लखनऊ। आर्टस एण्ड कल्चरल सोसाइटी कल्याणपुर लखनऊ एवं महिला स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष हेमा बिष्ट सचिव ने हरेला पर्व मनाया। उत्तराखण्ड की महिलाओं द्वारा हरेला भेंट कर पकवान बनाकर एवं हरेले के गीत गाकर एक दूसरी को सुख समृद्धि और हरियाली पर्व की बधाई दी।
इस अवसर पर महिलाओं ने कविवर पूरन सिंह जीना की कविता जी रैया जागि रैया, है जया कृषाण गीत गाये। वही शिव जी पर आधारित गीत सच बताये पावर्ती तथा खोल दे माता खोल भवानी झोडे भी प्रस्तुत किये गये। सर्व प्रथम पं. आनन्द जोषी द्वारा हरेले का विविधवत पूजन प्रतिष्ठा किया गया। पं. मान्यता है हरेला को देखकर ये बताया जा सकता है कि इस साल फसल कैसी होगी। भरत सिंह बिष्ट ने कहा कि श्रावण महीना लगने से दस दिन पहले एक बर्तन या टोकरी में कुछ मिट्टी भर के सात तरह के अलग अलग बीज धान, गेहूॅ, उड़द, गहत, सरसो और भट्ट बो दिये गये है। रोजाना हम लोग पानी छिड़क कर इसमें पौधे उगने का इन्तेजार किया जाता है। इन पौघों को ही हरेला कहा जाता है और फिर हरेला पर्व के दिन इन पौधों को काटकर भगवान के चरणों में चढ़ा कर पूजा की जाती है व अच्छी फसल की कामना की जाती है। भगवान का आशीर्वाद समझकर कछ पौधे सिर पर और कान के पीछे रखे जाते है। इस सुभ अवसर पर घर के छोटे, बड़ो का आशीर्वाद लेते है और एक दूसरे को शुभकामनाएॅ देते है। महिलाओं ने हरेला के अवसर पर सुन्दर पारम्परिक हरेला गीत हेमा बिष्ट के निर्देशन में हरेला गीत प्रस्तुत किया गया। समूह की सभी महिलाए उत्तराखण्ड की पारम्परिक पोशाक एवं पिछोडे सहित हरेले के पर्व की बधाई हरेला और पेड़ वितरित किये गये।
उत्तराखण्ड समाज ने आज लोक पर्व हरेला बडे धूम धाम से मनाया
लखनऊ। उत्तराखण्ड का लोक पर्व हरेला बडी धूम धाम से आज मनाया गया। उत्तराखण्ड की महिलाओं द्वारा हरेला भेंट कर पकवान बनाकर एवं हरेले के गीत गाकर एक दूसरी को सुख समृद्धि और हरियाली पर्व की बधाई दी। सर्व प्रथम आज लखनऊ में पं. आनन्द जोशी आचार्य द्वारा लोक कल्याण के लिए विधि विधान ने मंत्रोचार के साथ पंडित आचार्य जी ने हरेले का विविधवत पूजन प्रतिष्ठा किय जायेगा। पं. आनन्द जोशी ने कहना है कि उत्तराखण्ड में सावन की षुरूआत हरेला पर्व से होती है इस दिन षिव की पूजा के साथ साथ हरेला काटने की परंपरा है। मान्यता है हरेला को देखकर ये बताया जा सकता है कि इस साल फसल कैसी होगी।
भरत सिंह बिष्ट महासचिव उत्तखण्ड महापरिषद ने बताया कि हमने अपने घर में मंदिर के निकट श्रावण महीना लगने से दस दिन पहले एक बर्तन या टोकरी में कुछ मिट्टी भर के सात तरह के अलग अलग बीज (धान, गेहूॅ, उड़द, गहत, सरसो और भट्ट) बो दिये गये। रोजाना हम लोग पानी छिड़क कर इसमें पौधे उगने का इन्तेजार किया जाता है। इन पौघों को ही हरेला कहा जाता है और फिर हरेला पर्व के दिन इन पौधों को काटकर भगवान के चरणों में चढ़ा कर पूजा की जाती है व अच्छी फसल की कामना की जाती है। भगवान का आशीर्वाद समझकर कछ पौधे सिर पर और कान के पीछे रखे जाते है। इस सुभ अवसर पर घर के छोटे, बडो का आशीर्वाद लेते है और एक दूसरे को शुभकामनाएॅ देते है। इस अवसर पर हेमा बिष्ट, श्रीमती शशि जोशी, कमला मेहरा, पार्वती फर्तियाल, बीना देवडी, बिमला रावत, हेमा अधिकारी, अंजू पंत, लीला रावत, लीला बिष्ट, गार्गी घुघतियाल, यामनी, रिया सिंह, पूनम, मुन्नी जोशी, राधा काण्डपाल, चन्द्रा काण्डपाल, सुमन,शिल्पी, बीना पाण्डे सहित सैकड़ों महिलाएं पकवान बनाकर एक दूसरे को हरेला भेंट किया।
हरीश चंद पंत द्वारा हरेला पर्व का महत्व पर जानकारी दी। हरेला उत्तराखंड की सांस्कृतिक आत्मा है यह पर्व प्रकृति, कृषि, और पर्यावरण के प्रति सम्मान का प्रतीक है। हरेला पर जौं बोने की परंपरा वर्ष की नई कृषि शुरूआत का प्रतीक होती है, और यह आने वाली फसलों के शुभ संकेत मानी जाती है।