क्यों जरूरी है एमएसपी को कानूनी रूप देना

किसानों और सरकार के बीच कायम गतिरोध में किसानों की तरफ से यह बात स्पष्ट रूप से कही गयी है कि वे मोदी सरकार के नये कृषि विपणन कानूनों का विरोध नहीं करते बल्कि न्यूनतम समर्थन प्रणाली को कानूनी स्वरूप दिये जाने की मांग कर रहे हैं। जबकि इस आंदोलन के बरक्श सरकार की तरफ से बार-बार अपने नये कृषि कानूनों का बचाव किया जा रहा है।

सरकार की तरफ से यह कहा जा रहा है कि नये कृषि कानूनों के जरिये हमने किसानों को अपने उत्पाद बेचने का विस्तृत अवसर और आजादी प्रदान की है। दरअसल यहां किसानों की मांग और सरकार के जबाब के बीच कोई एकरू पता नहीं बैठ रही। सरकार को यह लगता है कि किसानों की मांग उसके द्वारा संसद में नये कृषि बिलों के लाये जाने के बाद से उपजी है, अत: वह बार-बार अपने नये कानूनों को लेकर किसानों को स्पष्टीकरण दिये जा रही है।

ठीक है कि किसानों का आंदोलन पहले पहल इस बिल के विरोध से उपजा परंतु अब हमें यह समझना चाहिए कि यह विरोध देश की कृषि के सबसे बुनियादी पहलू न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली को वैधानिक बनाये जाने की मांग पर जाकर अड़ गया है। हमने किसान संगठनों के आंदोलन का लम्बा इतिहास देखा है। हमने टिकैत और जोशी के आंदोलन को भी देखा है। कहना होगा उनके आंदोलन भारतीय कृषि को व्यापक लाभकारी और जोखिम रहित बनाने के बजाय किसानों के संकुचित, व्यक्तिगत, क्षेत्रगत, फसलगत और समुदायगत मसलों को लेकर थे।

मसलन बिजली बिल के माफ कर दो, सबसे ज्यादा लाभकारी मूल्य हासिल करने वाले गन्ने के और मूल्य बढ़ा दो, किसानों का कर्ज माफ कर दो तथा अमीर किसानों और विकसित कृषि क्षेत्रों को और ज्यादा रियायतें दो वगैरह। परंतु देश की कृषि के सबसे बुनियादी पहलू एमएसपी को वैधानिक बनाये जाने का मौजूदा आंदोलन देर से आया पर सबसे दुरू स्त परिघटना मानी जाएगी।

दरअसल यह मुद्दा मौजूदा मोदी सरकार के लिए बेहद महत्व रखता है, जिसने वर्ष 2017 में किसानों की आमदनी को अगले पांच साल में यानी 2022 तक दोगुनी करने का स्वागतजनक लक्ष्य निर्धारित किया था। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पिछले पचपन साल से अछूती छोड़ी गई इस एमएसपी व्यवस्था में तो मोदी सरकार को सबसे पहले सुधार लाना चाहिए था। अगर यह सरकार सचमुच किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लक्ष्य पर काम करना चाहती है तो इस दिशा में उसका पहला काम एमएसपी में बहुआयामी सुधार लाने का ही बनता है।

इन सुधारों के कुल मिलाकर तीन अवयव बनते हैं। सबसे पहला एमएसपी मूल्यों का पहले एक वाजिब व लाभकारी निर्धारण, दूसरा एमएसपी में सभी खेती उत्पादों खासकर निर्धारित छत्तीस उत्पादों के वैधानिक क्रय विक्रय को शामिल करना और फिर तीसरा इसके उल्लंघन का आपराधिक निर्धारण। इन तीनों कारकों को अमली स्वरूप प्रदान करने के लिए एमएसपी को कानूनी स्वरूप दिया जाना जरूरी है।

कानूनी स्वरूप देने की वजह ये है कि सरकार अपने तईं किसानों के सभी उत्पादों को खरीदने का इंतजाम नहीं कर सकती है, न तो वह इसकी इतनी भारी भरकम बुनियादी संरचना निर्मित कर सकती है और न ही इनकी खरीददारी के लिए इतनी बड़ी संसाधन राशि जुटा सकती है। ऐसे में गैर सरकारी क्षेत्र या कारपोरेट किसानों के उत्पादों को खरीदने का अवसर मिलेगा, जिसको लेकर मोदी सरकार बार-बार अपने नये कानूनों की दुहाई दे रही है।

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