उत्सव के चौथे दिन जनजाति शिल्प एवं उत्पाद संभावनाएं विषय पर संगोष्ठी भी हुई
लखनऊ। जनजाति विकास विभाग उत्तर प्रदेश, उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान और उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित लोक नायक बिरसा मुण्डा की जयंती जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय भागीदारी उत्सव के चौथे दिन सोमवार 18 को वियतनाम के कलाकारों की विशेष प्रस्तुतियां हुई वहीं भारत के विभिन्न अंचलों से आए कलाकारों की पारंपरिक वेशभूषा के शो ने दर्शकों की प्रशंसा हासिल की। इसके साथ ही गोमती नगर स्थित संगीत नाटक अकादमी उ.प्र., परिसर में स्थित कॉन्फ्रेंस हॉल में आयोजित जनजाति स्वास्थ्य पर जागरुकता एवं समाधान विषयक संगोष्ठी में विभिन्न जनजातियों के लिए खाद्य प्रसंस्करण सम्बंधी सरकारी योजनाओं की जानकारी विस्तार से दी गई।
अनिल कुमार त्रिपाठी के मंचीय संचालन में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम में भारतीय प्रस्तुतियों से पहले पारंपरिक वेशभूषाओं का प्रदर्शन आमंत्रित कलाकारों के माध्यम से किया गया। इसमें उत्तराखंड, असम, छत्तीसगढ़, केरल, गोवा, बिहार की पारंपरिक वेशभूषाओं ने इस आयोजन का आकर्षण बढ़ाया। छत्तीसगढ़ के गैण्डी नृत्य में पुरुष कलाकारों ने लकड़ी के डंडों पर चढ़कर डांस किया जिसे वह गैंडी कहते हैं। यह नृत्य उन्नत फसल की कामना के लिए किया जाता है। इसमें नगड़िया जैसा वाद्य निशान के साथ ढपरा का वादन किया जाता है। कौड़ी से सजी वेशभूषा धारण किये हुए कलाकारों के सिर पर मोर के पंख उनके नृत्य के आवश्यक अंग बने थे। गुजरात के सिद्धि धमाल नृत्य में कलाकारों ने हैरतअंगेज करतब दिखाए। कभी उन्होंने मुंह से आग का फव्वारा उगला तो कभी उन्होंने फुटबाल की तरह सर से किक लगाते हुए नारियल ही तोड़ दिया। ढोल की थाप के साथ किया गया यह नृत्य देखते ही बना। पश्चिम बंगाल के सभी पुरुष कलाकारों ने नटुआ नृत्य में नटराज के तांडव जैसा जोशीला नृत्य किया। इसमें कलाकारों ने शरीर पर मिट्टी से विभिन्न पारंपरिक अल्पनाएं बनायी हुई थीं। ढोल ताशा, नगाड़ा, शहनाई के साथ उन्होंने एक ही जगह पर कलाबाजी दिखाकर तालियां बटोरीं। असम के दल के कलाकारों में महिलाओं ने लाल पीले रंग की वेशभूषा पहन कर समूह नृत्य किया। इसमें ड्रम की तरह खम, बांसुरी की भांति सिंफू, वायलिन की तरह के वाद्य सिरजा के साथ नृत्य किया। महिला कलाकारों ने अपने हाथ में एक तरह के झुनझुने की तरह के वाद्य जाबखिन को लेकर नृत्य किया। गोवा के दल ने चन्द्रेश के निर्देशन में नृत्य किया। इसमें लाल रंग की साड़ी पर सफेद रंग के दुपट्टे को नाचते हुए नृत्य किया गया। यह नृत्य चावल की अच्छी फसल की कामना के साथ किया जाता है। इसमें मिट्टी और चमड़े से बने ताल वाद्य घुमट और झांझ की भांति कसाड़ का प्रयोग किया गया। उत्तराखंड के कलाकारों ने जौनसारी नृत्य किया। दशहरा दीपावली के उत्सवी अवसरों पर यह नृत्य खासा लोकप्रिय है। इसके साथ ही बिहार का उरांव नृत्य, केरल का इरुला नृत्य, हिमाचल प्रदेश का सिरमौरी नाटी-मास्क नृत्य ने भी इस समारोह में उत्साह के साथ प्रतिभाग किया। इस उत्सव में मेराज आलम और प्रजापति के दल ने पुतुल प्रदर्शन, वेदानंद ने बीन वादन और सुगनाराम के रावण हस्तवीणा वादन ने आगंतुकों की प्रशंसा हासिल की।
वियतनाम से आए कलाकारों ने दी मनमोहक प्रस्तुति
