क्या संभल के विस्थापित परिवारों को मिलेगा न्याय

बात संभल में एक धर्मस्थल के सर्वे से शुरू हुई थी, तब शायद इससे संबंधित पक्षों को भी यह भान नहीं रहा होगा कि मामला इतना आगे तक जायेगा। सर्वे के दौरान हिंसा, फिर प्रशासन की कार्रवाई, बिजली चोरी, अनेक मंदिरों का जीर्ण-शीर्ण और चारों ओर से अतिक्रमण अवस्था में मिलना, संभल से सहारनपुर तक, बदायूं से बनारस तक जिस तरह प्राचीन मंदिर मिल रहे हैं, जलसंरक्षण के लिए प्राचीन वैज्ञानिक सोच को बताती बावड़ी, यह सब इस बात को प्रमाणित करते हैं कि कहीं न कहीं सनातन संस्कृति के साथ न्याय नहीं हुआ। संभल के अल्पसंख्यक बाहुल्य इलाके में 46 साल से बंद पड़े मंदिर का मिलना और फिर रातों रात अतिक्रमण हटवाना यह नौकरशाही की उपलब्धि है या सिर्फ संयोग।

सवाल यह भी है कि अब इस मंदिर के मिलने की खुशी मनायें या 46 वर्षों पहले मंदिर बंद हो जाने का गम? महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि क्या इस तथाकथित कार्य प्रणाली से विस्थापित हिन्दू अपना स्थान पा सकेंगे या चार दिन बाद कोई नया जिला चर्चा में आ जाएगा। वैसे उनको क्या कहा जाये जो बतौर पार्टी कार्यकर्ता अपने इलाके के चप्पे-चप्पे की जानकारी रखने का दावा करते हैं और 46 साल पुराने इतिहास को लेकर बेखबर थे। प्रशासन के सर्वे में इस क्षेत्र में बिजली चोरी के बहुत से मामले सामने आये। बिजली विभाग के आंकड़े बताते हैं कि इस क्षेत्र में करीब-करीब तीन चौथाई लाइन हानियां हैं। इसे साधारण शब्दों में समझें तो इतनी बिजली चोरी हो जाती है। बिजली चोरी के खिलाफ चलाए गए इस अभियान में 300 से अधिक मकानों में बिजली चोरी पकड़ी गई। इनमें अनेक धर्मस्थल भी हैं। जिला प्रशासन के मुताबिक संभल शहर में हर महीने सबसे ज्यादा लाइनलॉस व करोड़ों की बिजली चोरी इसी इलाके में होती है।

बिजली विभाग की टीम प्रभावी तरीके से कार्रवाई नहीं कर पाती है। संभल उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग का एक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक रूप से समृद्ध नगर है। यह नगर अपने पुरातात्विक महत्व और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है। संभल का इतिहास बहुत पुराना है और यह क्षेत्र कई सभ्यताओं और शासकों का गवाह रहा है। हालांकि वर्तमान में यह शहर अल्पसंख्यक बाहुल्य आबादी वाला है, लेकिन यहाँ का हिन्दू समुदाय भी अपने अटल इतिहास को बनाए हुए है। 1978 और उसके बाद हुए दंगों में भी यहां के हिन्दू समुदाय ने अपने धर्म की अतुलनीय मिसाल पेश की है। यहां कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल और स्मारक हैं जो इसके गौरवशाली अतीत को दर्शाते हैं। इनमें प्राचीन किले, मस्जिदें और अन्य संरचनाएं शामिल हैं। वहीं सांस्कृतिक विविधता में यह जनपद विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक समुदायों का केंद्र है। यहां के विभिन्न त्यौहार और धार्मिक आयोजन बड़ी धूमधाम से मनाये जाते हैं।

शिक्षा और साहित्य में भी संभल ने कई विद्वानों और साहित्यकारों को जन्म दिया है। यहां की शिक्षा संस्थान और पुस्तकालय ज्ञान का महत्वपूर्ण केंद्र हैं। स्थानीय कारीगरी के मामले में संभल अपने विशिष्ट हस्तकला और कारीगरी के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां के कारीगर अपने हुनर से सुंदर और उपयोगी वस्त्र और आभूषण बनाते हैं। हालांकि इस जनपद की चुनौतियां भी कम नहीं हैं। अन्य नगरों की तरह, शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि और बुनियादी सुविधाओं की कमी शामिल है। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए स्थानीय प्रशासन और सामुदायिक प्रयासों की आवश्यकता है।

वहीं संभल की विशेषता उसकी धरोहर और संस्कृति में निहित है। इस नगर की विशेषताएं इसे उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण नगरों में से एक बनाती हैं। लेकिन सवाल वही कि क्या विस्थापितों को पुन: अपना स्थान मिल सकेगा? जब उस इलाके में हिन्दू वर्ग अल्पसंख्यक है तो क्या मंदिर की धूप-बत्ती नियमित हो पाएगी? हिंसा और असुरक्षा के कारण हिन्दू समुदाय का यहां से पलायन सरकारों के लिए के लिए शर्म की बात है। क्या इस देश ऐसा ही सामाजिक-धार्मिक वातावरण चाहिए जिसमें किसी एक समुदाय को पलायन करना पड़े? देश सद्भावना का ऐसा मॉडल चाहिए जहां सबकी सुरक्षा और आस्था का सम्मान हो। सभी धर्मों की पूजा पद्धति का सम्मान हो और उनके पूजा स्थालों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाये।

लोकेश त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार

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