नई दिल्ली। सितंबर को भारतीय नौसेना के अधिकारियों ने अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया सैन्य गठबंधन AUKUS की घोषणा की। इस घोषणा से भारतीय नौसेना के अधिकारी लोग निराश हैं। AUKUS का काम भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते असर को बेअसर करने का है। इसे लेकर अमेरिका और ब्रिटेन ऑस्ट्रेलिया के लिए 8 न्यूक्लियर संचालित हमलावर पनडुब्बियां का डिजायन और निर्माण करेंगे।
भारतीय नौसेना के टॉप अधिकारियों और नौसेना के दिग्गजों ने न्यूक्लियर रिएक्टर प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी पर भारत और अमेरिका के बीच सहयोग की संभावना को खारिज कर दिया है। करीब दो साल पहले ऑस्ट्रेलिया में ट्रैक 2 संवाद के दौरान यह बात करीब-करीब साफ हो गई थी। भारत के पास 2016 से परमाणु पनडुब्बी हैं। भारत दुनिया का छठा ऐसा देश है जिसके पास परमाणु पनडुब्बी हैं। 2016 में भारत ने आईएनएस अरिहंत को चालू किया था। हालांकि अरिहंत एक परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी है। बोले तो SSBN। लेकिन भारत एक SSN चाहता है। SSN, SSBN को एस्कॉर्ट करने से लेकर अपने वाहक युद्ध समूहों और दुश्मन के युद्धपोतों का शिकार करने तक कई सामरिक मिशन कर सकती है।
SSN को तकनीकी रूप से सबसे जटिल सैन्य प्लेटफॉर्म माना जाता है। ये पानी के भीतर जबरदस्त स्पीड देने में सक्षम हैं। इन्हें पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के विपरीत, अपनी बैटरी को रिचार्ज करने के लिए सतह की जरूरत नहीं होती है। ये पारंपरिक पनडुब्बियों के हथियार भार का दोगुना तक ले जा सकते हैं और दोगुनी तेजी से आगे बढ़ सकते हैं।
70 से अधिक ऑपरेशनल न्यूक्लियर पनडुब्बियों के साथ अमेरिका के पास रूस, फ्रांस और ब्रिटेन की तुलना में सबसे अधिक न्यूक्लियर पनडुब्बियां हैं। अमेरिका सबसे अधिक जटिल न्यूक्लियर रिएक्टर का इस्तेमाल करते हैं। अमेरिकी वर्जिनिया सीरीज के SSN इस तरह से तैयार किए गए हैं कि उन्हें 33 सालों तक फ्यूल की जरूरत नहीं है। SSN की सबसे ख़ास बात इसकी हाई परफॉरमेंस न्यूक्लियर रिएक्टर है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के केवल पांच स्थायी सदस्यों के पास यह तकनीक है। भारत न्यूक्लियर रिएक्टर से लैस SSN का निर्माण करना चाहता है। इस प्रस्ताव को इसी साल कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी के सामने रखा गया है। अगर इस प्रोजेक्ट को मंजूरी मिल जाती है, तो भी पहली इकाई 2032 से पहले सेवा में आने की उम्मीद नहीं है।
कुछ साल पहले एक डिफेंस एक्सपर्ट ने बताया था कि भारत हमसे वह तकनीक मांग रहा है जिसे हमने अपने सबसे करीबी सहयोगी ब्रिटेन को भी नहीं देते। एक अमेरिकी एडमिरल ने अपने भारतीय समकक्ष से कहा था कि नौसेना रिएक्टर प्रोपल्शन के मुद्दे पर राजनीतिक स्तर पर चर्चा करनी होगी। लेकिन यह साफ नहीं है कि इसे लेकर कभी कोई चर्चा हुई या नहीं।