बुजुर्गों ने आशीर्वाद और उपहार दिए
लखनऊ। अहोई अष्टमी का पर्व परंपरागत रूप से मनाया गया। गुरुवार को महिलाओं ने व्रत रखकर अपनी संतान की दीघार्यु की कामना की। शाम को तारे निकलने के बाद पूजन कर व्रत का पारायण किया।
माताएं अपने पुत्रों की लंबी आयु के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। रविवार को महिलाओं ने व्रत रखकर अहोई माता का का पूजन किया। दिन में व्रत रखा और अपने पुत्रों की दीघार्यु की कामना की। बुजुर्गों के लिए बायना निकाले गए। बदले में बुजुर्गों ने आशीर्वाद और उपहार दिए। शाम को पूजन कर व्रत का पारायण किया। पूजन के लिए करवों की खूब बिक्री हुई। साथ ही अहोई की माला में पिरोने के लिए चांदी के मोतियों की भी खूब खरीदारी की गई। अहोई अष्टमी पर महिलाओं में भी खासा उत्साह देखा गया। माताओं ने निर्जल व्रत रहकर विधि-विधान पूर्वक पूजा.अर्चना कर पुत्रों की दीघार्यु और सुख समृद्धि की कामना की। महिलाओं ने सुबह उठ कर स्नान, ध्यान करके पुत्र के दीघार्यु के लिए संकल्प लेकर पूरे दिन निर्जल व्रत रखा। अंत में काला तिल और लाल गंजी का प्रसाद ग्रहण कर श्रीगणेश की वंदना स्तुति करने के पश्चात दान देकर व्रत का समापन किया। अहोई व्रत के चलते बाजारों में चहल पहल देखी गई। महिलाओं ने संतानों की दीघार्यु के लिए कथा भी सुनी। अपनी संतान की लंबी उम्र सुखमय जीवन के लिए कामना की। सायंकाल को पूजा करने के पश्चात महिलाओं ने सास-ससुर के पैर छूकर उन्हें पोशाक और शृंगार का सामान श्रद्धा पूर्वक रुपये देकर आशीर्वाद लिया। रात को तारे देखकर अपना व्रत को पूरा किया गया। अहोई अष्टमी का पर्व दीपावली के आरम्भ होने की सूचना देता है। यह पर्व विशेष तौर पर माताओं द्वारा अपनी सन्तान की लम्बी आयु व स्वास्थ्य कामना के लिए किया जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्वपूर्ण है। जिन की सन्तान को शारीरिक कष्ट हो, स्वास्थ्य ठीक न रहता हो, बार-बार बीमार पड़ते हों या किसी भी कारण माता-पिता को अपने सन्तान की ओर से स्वास्थ्य व आयु की दृष्टि से चिंता बनी रहती हो, इस पर्व पर सन्तान की माता द्वारा समुचित व्रत व पूजा आदि का विशेष लाभ प्राप्त होता है तथा सन्तान स्वस्थ होकर दीघार्यु को प्राप्त करती हैं।