महंगाई से राहत की उम्मीद

रतीय रिजर्व बैंक द्वारा के्रडिट पालिसी की द्वि मासिक समीक्षा से महज चार दिन पूर्व लोकसभा में एक बेहद दूरदर्शी, विकासपरक और निवेश बढ़ाने वाला बजट पेश करके वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बहुत कुछ आरबीआई के काम को आसान कर दिया था। निर्मला सीतारमन ने निवेश एवं विकासोन्मुख बजट प्रस्तुत कर एक तरह से देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के आरबीआई के प्रयासों के साथ पहले ही सरकार की एकतुटता दिखा थी। सरकार ने फ्रंट फुट पर आकर कोरोना की शिकार अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश बढ़ाने के लिए सभी जरूरी कदम उठाने की पहल की।

रोड, पोर्ट, रेलवे, कृषि, सिंचाई व अन्य बुनियादी संरचना के क्षेत्र में अगले पांच सालों में एक लाख करोड़ से अधिक निवेश की बात कही है। वहीं बीमा, वित्त, डिफेंस, मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करने के लिए नियमों को आसान किया है। सरकार के इस पहल के बाद आरबीआई को फिलहाल अपनी तरफ से कोई बड़ी पहल करने की जरूरत नहीं थी। संभवत: इसीलिए आरबीआई ने नीतिगत दरों में बिना किसी परिवर्तन के वित्तीय संस्थाओं के सुदृढ़ीकरण प्रयासों को जारी रखने का संकल्प जताया है।

आरबीआई ने निवेश जुटाने के प्रयासों में कोई अड़चन न आये इसलिए मार्च तक सीआरआर 3.5 फीसद तक रखने के साथ ही रेपो रेट को पूर्व के 4 फीसद पर रखा है। रिवर्स रेपो को भी 3.35 फीसद पर बनाये रखा गया है। लेकिन सरकार ने बजट में विकास को तेज करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश बढ़ाने की दिशा में जो प्रयास किया है और कोरोना महामारी के कारण अर्थव्यवस्था को जो रहात पैकेज दी गयी है उससे महंगाई बढ़ने का खतरा उत्पन्न हो गया है।

चालू वित्तीय वर्ष अर्थात 2020-21 में 9.5 फीसद के फिजिकल डिफिसिट के साथ अगले वर्षा अर्थात 2021-2022 में राजकोषीय घाटा 6.8 फीसद प्रस्तावित है। इस तरह पिछले छह सालों तक लगातार राजकोषीय अनुशासन पर कायम रही सरकार कोविड महामारी और विकास की अपेक्षाओं के मद्देनजर राजकोषीय अनुशासन से कुछ हद तक हटती हुई नजर आयी है और यह जरूरी भी है। लेकिन इससे महंगाई का बड़ा खतरा देश के सामने है।

वैसे भी भारत में विशेषकर कृषि जिंसों का बेहतर प्रबंधन न होने के कारण पर्याप्त उत्पादन के बावजूद समय-समय पर दाल और खाद्य तेल के साथ आलू, प्याज, टमाटर, लहसुन जैसी सब्जियां महंगाई का तांडव करती रहती हैं। ऐसे में जब सरकर अपने आय से अधिक खर्च करने जा रही है और यह सिलसिला आगामी पांच-छह साल तक जारी रहने का अनुमान है तब अगर राजकोषीय घाटा और खाद्य पदार्थों की आपूर्ति की लचर व्यवस्था का कॉकटेल मिल जाये तो महंगाई अगला-पिछला सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर सकती है।

लेकिन यह राहत की बात हो सकती है कि आरबीआई ने चालू वित्तीय वर्ष की आखिरी तिमाही को लेकर पूर्व में जो मुद्रा स्फीति का अनुमान लगाया था वह 5.8 था, लेकिन खाद्य पदार्थों में आपूर्ति पक्ष काफी मजबूत होने के कारण मार्च तक महंगाई का अनुमान 5.2 फीसद कर दिया गया है और यह आम आदमी के लिए बड़ी राहत हो सकती है। जहां तक विकास की बात है तो भारत को लेकर अब सभी एजेंसियां बहुत सकारात्मक हैं। इसीलिए आईएमएफ ने 11.5 फीसद, आर्थिक समीक्षा में 11 फीसद और आरबीआई ने 10.5 फीसद विकास का अनुमान प्रस्तावित किया है और यह थोड़ा कंजरवेटिव जरूर है लेकिन ठीक भी है।

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