उत्सव के पांचवे दिन जनजाति विरासत संरक्षण एवं संवर्धन विषय पर संगोष्ठी भी हुई
लखनऊ। जनजाति विकास विभाग उत्तर प्रदेश, उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान और उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित लोक नायक बिरसा मुण्डा की जयंती जनजातीय गौरव दिवस के अवसर पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय भागीदारी उत्सव के पांचवे दिन मंगलवार 19 को पारंपरिक वाद्यों का शो आकर्षण का केन्द्र बना। इसके साथ ही गोमती नगर स्थित संगीत नाटक अकादमी उ.प्र., परिसर में स्थित कॉन्फ्रेंस हॉल में आयोजित जनजाति विरासत संरक्षण एवं संवर्धन विषयक संगोष्ठी में जानकारी विस्तार से दी गई।
समरीन के कुशल मंचीय संचालन में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम में असम, छत्तीसगढ़, पंजाब, राजस्थान से लेकर झारखंड तक के कलाकारों की एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां हुईं। कार्यक्रम के आरंभ में राजस्थान के आए तेजपाल दल ने कच्छी घोड़ी नृत्य का प्रभावी प्रदर्शन किया। इसके साथ ही उड़ीसा का घुड़का नृत्य वासुदेव के निर्देशन में किया गया। उमेश निर्मलकर के निर्देशन में हुए छत्तीसगढ़ के भुंजिया आदिवासी नृत्य पेश किया गया। भुंजिया लोग साल के पत्ते, तेंदू के पत्ते, महुआ के फूलों से श्रंगार करते हैं। सभी तरह के मांगलिक अवसरों पर यह नृत्य किया जाता है। इसमें पुरुष धनुष बाण और महिलाएं डलिया लेकर एक साथ घेरे में नृत्य करते हैं। असम के दल ने पारंपरिक बर्दोई शिखला नृत्य किया। इसमें महिलाओं ने लाल पीले रंग की वेशभूषा धारण की हुई थी। ड्रम की तरह खम, बांसुरी की भांति सिंफू, वायलिन की तरह के वाद्य सिरजा के साथ यह सुंदर नृत्य किया गया। महिला कलाकारों के हाथों में एक तरह के झुनझुने जैसा पारंपरिक वाद्य जाबखिन भी था। पंजाब का शम्मी नृत्य सतवीर कौर बग्गा के निर्देशन में किया गया। बताते चले कि यह नृत्य बाजीगर, राय, लोबना और सांसी जनजातियों की महिलाओं द्वारा किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह नृत्य मूल रूप से राजस्थान के राजकुमार से जुदा हुई मारवाड़ की राजकुमारी सम्मी द्वारा किया गया था। इस महिला नृत्य में प्रेमिका का उल्लास, प्रेम और श्रंगार जोश के साथ प्रस्तुत किया जाता है। झारखण्ड का खड़िया नृत्य अनीता डुगडुग के निर्देशन में किया गया। इसमें कमर में हाथ डालकर महिलाएं एक घेरे में ढोल के थाप के साथ आगे पीछे चलकर सुंदर संयोजन का प्रदर्शन करती हैं। इसमें कलाकारों के सिर पर मोर भी शोभायमान हो रहा था। सिक्किम का लेपचा नृत्य पिनसुख के निर्देशन में पेश किया गया। इस नृत्य की खासियत यह है कि यह संदेश देता है कि जिस तरह हम लोगों को आजादी पसंद है ठीक उसी तरह जंगल के पशु पक्षियों को भी स्वतंत्रता भाती है। इसलिए हमें एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए। संजू सेन ने लोक वाद्यों का मंचीय प्रदर्शन कर भारत की उन्नत परंपरा की सशक्त झांकी पेश की। इसमें उन्होंने लुप्त होते कई वाद्यों का प्रदर्शन प्रभावी ढंग से कर लोगों को उनके प्रति जागरूक किया गया। इसमें बासं का झरना, बांस का नगाड़ा, दफड़ा गुदुम, डमऊ, टिमकी, तुर्रा खंजेरी, नगाड़ा, मांदर-मांदरी, ढोल, करसाल, खिचकिरी, टिककी, तास शंख, भैर धनकुल, बांसुरी, मोहरी, अल्गोजवा जैसे वाद्यों को साक्षात सुनना कला रसिकों के लिए स्वर्णिम अवसर रहा।
