अभिषेक नाटकम् में दर्शक श्रीराम कथा से हुए रूबरू

संस्कृत नाटक अभिषेक नाटकम का मंचन
लखनऊ। राजधानी लखनऊ में सोमवार की शाम जब किष्किंधा कांड से राम राज्याभिषेक तक की कथा का मंचन हुआ तो क्लिष्ट भाषा संस्कृत बाधा नहीं बन पायी और कलाकारों के भावपूर्ण अभिनय ने ऐसा समां बांधा कि दर्शकों ने करतल ध्वनि के साथ जी भर कर सराहा और रामलीला का आनंद उठाया. न्रतिभा संस्कृत संस्थान और निशर्ग के संयुक्त प्रयास से मंचित महाकवि भास लिखित संस्कृत नाटक अभिषेक नाटकम को अपने अभिनय से सजाया।
अभिषेकनाटक की कथावस्तु का प्रारम्भ किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड एवं युद्धकाण्डों में वर्णित कथानक के कुछ अंशों को लेकर किया गया है। इस नाटक की विशेषता यह है कि पुरुष पात्रों की संख्या लगभग मात्र तेईस से अधिक है तो दूसरी तरफ कुछ प्रमुख राक्षसियों को छोड़कर जिनकी संख्या अनिश्चित है। स्त्री पात्र के रूप में केवल सीताजी तथा तारा (बालि की पत्नी) ही मंच पर दिखाई गई है। सूत्रधार पारिपार्श्विक के बहाने दर्शकों को सूचित करता है कि सीताजी के अपहरण से संतृप्त श्रीराम तथा अयोध्या के राज्य से वंचित एवं पत्नी पर बलपूर्वक अधिकार से दु:खी वानरपति सुग्रीव परस्पर सहायता के लिए मिलकर सुग्रीव के अग्रज बालि को मारने का प्रयास करत रहे हैं।
सूत्रधार कहता है- इदानीं राज्यविभ्रष्टं सुग्रीवं रामलक्ष्मणौ।पुन स्थापर्यितुं प्राप्ताविन्द्रं हरिहराविव।। प्रथम अंक में इसी सूचना के साथ ही स्थापना सम्पन्न होती है। श्रीराम, लक्ष्मण, सुग्रीव और हनुमानजी के प्रवेश से नाटक का प्रारम्भ होता है। उपस्थित पात्रों के कथोपकथन से यह लगता है कि किष्किन्धा के प्रदेश में आ पहुँचे हैं तथा सुग्रीव श्रीराम की सहायता से बालि से युद्ध के लिए तैयार हो जाता है। दूसरी तरफ तारा अपने पति बालि को युद्ध करने से रोकती है तथा बालि उसको छोड़कर अन्त:पुर में लौटने के लिए विवश करता है। बालि सुग्रीव पर प्रहार करता है और दोनों का युद्ध प्रारम्भ हो जाता है। इस द्वन्द्व युद्ध में श्रीराम, लक्ष्मण और हनुमान् मात्र दर्शक के रूप में भूमिका में रहते हैं। तदनन्तर बालि के प्रहार से आहत होकर सुग्रीव भूमि पर गिरते हैं। हनुमान्जी परिस्थिति के अनुरूप श्रीराम को उचित कदम उठाने के लिये कहते हैं। क्षणभर में ही श्रीराम के बाण से आहत बालि भूमि पर गिर पड़ता है। बालि बाण पर श्रीराम का नाम देखकर श्रीराम के अनुचित प्रहार की निन्दा करता है। वह इस श्रीराम के प्रहार को धर्म-विरुद्ध बताता है। श्रीराम बालि को दण्डनीय अपराधी निरूपित करते हुए अपने कृत्य को न्यायपूर्ण एवं उचित बताते हैं। नेपथ्य से स्त्रियों के विलाप की आवाज आती है, बालि उन्हें रोकने के लिये सुग्रीव से कहता है। सुग्रीव हनुमान जी को भेजता है। हनुमानजी अंगद को साथ लेकर आते हैं। अंगद अपने पिता की इस अवस्था को देखकर गिर पड़ता है। बालि सुग्रीव को राज्यभार अर्पित करते हुए अंगद को उसके हाथों में सौंपता है तथा श्रीराम से यह प्रार्थना करता है कि वे इन दोनों (अंगद तथा सुग्रीव) पर दया दृष्टि बनाए रखें। बालि अपने गले से वंश की प्रतिष्ठा की प्रतीक स्वर्णमाला उतारकर सुग्रीव को अर्पित कर देता है। बालि हनुमान्जी को जल लाने का कहता है और जल से आचमन कर मंच पर ही प्राण त्याग देता है। श्रीराम सुग्रीव को बालि के अंतिम संस्कार की और लक्ष्मण को सुग्रीव के राज्याभिषेक की आज्ञा देते हैं तथा इस के साथ नाटक समाप्त होता है। नाटक में अहम भूमिका अभिजीत सिंह, संजीत कुमार यादव, सर्वेश कुमार, नमन मिश्रा, उत्कर्ष मणि त्रिपाठी, अभिषेक पाल आदि ने निभायी।

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