किसानों का ट्रैक्टर मार्च और सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का मुख्य काम उसके समक्ष आये किसी कानूनी प्रश्न की सांविधानिक वैधता का मूल्यांकन करना है, उसका काम एग्जीक्यूटिव का नहीं है। लेकिन पिछले कुछ समय के दौरान देखा गया है कि अनेक मामलों में उससे देश के प्रशासनिक कार्यों में दखल की अपेक्षा की गई या ऐसा करने में उसकी खुद की भी दिलचस्पी प्रतीत हुई। जाहिर है कि इस बात की आलोचना भी हुई, कहीं दबे स्वर में तो कहीं मुखर होकर।

यह आरोप भी लगे कि जो काम सरकार को या संसद को करना चाहिए वह सुप्रीम कोर्ट के जरिये कराया जा रहा है या कराने का प्रयास किया जा रहा है। संभवत: इन्हीं चर्चाओं व आलोचनाओं के चलते अब सुप्रीम कोर्ट ने 72वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली में दखल देने से इंकार कर दिया है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े, न्यायाधीश एल नागेश्वर राव और न्यायाधीश विनीत सरण की खंडपीठ ने केंद्र को यह स्पष्ट करते हुए कि कानून व्यवस्था बनाये रखने की विशिष्ट जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस की है और ट्रैक्टर रैली से उत्पन्न होने वाली आशंकित स्थिति से निपटने का काम सांविधानिक अदालत का नहीं है, कहा, दिल्ली में प्रवेश का प्रश्न कानून व्यवस्था से संबंधित मुद्दा है जिसे पुलिस को देखना चाहिए।

तीन नये कृषि कानूनों (जिनको लागू करने पर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की रोक है) को रद्द कराने और एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) को कानूनी बनाने के लिए देश के किसान पिछले 56 दिनों से कड़ाके की ठंड, बारिश व इलेक्ट्रनिक मीडिया के अनर्गल आरोपों का सामना करते हुए दिल्ली के सिंघु बर्डर व अन्य सीमाओं पर धरना दिए बैठे हैं।

इस समस्या का समाधान निकालने हेतु किसानों और केंद्र सरकार के बीच अब तक दस चक्र की वार्ता हो चुकी है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला है, क्योंकि दोनों ही पक्ष अर्थात सरकार और किसान संयुक्त किसान मोर्चा अपनी अपनी जिदों पर अड़ी हुई हैं- किसानों को तीनों कृषि कानून रद्द व एमएसपी की कानूनी गारंटी चाहिए जबकि सरकार किसी कीमत पर भी नये कृषि कानूनों को निरस्त करने के पक्ष में नहीं है और एमएसपी पर वह यथास्थिति बनाये रखना चाहती है, जिसका अर्थ है कि वह एमएसपी की घोषणा तो यथावत करती रहेगी लेकिन फसल की प्राइवेट खरीद में किसानों को एमएसपी मिलने की गारंटी या कानूनी सुरक्षा प्रदान नहीं करेगी।

इस पृष्ठभूमि में अपनी अपनी जिद मनवाने के लिए जहां सरकार अपने तरीके अपना रही वहीं किसान अपनी दबाव योजनाएं बना रहे हैं। दोनों तरफ से जो इस सिलसिले में अभी तक प्रयास हुए हैं, वह किसी से छुपे हुए नहीं हैं, उन पर काफी चर्चाएं भी हो चुकी हैं, इसलिए उन्हें दोहराने से कोई लाभ नहीं है।

फिलहाल का मुद्दा यह है कि 72वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसान राष्ट्रीय राजधानी में ट्रैक्टर रैली निकालना चाहते हैं और सरकार चाहती है कि वह ऐसा न करें, इसलिए उसने न्यायिक आदेश लेने का प्रयास किया, खासकर इस वजह या चिंता से भी कि अगर किसानों की ट्रैक्टर रैली को रोकने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा तो उसके राजनीतिक प्रभावों को कम से कम किया जा सके। ऐसे में यह प्रश्न प्रासंगिक हो जाता है कि आगामी 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली दिल्ली में निकलेगी या नहीं निकलेगी? इस सवाल का जवाब देने से पहले एक बात बताना आवश्यक है।

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