इसके साथ ही मंगलवार 19 नवम्बर को उ.प्र. लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी और जनजाति विकास विभाग उ.प्र. की उप निदेशक डॉ. प्रियंका वर्मा के संयोजन में संगोष्ठी हुई। इसका विषय ह्लजनजाति विरासत संरक्षण एवं संवर्धनह्व था। इस आयोजन की अध्यक्षता उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की पूर्व अध्यक्ष, भातखंडे समविश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और वरिष्ठ कथक नृत्यांगना डॉ. पूर्णिमा पाण्डेय ने की। उन्होंने भारत सांस्कृतिक जनजागृति के माध्यम से ही दोबारा विश्व गुरु बन सकता है क्यों कि वास्तविक धनाढ्य वह होता है जिसकी अपनी थाती होती है और उसे संभालने वाले अपनी उन्नत संस्कृति पर गर्व करते हैं। समारोह के मुख्य अतिथि समाज कल्याण विभाग उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव डॉ. हरिओम ने बताया कि समय की मांग है कि भारतीय संस्कृति और पर्यावरण का संरक्षण करने वाले भारत के वास्तिवक दूतों और उनकी संस्कृति को पुस्तक, कॉफी टेबल बुक आदि के माध्यम से विश्व के समक्ष लाया जाए। इस दिशा में जल्द ही गोंड जनजाति पर एक कॉफी टेबल बुक प्रकाशित की जा रही है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वास्तव में लोक कलाएं विपरीत परिस्थितियों में जिजीविषा के लिए आवश्यकत प्राण वायु का संचार करती है। आकाशवाणी के प्रमुख कार्यक्रम अधिशासी अजीत चतुवेर्दी ने बताया कि देश की बोलियों को संरक्षण देने की बहुत आवश्यकता है। आकाशवाणी इस दिशा में महती कार्य कर रहा है। उन्होंने बताया कि 181 भाषाओं वाले आकाशवाणी में 120 चैनल बोलियों को समर्पित है वहीं 314 कुल चैनलों में डेढ़ सौ चैनल आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय हैं। यही नहीं पूर्वोत्तर के दूरदराज के क्षेत्रों में कम्यूनिटी रेडियो तक संचालित किये जा रहे हैं। इस संगोष्ठी के प्रतिभागी संजू सेन ने चिड़ियों की आवाज बांस से बने एक जल यंत्र के माध्यम से उत्पन्न कर प्रशंसा हासिल की। उन्होंने बताया कि उनके प्रयासों से बहेलियों में हिंसा के प्रति जनजागृति आयी है इसलिए अब वह चिड़ियों का शिकार कम कर रहे हैं। उमेश निर्मलकर ने बताया कि वह छत्तीसगढ़ के कगार भुंजिया आदिवासी नृत्यों को संरक्षण प्रदान कर रहे हैं। बेबी शाह ने बताया कि वह गोंडी गोटुल पाठशाला का संचालन कर रही हैं। इस अवसर पर अकादमी के निदेशक डॉ.शोभित कुमार नाहर और दूरदर्शन के कार्यक्रम प्रोड्यूसर ध्रुव चन्द्र ने भी अपने विचार रखे।
उ.प्र. लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी के अनुसार छठी और अंतिम शाम 20 नवम्बर को भी मंगलवार की संध्या में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का दोबारा आनंद लिया जा सकेगा। इस क्रम में 20 नवम्बर को जनजाति विकास में गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका विषयक संगोष्ठी भी होगी। समापन समारोह की मुख्य अतिथि यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल होंगी। यह कार्यक्रम दोपहर 3 बजे से होगा।