉ. हरिओम ने कहा कि हिंदी कविता को समझने के लिए इसके व्यापक स्वरूप को समझना जरूरी है। डॉ. हरिओम ने कहा कि प्रशासनिक सेवा और अपने शौक में एक संतुलन बनाना था। क्योंकि सेवा और शौक दोनों ही व्यक्ति के लिए जरूरी होते हैं।

फॉलेन इन लव नहीं राइजेन इन लव कहिए…
डॉ. हरिओम ने छात्र-छात्राओं से कहा कि जमीन, जुबान और तहजीब में हमेशा संबंध बनाकर रखें। कभी यह न कहें कि आई हैव फॉलेन इन लव, हमेशा कहें कि आई हैव राइजेन इन लव अर्थात प्यार में हम गिरे नहीं बल्कि हमारा उत्थान हुआ। इस कथन पर युवा छात्रों ने जमकर तालियां बजाईं। डॉ. हरिओम ने अपनी मशहूर गजल तेरे इश्क में मारा हुआ हूं मैं, सिकंदर हूं मगर हारा हुआ हूं मैं… भी गाकर सुनाई।

प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए आठ घंटे की पढ़ाई पर्याप्त
डॉ. हरिओम से छात्र-छात्राओं ने भी कई प्रश्न किए। छात्रों को जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि यदि आप प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं तो आठ घंटे की पढ़ाई पर्याप्त होगी। आठ घंटे आप जमकर सोएं और आठ घंटे आपका जो दिल करे वो कीजिए। उन्होंने असफल होने वाले छात्र-छात्राओं से कहा कि वह निराश न हों, किसी क्षेत्र में आप असफल होते हैं तो दूसरे क्षेत्र को चुनिए। हो सकता है उसमें आप शीर्ष पर जाएं।

लखनवी तहजीब जानने के लिए चौक जाइए: आशुतोष शुक्ला
केकेसी लिटफेस्ट के दूसरे सत्र में प्राचार्य प्रो. विनोद चंद्र ने अतिथि वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष शुक्ला का साक्षात्कार किया। उन्होंने कहा कि लखनवी तहजीब आज भी जिंदा है। अगर आपको इनको जानना है तो चौक में जाइए। लखनऊ के कायस्थ, खत्री, शियाओं, बाजपेई और जैन लोगों में अभी भी आप लखनऊ को ढूंढ सकते है। उन्होंने कहा कि लखनऊ की दो चीजें बड़ा मंगल और मोहर्रम सबसे बड़ी पहचान है। उन्होंने बताया कि पहले बड़ा मंगल ऐसे नहीं मनाया जाता था। केवल गुड और चने का प्रसाद मिलता था। लेकिन आज अच्छी बात है कि बहुत सारी चीजें बड़े मंगल पर भंडारा प्रसाद के रूप में वितरित होती है। उन्होंने लखनऊ के तीन साहित्यकारों रघुवीर सहाय, अमृतलाल नागर और भगवती चरण वर्मा की चर्चा की। वहीं उन्होंने यशपाल, केपी सक्सेना, योगेश प्रवीन और कुंवर नारायण आदि को लखनऊ का हस्ताक्षर बताया।

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