विदेशी सांस्कृतिक प्रस्तुति की श्रंखला में वियतनाम से आए कलाकारों की प्रस्तुतियों का इंतजार आगंतुक बेसब्री से कर रहे थे। सबसे पहली प्रस्तुति में वहां से आए पुरुषों ने छाते और स्त्रियों ने बांस से तैयार बड़ी सी हैट के साथ सुंदर नृत्य संयोजन पेश किया। इसमें उन्होंने विवाह से पूर्व परस्पर सम्मान और प्रेम का प्रदर्शन किया। इसमें हैट जहां नारी के सम्मान को दशार्ती थी वहीं छाता, पुरुष द्वारा संरक्षण के भाव को पेश कर रहा था। इस क्रम में ट्रेडिशनल फोल्डिंग हैंड फैंन में लाल सफेद रंग का कपड़ा जोड़कर नृत्य किया गया। इसमें महिलाओं ने स्त्री के आंतरिक सौन्दर्य को बिम्बित किया। तीसरी प्रस्तुति में कलाकार स्तुति करते दिखे। इसमें वह पर्वत की देवी से सम्पन्नता की प्रार्थना करते दिखाए गए। अगली प्रस्तुति में छाते की तरह खुलने वाले फूलों के साथ कलाकारों ने नृत्य किया। इसमें युवतियों ने मंच पर फंतासी रचते हुए यह सम्प्रेषित किया कि वह भी देवी का अंश हैं। अंतिम प्रस्तुति में कलाकारों ने ढोल के साथ सुंदर संयोजन बनाते हुए प्रभावी नृत्य किया। यह नृत्य अच्छी फसल की कामना और समाज में प्रेम उल्लास के रूप में किया जाता है। नेशनल यूनिवर्सिटी आॅफ आर्ट्स एजुकेशन, वियतनाम से आए इस 12 सदस्यों वाले दल में 5 पुरुष और 7 महिलाएं थी। इस लोक कला प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व डॉ. दाओ डांग ने किया।
बाइस्कोप में हुए भारत दर्शन
मेले में शिवम बाइस्कोप लेकर आए हैं। उसके माध्यम से वह भारत दर्शन और वाइल्ड लाइफ के दर्शन पारंपरिक रूप से करवा रहे हैं जो आगंतुकों को बहुत पसंद आ रहा है। नजदीक ही रिक्शा सेल्फी प्वाइंट भी लोगों को लुभा रहा है। फूड जोन के माध्यम से महाकुंभ का भी प्रचार प्रसार किया जा रहा है। इसके साथ ही सोमवार 18 नवम्बर को उ.प्र. लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी और जनजाति विकास विभाग उ.प्र. की उप निदेशक डॉ. प्रियंका वर्मा के संयोजन में संगोष्ठी हुई। इसका विषय जनजाति शिल्प एवं उत्पाद संभावनाएं। यह सार्थक संगोष्ठी में उद्यान व रेशम के प्रमुख सचिव बीएल मीना की अध्यक्षता में हुई इस संगोष्ठी में संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव मुकेश कुमार मेश्राम और समाज कल्याण विभाग उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव डॉ. हरिओम की गरिमामयी उपस्थित रही। इस अवसर पर प्रतिभागियों को बताया गया कि वह कैसे खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में सरकारी योजनाओं का व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से लाभ उठा सकते हैं। उन्हें बताया गया कि यह मदद खाद्य प्रसंस्करण में तकनीकी के प्रयोग के रूप में तो मिलती ही है साथ ही लोगों का मार्गदर्शन पैकेजिंग के व्यापक क्षेत्र तक में किया जा रहा है। प्रतिभागियों ने आत्मनिर्भर भारत की दिशा में संचालित प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्म उन्नयन योजना पीएम एफएमई में बढ़चढ़ कर रुचि भी दिखायी। इस महती योजना के माध्यम से वोकल फॉर लोकल के लक्ष्य को भी प्रभावी रूप से हासिल किया जा रहा है।
उ.प्र. लोक एवं जनजाति कला संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी के अनुसार पांचवी शाम को 19 नवम्बर को बिहार का भुजिया आदिवासी नृत्य, असम का बर्दोई शिखला नृत्य, त्रिपुरा का होजागिरी नृत्य, पंजाब का शम्मी नृत्य, झारखण्ड का खड़िया नृत्य, राजस्थान का कालबेलिया नृत्य देखने को मिलेगा। इसके साथ ही बुक्सा जनजाति के लोकनृत्य भी पेश किया जाएगा। लोक वाद्यों का मंचीय प्रदर्शन भारत की उन्नत परंपरा की सशक्त झांकी पेश करेगा। जनजाति कवि सम्मेलन ही नहीं मध्य प्रदेश के दल द्वारा बिरसा मुण्डा नाटक भी मंचित किया जाएगा। इस क्रम में 19 को ह्लजनजाति विरासत संरक्षण एवं संवर्धनह्व विषयक संगोष्ठी भी होगी।