राजाजीपुरम में चल रही सात दिवसीय श्री रामकथा
लखनऊ। राजाजीपुरम में चल रही सात दिवसीय श्री रामकथा के षष्ठम दिवस राघवचरणानुरागी श्री हरिओम तिवारी जी ने आज कथा में भरत भैया के चरित्र का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया और आगे कहा कि धार्मिकता के साथ प्रेम के अद्भुत समन्वय का नाम है भरत।भरत जी के अंदर अयोध्या की संपत्ति का न राग है और ना ही त्याग का अभिमान है क्योंकि अयोध्या की संपत्ति को भरत जी अपनी नहीं बल्कि प्रभु श्री राम जी की संपत्ति मानते हैं और राम जी की संपत्ति का वह संरक्षण करते हैं। संरक्षण करने वाला कभी भी त्यागी नहीं हो सकता है ।संरक्षण का अभिप्राय होता है कि दूसरे की संपत्ति का रख-रखाव करना और रख-रखाव करने वाले को यह अधिकार नहीं है कि वह जिस संपत्ति का रख-रखाव कर रहा है उस संपत्ति को अधिकार की दृष्टि से देखे। उसे संपत्ति को दान करने का भी अधिकार नहीं है। लोभ और भय से जब तक मुक्ति नहीं पाएंगे तब तक भगवान से प्रेम नहीं कर पाएंगे। केवट भैया के अंदर ना लोभ था और न ही भय था ।केवट जी ने कहा लक्ष्मण जी मुझे भले ही तीर मार दें परंतु जब तक मैं पर नहीं धो लूंगा तब तक नाव पर नहीं बैठाऊंगा ।और अंत में केवट जी ने कहा हे प्रभु मुझे कुछ नहीं चाहिए क्योंकि आपके दर्शन मात्र से ही मेरे सारे दुख और दारिद्रय दूर हो गए हैं ।भारत जी के प्रेम में प्रभु इतना विह्वल हो गए कि जिन प्रभु की आंखों से कभी आंसू नहीं निकलते उनके भी आंखों से प्रेम के अश्रु निकल पड़े ।क्योंकि प्रभु भक्त के भाव पर ही रीझ जाते हैं।





