टिक टॉक बैन क्या हुआ, सोशल मीडिया पर लगता है भूचाल आ गया है। इसके गूगल और एप्पल प्ले स्टोर से हटते ही लोगों ने अनोखे अंदाज में प्रतिक्रियाएं व्यक्त करनी शुरू कर दी हैं। किसी ने लिखा- ‘जिंदगी बर्बाद हो गयी’ तो किसी ने ट्वीट किया ‘मेरा करियर जल रहा है। ‘एक लड़की ने अपनी रोती हुई तस्वीर के साथ लिखा है- मेरी तो लाइफ ही खराब हो गया।’
जबकि एक अन्य ने टिप्पणी की- ‘दुकान जम ही रही थी, आप लोगों ने आके बेरोजगार कर दिया।’ कहीं घोर निराशा से भरी प्रतिक्रिया तो कहीं गुस्से से भरा कमेंट। ये टिप्पणियां ऐसी हैं मानो कोई जमा पूंजी लुट गई हो। भविष्य अंधकार में चला गया हो। तमाम क्षेत्रीय सिनेमा के वैसे सितारों को जबरदस्त झटका लगा है, जो टिक टॉक स्टार बन चुके थे, खासकर भोजपुरी सिनेमा के सितारे कुछ ज्यादा ही परेशान हो गए हैं। वास्तव में युवाओं और किशोरों का ये विलाप सोशल मीडिया के उस कलंक के लिए है,जिसमें लाभ से अधिक नुकसान हो रहा था। इस कारण समय की बार्बादी के साथ-साथ मानसिक विकृति का दायरा भी बढ़ता जा रहा था। इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले 90 फीसदी लोगों ने इसे अश्लीलता और फूहड़ता बढ़ाने वाला कहा।
मामला तमिलनाडु में मद्रास हाईकोर्ट तक जा पहुंचा। कोर्ट ने इसे पोर्नोग्राफी को बढ़ावा देने के साथ-साथ बच्चों को यौन हिंसक बनाने वाला करार दिया तथा तीन अप्रैल को केंद्र सरकार से इस पर बैन लगाने को कहा। गूगल और एप्पल ने हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए इसे 16 अप्रैल को अपने प्ले स्टोर से हटा लिया। हालांकि जो इसे पहले से डाउनलोड कर चुके हैं,वे इसका उपयोग करते रहेंगे। उनके द्वारा चीन की बाइट डांस के स्वामित्व वाले ऐप टिक टॉक को शेयर इट जैसे ऐप के जरिए शेयर किया जा सकता है। फिर यूजर उसे इंस्टाल कर नया यूजर बना सकता है। टिक टॉक पर स्पेशल इफेक्ट के द्वारा यूजर छोटे-छोटे वीडियो बनाकर धड़ल्ले से शेयर कर रहे थे।
यह किशोरों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुका था। ऐप एनालिटिक्स फर्म सेसर टावर की फरवरी में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार इसे भारत में 24 करोड़ से अधिक बार डाउनलोड किया जा चुका है। यहां तक कि जनवरी 2019 में ही इसे तीन करोड़ यूजर ने डाउनलोड किया, जो इसी माह में एक साल पहले की तुलना में 12 गुना अधिक है। यह फिल्मों चुटकुले, चटपटे व चुटीले डायलॉग, गानें, वीडियो क्लिप और डांस के फुटेज का एक प्लेटफार्म है। साथ ही इसमें पैरोडी, लिप सिंक और डांस की सुविधाएं भी हैं। इसके साथ किया जाने वाला चंद सेकेंड का मनचाहा प्रयोग ही युवाओं को अपनी ओर खींचता रहा है। इसके मनचाहे प्रयोग ने ही सोशल मीडिया पर कलंकित करने वाले कारनामे को जन्म दिया है।
