लॉकडाउन तिमाही में जब अचानक जीडीपी में 23.9 फीसद की गिरावट दर्ज की गयी थी तब ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो तमाम सही-गलत तर्कों-कुतर्कों के के जरिए अर्थव्यवस्था के ध्वस्त होने की घोषणा करने लगे थे, लेकिन जो भारत की अंतर्निहित संभावनाओं पर भरोसा करते थे उनका तर्क यही था कि जब वित्तीय वर्ष की प्रथम तिमाही में दो महीने कंपलीट लॉकडाउन रहा तो फिर जीडीपी कहां से आती।
लॉकडाउन के कारण पहली तिमाही में भारी गिरावट के बाद जब अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई तो आर्थिक गतिविधियां भी धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगीं जिसकी बानगी दूसरी तिमाही के जीडीपी नतीजों में दिखी। पहली तिमाही में 23.9 फीसद और दूसरी तिमाही में 7.5 फीसद की गिरावट के बाद अर्थव्यवस्था कोविड के पूर्व स्तर पर पहुंच गयी है और चालू वित्तीय वर्ष की बाकी दो तिमाहियों में महज 0.1 फीसद की गिरावट का अनुमान आर्थिक सर्वे में लगाया गया है।
पहली छमाही में जीडीपी में लगभग 15.7 फीसद की भारी गिरावट के बाद जिस तरह दूसरी छमाही में तेजी रिकवरी के साथ कोरोना के पूर्व स्तर पर पहुंच गयी है, उससे पूरे साल में जीडीपी संकुचन घटकर 7.7 फीसद रहने का अनुमान है।
हालांकि लॉकडाउन के कारण जो शिथिलता आयी है उससे पूरी तरह उबरने में दो साल लगेंगे लेकिन अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए जो तमाम पैकेज दिये गये, कोरोना काल में उद्यमिता और इनोवेशन का जो दौर चला, बुनियादी ढांचा, कृषि एवं हेल्थ केयर सेक्टर में जो भारी निवेश हुआ उसका असर वित्तीय वर्ष 2021-22 में देखने को मिलेगा जब इतिहास में पहली बार हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ़ते हुए दोहरे अंकों में विकास दर्ज करेगी।
आर्थिक सर्वे में चालू वित्तीय वर्ष में 7.7 फीसद के संकुचन की बात कही गयी है लेकिन अगले वित्तीय वर्ष में 11 फीसद के विकास अनुमान निश्चिय ही अर्थव्यवस्था के लिए वह गुलाबी परिदृश्य है जिसे देखने-सुनने के लिए अर्थशास्त्री और हरेक समझदार देशवासी वर्षों से लालायित थे। इस तीव्र विकास को बॉटम इफेक्ट जैसी धारणाओं में लपेट कम आंकने की जरूरत नहीं है बल्कि अपनी उपलब्धियों पर गर्व करते हुए प्रगति के इसी जज्बे को आगे बढ़ाते रहने की जरूरत है ताकि वर्ष 2030 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी और दस ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बन जाये।
इसी आर्थिक सर्वे में भारत के सुपर पावर बनने का रास्ता भी दिखाया गया है और वह रास्ता है प्रौद्योगिकी, क्वालिटी एजुकेशन, इनोवेशन, हेल्थ केयर, अनुसंधान एवं विकास और डेमोग्राफिक डिविडेंट का। तेजी से बदलती प्रौद्योगिकी ने तमाम आर्थिक मानदंडों को भी उलट-पलट दिया है। नये परिवेश में भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने के लिए अनुसंधान एवं विकास, कृषि, क्वालिटी एजुकेशन, बेहतर हेल्थ केयर इन्फ्रा और इनोवेशन में भारी निवेश करना होगा ताकि युवाओं की कुशलता बढ़ाकर डेमोग्राफिक डिविडेंट का पूरा लाभ उठाया जा सके।
इसके लिए संसाधनों की भारी जरूरत है और इसकी कमी भी नहीं है। बढ़ता टैक्स कलेक्शन, डबल डिजिट ग्रोथ, दो दशक बाद सरप्लस कैड, यह सब संसाधन ही तो हैं। हमे क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों एवं राजकोषीय अनुशासन की चिंता छोड़कर अपने संसाधनों को मोबलाइज कर प्रगति में निवेश करने की जरूरत है, बाकी सारा काम आयडिया की बाजीगर हमारी युवा आबादी ही कर देगी।