बंगाल में लहूलुहान होता देश का संविधान

पश्चिम बंगाल में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और राज्य के अन्य शीर्ष नेताओं के काफिले पर पथराव और सुनियोजित हमला, राज्य में ध्वस्त हो चुकी कानून-व्यवस्था और बदतर हो चुकी सांविधानिक मशीनरी की दारुण स्थिति को रेखांकित करता है। ऊपर से दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि ममता बनर्जी और उनकी सरकार राज्य प्रशासन की चूक स्वीकारने और अपने उदंड कार्यकर्ताओं पर लगाम कसने के बजाए उल्टे इस घटना के लिए भारतीय जनता पार्टी की ही साजिश करार दे रही है।

जिस अंदाज में ममता बनर्जी ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए कटु और अमर्यादित शब्दों का इस्तेमाल किया है वह राज्य की उदार संस्कृति, मूल्य, परंपरा और विचारों के आदान-प्रदान का अपमान है। उनकी इस अमर्यादित भाषा से तो यही ध्वनित होता है कि वह विधानसभा चुनाव से पहले राज्य के सियासी माहौल को विषाक्त और रक्तरंजित बना देना चाहती हैं। शायद यही कारण है कि वह अपने कार्यकर्ताओं के अराजक कृत्यों पर लगाम कसने के बजाय उल्टे उनका बचाव कर उन्हें प्रोत्साहित कर रही हैं। यह उचित नहीं है। इससे लोकतंत्र की नींव कमजोर और लहूलुहान होती है। लोकमंगल और जनमत की भावना को ठेस पहुंचती है।

गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब ममता सरकार के दौरान भाजपा के शीर्ष नेताओं के काफिले और रोड शो पर पथराव और हमला हुआ हो। याद होगा 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान अमित शाह जब बंगाल में रोड शो कर रहे थे तब भी उनके काफिले पर पत्थरबाजी हुई थी। तब भी ममता सरकार ने अपनी राज्य मशीनरी का बचाव करते हुए इसे भाजपा की साजिश करार दिया था। याद होगा उस समय घाटल सीट से भाजपा उम्मीदवार और पूर्व आइपीएस अधिकारी भारती घोष पर भी तृणमूल के कार्यकर्ताओं ने जानलेवा हमला बोला था।

लेकिन तमाशा कहा जाएगा कि ममता सरकार ने एक भी कार्यकर्ता के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। गौर करें तो पिछले कुछ वर्षों में राज्य में भाजपा के एक सैकड़ा से अधिक कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। राज्य में कानून व्यवस्था किस कदर बिगड़ चुकी है इसी से समझा जा सकता है कि उत्तरी दिनाजपुर की आरक्षित सीट हेमताबाद से भाजपा विधायक देबेंद्र नाथ रे की हत्या कर उनके शव को फंदे से लटका दिया गया। ममता सरकार द्वारा अपराधियों की धरपकड़ करने के बजाए इसे खुदकुशी करार दे दिया गया।

बंगाल के मौजूदा सियासी अराजक हालात को देखते हुए तो अब ऐसा लगने लगा है मानों सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं को चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाने की छूट दे दी है। अन्यथा क्या मजाल की सत्ता मशीनरी सतर्क रहे और विपक्षी दलों के काफिले पर हमला हो। देश के अन्य राज्यों में भी चुनाव होते हैं। लेकिन कहीं भी इस तरह की अराजकता और विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने का दृश्य देखने को नहीं मिलता। लेकिन बंगाल की बात करें तो यहां जब भी चुनाव आते हैं तो हिंसक माहौल निर्मित होना प्रारंभ हो जाता है।

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