1911 में भव्य इमारत के रूप में कला एवं शिल्प महाविद्यालय की स्थापना हुई
लखनऊ। फोटोग्राफी एक कला और विज्ञान है, जिसमें प्रकाश का उपयोग करके स्थायी चित्र या तस्वीरें बनाने की प्रक्रिया शामिल है। यह एक ऐसी तकनीक है जो हमें वास्तविक दुनिया की छवियों को कैप्चर करने और उन्हें एक दृश्य रिकॉर्ड के रूप में सहेजने की अनुमति देती है, चाहे वह प्रकाश-संवेदनशील फिल्म पर हो या डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक या चुंबकीय मेमोरी पर। यह हुई फोटोग्राफी के बारे में।
फोटोग्राफी को कला के रूप में औपचारिक मान्यता 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरूआत में मिली, खासकर पिक्टोरियलिज्म आंदोलन के साथ। इस आंदोलन ने फोटोग्राफी को एक कलात्मक माध्यम के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे यह कला दीघार्ओं और प्रदर्शनियों में प्रदर्शित होने लगी। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 1911 में भव्य इमारत के रूप में कला एवं शिल्प महाविद्यालय की स्थापना हुई। यह देश के चार महत्वपूर्ण कला संस्थानों में से एक है। इस संस्थान ने अनगिनत कलाकारों को जन्म दिया और आज भी निरन्तर जारी है।
इस महाविद्यालय में फोटोग्राफी का एक लंबा इतिहास रहा है। वरिष्ठ कलाकार व पूर्व प्रधानाचार्य जय कृष्ण अग्रवाल से बातचीत से महाविद्यालय में फोटोग्राफी के कई महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई। उनके एक पोस्ट से पता चलता है कि श्री ललित मोहन सेन ने 1932 में स्थापित यू.पी. अमेच्योर फोटोग्राफिक एसोसिएशन के प्रमुख संस्थापक थे। 1932 में स्थापित इस संगठन से लखनऊ फोटोग्राफी में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। श्री सेन लखनऊ के कला महाविद्यालय में अध्यापन कार्य कर रहे थे जो स्थानीय कला गतिविधियों का एक मात्र केन्द्र था और स्वाभाविक रूप से इस एसोसिएशन की गतिविधियों का केन्द्र भी बन गया। स्थानीय फोटोग्राफर्स को कलाकारों के सीधे सम्पर्क में आने से उन्हें फोटोग्राफी के सृजनात्मक पक्ष का परिचय प्राप्त हुआ। देखते देखते लखनऊ फोटोग्राफी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने लगी। यद्यपि उनदिनों फोटोग्राफी कला महाविद्यालय के पाठ्यक्रम का विषय नहीं थी फिर भी श्री सेन के प्रयास से सुव्यवस्थित डार्करूम और स्टूडियो की स्थापना की गयी जिससे आकर्षित हो अनेक छात्रों को भी इस विधा में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली।
एल एम सेन ने पिक्टोरियल फोटोग्राफी को बढ़ावा देने के लिए अनेकों प्रयास किए। तमाम अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियां भी लगाई गईं महाविद्यालय में। 1956 में खास्तगीर ने भी इस महाविद्यालय में आने पर कला और संस्कृति को बढ़ाने के लिए बहुत प्रयास किए। महाविद्यालय में एंटीक इंस्ट्रूमेंट रहे फोटोग्राफी के। महाविद्यालय में ही फोटोग्राफी में अनेक कलाकारों ने काम किए। आज जरूरत है उत्तर प्रदेश के कला और संस्कृति की बेहतरीन डॉक्यूमेंटेशन करने की। इसके अभाव में न जाने कितने कलाकार आज गुमनामी में हैं। कॉलेज आॅफ आर्ट्स फोटोग्राफिक सोसाइटी द्वारा प्रदर्शनी का आयोजन झ्र विश्व फोटोग्राफी दिवस पर महाविद्यालय के फोटोग्राफी के प्राध्यापक अतुल हुंडु के मार्गदर्शन में मंगलवार को कॉलेज आॅफ आर्ट्स फोटोग्राफिक सोसाइटी द्वारा आयोजित भव्य फोटोग्राफी प्रदर्शनी का शुभारंभ मुख्य अतिथि असीम अरुण ने किया। इस प्रदर्शनी में प्रतिभागी फोटोग्राफर अभिनव श्रीवास्तव, अभिषेक पटवा, आबिद सलीम सिद्दीकी, अजैस जायसवाल, अजय कुमार,अमीषा गुप्ता, आकृति दुबे,अमित यादव, अनुराग स्वरूप, अरुणा सिंह, अविनाश चंद्र लिटिल, अविरल पियूष, भूपेश चन्द्र लिटिल, बिंदु अरोरा, दीपक यादव, दीपशिखा, ध्रुव सेहता गणेश मिश्रा, गीतिका, ज्ञान शुक्ला, हर्षित सिंह, ज्योतिर्मय यादव, खुशबू कुमारी, कुंवर जी, मनोज कुमार शुक्ला, मयंक रस्तोगी, मोहसिना, निरंकार रस्तोगी,पायल कृति के क्रिएटिव, कमर्शियल, लैंडस्केप और पोर्ट्रेटर शैली की रचनात्मक 150 से भी अधिक तस्वीरों का प्रदर्शन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि ने छात्रों के प्रयासों की सराहना की और कहा कि इस तरह के आयोजन छात्रों और आम लोगों में फोटोग्राफी जैसी सृजनात्मक विधा के प्रचार-प्रसार हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
कॉलेज के डीन/प्रिंसिपल डॉ. रतन कुमार ने फोटोग्राफी विभाग से जुड़े छात्रों की मेहनत व लगन की सराहना की। विशेष आकर्षण के रूप में विभाग द्वारा पुराने एंटीक कैमरों की प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसने आगंतुकों का ध्यान खींचा। कार्यक्रम की सफलता में आयोजन समिति के सदस्य झ्र राजीव, मयंक रस्तोगी, सौरभ अग्रवाल, पायल कीर्ति, यश, यश्वी, वेदांत आदि छात्रों का विशेष योगदान रहा। इसी श्रृंखला में, 17 अगस्त से कॉलेज आॅफ आर्ट्स फोटोग्राफिक सोसाइटी द्वारा आयोजित फोटोवॉक में प्रतिभागियों द्वारा खींची गई चुनिंदा तस्वीरों का स्लाइड शो प्रतिदिन शाम 5:30 से 6:30 बजे तक प्रदर्शित किया जाएगा।