मंत्र के प्रकार

मन्त्र दो प्रकार के होते हैं- वैदिक मन्त्र एवं तान्त्रिक मन्त्र……. वैदिक संहिताओं की समस्त ऋचाएं वैदिक मन्त्र कहलाती हैं और तन्त्रागमों में प्रतिपादित मन्त्र तान्त्रिक मन्त्र कहलाते हैं। तान्त्रिक मन्त्र तीन प्रकार के होते हैं- बीज मन्त्र, नाम मन्त्र एवं माला मन्त्र। बीज मन्त्र भी तीन प्रकार के होते हैं – मौलिक बीज, यौगिक बीज तथा कूट बीज। इसी तरह माला मन्त्र दो प्रकार के होते हैं- लघु माला मन्त्र एवं बृहद माला मन्त्र। दैवीय या आध्यात्मिक शक्ति को अभिव्यक्ति देने वाला संकेताक्षर बीज कहलाता है। इसकी शक्ति एवं रूप अनन्त हैं। शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन एवं बौद्ध धर्मों के सभी सम्प्रदायों में ‘ह्री’, ‘क्लीं’ एवं ‘श्रीं’ आदि बीजों का मन्त्र साधना में समान रूप से प्रयुक्त होना इसका साक्ष्य है। बीज मंत्र समस्त अर्थों का वाचक एवं बोधक होने के बावजूद अपने-आप में गूढ़ है। अपने आराध्य देव का समस्त स्वरूप इसके बीज मंत्र में निहित होता है। ये बीज मन्त्र तीन प्रकार के होते हैं- मौलिक, यौगिक व कूट। इनको कुछ आचार्य एकाक्षर, बीजाक्षर एवं घनाक्षर भी कहते हैं। जब बीज अपने मूल रूप में रहता है, तब मौलिक बीज कहलाता है, जैसे- ऐं, यं, रं, लं, वं, क्षं आदि। जब यह बीज दो वर्णों के योग से बनता है, तब यौगिक कहलाता है जैसे- ह्रीं, क्लीं, श्रीं, स्त्रीं, क्षौंआदि।

 

इसी तरह जब बीज तीन या उससे अधिक वर्णों से बनता है तब यह कूट बीज कहलाता है। बीज मन्त्रों में समग्र शक्ति विद्यमान होते हुए भी गुप्त रहती है। नाम मन्त्र – बीज रहित मन्त्रों को नाम मन्त्र कहते हैं, जैसे- ‘ऊं नम: शिवाय’ ‘ऊं नमो नारायणाय’ एवं ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय’ आदि। इन मन्त्रों के शब्द उनके देवता, उनके रूप एवं उनकी शक्ति को  अभिव्यक्ति देने में समर्थ होते हैं। इसलिए इन मन्त्रों को भक्तिभाव से कभी भी सुमिरन किया जा सकता है। माला मन्त्र- कुछ आचार्यों के अनुसार 20 अक्षरों से अधिक और अन्य आचार्यो के अनुसार 32 अक्षरों से अधिक अक्षर वाला मंत्र माला मंत्र कहलाता है, जैसे- ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव

जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत: ।।

–  विवेक श्रीवास्तव

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