एक साथ महामारी, सीमा पर तनाव, गिरती अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोजगारी के बीच देश के लिए बड़ी राहत की बात यह है कि इस साल कृषि क्षेत्र की प्रगति ठीक-ठाक हो रही है। भारत सरकार ने खरीफ फसलों के लिए लाभकारी एमएसपी घोषित कर दिया है, लेकिन खरीफ मौसम में फसलों की बुआई किसान एमएसपी देखकर नहीं बल्कि मानसून के सहारे करता है।
इस साल मानसून की प्रगति बहुत अच्छी है। कई साल बाद एकदम सही समय पर मानसून के दस्तक देने के बाद से पूरे देश में इसकी अच्छी प्रगति देखने को मिल रही है और एक जून से अब तक करीब 31 फीसद वर्षा भी अधिक हुई है। जून में प्री मानूसन की बारिश अच्छी होने और मानसून के समय पर पहुंचने के कारण कृषि कार्यों में भी तेजी देखने को मिल रही है जिसकी पुष्टि भारत सरकार के आंकड़े भी करते हैं। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो अब तक खरीफ की सभी फसलों को मिलाकर 131.34 लाख हेक्टेयर की बुआई हो चुकी है जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 39.38 फीसद अधिक है।
लगभग चालीस फीसद अधिक बुआई होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहला कारण तो यही है कि जून में अच्छी बारिश एवं समय पर मानसून आने की सूचना के कारण किसानों ने कृषि कार्य को सही समय पर शुरू कर दिया और इसमें अब अच्छी प्रगति देखने को मिल रही है।
बुआई अच्छी होने के पीछे प्रवासी श्रमिकों की गांव वापसी भी एक बड़ा कारण है। लॉकडाउन में ढील मिलने के बाद दिल्ली, मुम्बई और पंजाब जैसे शहरों से बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों की वापसी हुई है और ये श्रमिक अब खेती में पसीना बहाकर देश की खाद्य सुरक्षा और समृद्धि को बेहतर करने में जुट गये हैं।
खरीफ फसलों की जो करीब 37.11 लाख हेक्टेयर अधिक बुआई हुई है उसमें सबसे सुखद पहलू यह है कि धान की बुआई तो अभी पिछले साल के लगभग बराबर ही हुई है, लेकिन दलहनी फसलों की बुआई 4.58 लाख हेक्टेयर हो चुकी है जो पिछले साल की तुलना में लगभग दोगुना है। इसी तरह तिलहनी फसलों की बुआई पिछले साल की तुलना में सात सौ फीसद से अधिक हो चुकी है। गौरतलब है कि देश खाद्यान्न उत्पादन के मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर है।
लॉकडाउन के दौरान अस्सी करोड़ लोगों को नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण के बावजूद गोदामों में गेहूं रखने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है लेकिन इसके विपरीत दलहन और तिलहन उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भरता की स्थिति नहीं आयी है। हर साल बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों का आयात विदेशों से करना पड़ता है और दालों के दाम भी कई बार उत्पादन एवं आपूर्ति कम होने के कारण बहुत बढ़ जाते हैं।
ऐसे में दलहन और तिलहन की अधिक बुआई के जो आंकड़े आ रहे हैं वे और सुखद हैं। क्योंकि इससे देश में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ेगा और आयात से निर्भरता कम होगी। कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और अगर उत्पादन के आंकड़े अच्छे होते हैं तो अन्य क्षेत्रों में भी अच्छी प्रगति होती है। सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि कृषि उत्पादन अच्छा रहने पर महंगाई बढ़ने का खतरा नहीं रहता है और यह सबको सुकून देता है।