इसके लिए सिर्फ टिक टॉक को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। एक बहुचर्चित आनलाइन गेम पबजी भी है । पबजी पर भी गुजरात सरकार बैन लगा चुकी है और इसकी दीवानगी की वजह से दर्जनों युवाओं और बच्चों की जानें जा चुकी हैं। ऐसा ही कुछ एक साल पहले ब्लू व्हेल गेम चैलेंज के कारण भी हुआ था। आज शायद ही कोई बचा हो जो सोशल मीडिया की जद में नहीं आया हो। क्या बच्चे,क्या युवा और क्या बूढ़े, सभी इस पर सक्रिय हैं। कईयों के लिए इनकी आभासी दुनिया ब्लैकहोल साबित हो रही है। वे इसमें निगले जाने के बाद निकल ही नहीं पा रहे हैं। फेसबुक,व्हाट्सअप, यूट्यूब, ट्विटर, इंस्टाग्राम, माय स्पेस, टिंडर जैसे प्लेटफार्म का उपयोग करने की जिस तरह की आजादी है,उसमें जोखिम और मनोविज्ञान को बिगाड़ने वाली आशंकाए भी कम नहीं हैं।
मुश्किल यह है कि नहीं चाहते हुए भी लोग इसके नकारात्मक पहलू को अपनाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। उनके लिए यह एक तरह से डिजिटल पॉल्यूशन की तरह बन गया है। यह कहें कि उनके द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी का दुरूपयोग किया जाना ही इसके दुष्परिणामों को बढ़ा देता है। इसके जरिए अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले सोशल मीडिया के प्रभाव में आकर कब अन्याय करने वालों में शमिल हो जाते हैं,उन्हें भी नहीं पता चलाता है। इनसे जुड़ने की एक बड़ी वजह यहां सब कुछ मुफ्त सुविधाओं का मिलना है। यानी मुफ्त संदेश, मुफ्त फोटो या वीडियो, कालिंग, वीडियो कालिंग आदि। प्रतिदिन मिलने वाले डेटा ने इसे और भी तरलता प्रदान कर दी है। क्या शहर-महानगर और कस्बाई इलाका व गांव सभी जगह सोशल मीडिया का प्रवाह लोगों का औसतन तीन-चार घंटा समय बर्बाद करने वाला सबित हो रहा है।
फूहड़ता, अश्लीलता और अधकचरी जानकारियों का फैलाव श्रेष्ठ कंटेंट की तुलना में तेजी से होता है। इसने लोगों को एक तरह से गैर जिम्मेदार बना दिया है। हर क्षेत्र में काम करने वाले लोग चाहे वे पुलिसवाले हों, शिक्षक हों, बैंककर्मी हों, रेलवे कर्मचारी हों , गाड़ी चलाते हुए ड्राइवर हों या कोई दूसरे नौकरीपेशा हों। सभी सोशल मीडिया पर लगे रहते हैं। इस वजह से उनकी ड्यूटी में खलल पड़ती है इसकी उन्हें जरा भी परवाह नहीं होती है। यह एक तरह से अफीम के नशे की तरह बन चुका है,जबकि इंटरनेट पैक भरवाने की वजह से पैसे की बर्बादी भी हो रही है। टिक टॉक पर प्रतिबंध लगने पर हाय तौबा मचाने की बात करें, तो उन्हें इससे एक सबक तो मिला ही है।
इस बारे में तकनीकी मामलों से जुड़े बायटेक इंडिया के सीईओ टी श्रीनवासन का कहना है कि बाइटडांस के खिलाफ की गई कानूनी कर्रवाई से भारत की आदलत ने एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है। इसका जनमानस में अच्छा संदेश जाएगा और सोशल मीडिया एवं दूसरे डिजिटल प्लेटफार्म पर इस तरह से कंटेंट परोसने वाले सावधानी बरतेंगे। दरअसल इंटरनेट, ब्रॉड बैंक की आज हर व्यक्ति तक पहुंच है ऐसे में अगर इस पर मनमाने गेम, एप एवं वेबसाइटें उपलब्ध होंगी तो यह सबके पास पहुंच जायेंगी।
टिक-टॉक ऐप में जिस तरह उदण्डता भले वीडियो फुटेज लोड करने और इसे देखने लगे थे उससे इसका बुरा असर लोगों पर पड़ता है। अगर कोई वेबसाइट समाज के वैचारिक, मानसिक स्वास्थ्य के खिलाफ हो तो सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि उसको लोगों तक पहुंचने से रोका जाये। टिक-टॉक ऐप पर प्रतिबंध भी एक ऐसा ही कदम है ताकि साइबर के रास्तो दिमाग में विकृतियां अपनी जगह न बना सकें।