लखनऊ में 400 वर्ष पुरानी है बड़ा मंगल की परंपरा

28 मई को पड़ेगा जेठ माह का पहला बड़ा मंगल
लखनऊ। इस बार ज्येष्ठ का पहला बड़ा मंगल 28 मई को पड़ेगा। इस बार चार बड़े मंगल पड़ेंगे। पं. बिन्द्रेस दुबे ने बताया कि हनुमान जी भगवान शिव के अवतार हैं। इनकी पूजा तत्काल फल देने वाली है। इन्हें संकटमोचन, ग्राम देवता के रूप में भी पूजा जाता है। माता सीता ने हनुमान जी को अष्ट सिद्धि और नवनिधि की प्राप्ति का वरदान दिया था। भक्त व्रत रखकर रामसीता, लक्ष्मण और हनुमान जी का पूजन कर भजन कीर्तन करते हैं और रामचरित मानस के सुंदरकांड का पाठ करना बहुत लाभदायक होता है। लाल वस्त्र, लाल चंदन, लाल फूल, सिंदूर, चमेली के तेल का लेप, तुलसी पत्र, बेसन के लडडू और बूंदी से बजरंगबली शीघ्र प्रसन्न होते हैं।

कब से आरंभ हो रहा ज्येष्ठ मास
पंचांग के अनुसार, 22 मई की शाम को 6 बजकर 48 मिनट पर पूर्णिमा तिथि का आरंभ होगा और 23 मई को पूर्णिमा तिथि शाम में 7 बजकर 23 मिनट तक रहेगी। वहीं, ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष का आरंभ प्रतिपदा तिथि यानी 24 मई को है। इसी दिन से ज्येष्ठ मास का आरंभ होगा। ऐसे में 28 मई को पहला बड़ा मंगल आएगा।

पहला बड़ा मंगल 28 मई
दूसरा बड़ा मंगल 4 जून
तीसरा बड़ा मंगल 11 जून
चौथा बड़ा मंगल 18 जून

बड़ा मंगल का धार्मिक महत्व
देशभर में हनुमान भक्त ज्येष्ठ माह के बड़ा मंगल को बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं. विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में इसकी अलग ही रौनक देखने को मिलती है। क्योंकि बड़ा मंगल को पर्व के तौर पर मनाने की शुरूआत यहीं से हुई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेता युग में जब भगवान राम से हनुमान जी का मिलन हुआ तो उस दिन ज्येष्ठ माह का मंगलवार था और इसलिए हर साल इस माह आने वाले मंगलवार को बड़ा मंगलवार के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन हनुमान जी के बुढ़े स्वरूप का पूजन किया जाता है और इसलिए इसे बुढ़वा मंगलवार के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मंदिरों में भजन-कीर्तन और भंडारा होते हैं। हनुमान भक्त बजरंगबली को चोला चढ़ाते हैं और इस दिन सुंदरकांड का पाठ करना फलदायी माना जाता है।

कोई नहीं रहता भूखा :
बड़े मंगल पर सूरज के जागने से पहले ही शहर जाग जाता। दिन चढ़ने के साथ ही उत्साह उत्सव सी चहलपहल में बदल जाता। जेठ की आग बरसती दुपहरी में भंडारों की तैयारी होती। कैसा भी रास्ता हो, संकरा या चौड़ा, हर चार कदम पर भंडारा लगता। लखनऊ में जेठ के सभी मंगल को कोई भूखा प्यासा नहीं रहता, शायद ही किसी के घर पर खाना बनता हो। बने भी क्यों, जब भंडारे में ही हर तरह का स्वाद मिल जाता है।
सुबह घर से निकलने के बाद रात तक के खाने की चिंता नहीं करनी पड़ती। कोई वहीं खड़े होकर खाता, कोई गाड़ी में बैठकर तो कई लोग भंडारे का प्रसाद पैक कराकर घर ही ले जाते। कहने को तो प्रसाद, लेकिन पेट जब तक न भरे, खाते ही जाते। लखनऊ में बड़े मंगल की एक और खासियत रही है, इस दिन विशेषकर सरकारी दफ्तरों में काम न होता। आधे से ज्यादा स्टाफ भंडारे में प्रसाद बांटता ही मिलता। कुछ लोग तो परिवार को दफ्तर बुलाकर सपरिवार भंडारा वितरण करते।

बड़ा मंगल का इतिहास :
लखनऊ में बड़ा मंगल की परंपरा करीब 400 वर्ष पहले की है। अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर की स्थापना नवाब शुजाउद्दौला की बेगम और दिल्ली की मुगलिया खानदान की बेटी आलिया बेगम ने करवाई थी। 1792 से 1802 के बीच मंदिर का निर्माण हुआ था। कथानक है कि बेगम के सपने में बजरंगबली आए थे। बजरंगबली ने सपने में एक टीले में प्रतिमा होने का हवाला दिया था। बड़ी बेगम ने टीले को खोदवाया और बजरंगबली की प्रतिमा को हाथी पर रखकर मंगाया। गोमती पार प्रतिमा स्थापित करने की मंशा के विपरीत हाथी अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर से आगे नहीं बढ़ सका। उत्सव के साथ मंदिर की स्थापना की गई। मंदिर के गुंबद पर चांद का निशान एकता और भाईचारे की मिसाल पेश करता है। स्थापना काल के दो तीनवर्षों के बाद फैली महामारी को दूर करने के लिए बेगम ने बजरंगबली का गुणगान किया तो महामारी समाप्त हो गई। इस दौरान उत्सव का आयोजन किया गया। आयोजन का दिन मंगलवार था और ज्येष्ठ मास का महीना था। बस फिर उसी समय से शुरू हुआ बड़ा मंगल लगातार जारी है। जगहजगह भंडारे में हिंदू मुस्लिम दोनों ही शामिल होते हैं। बड़े मंगल की परंपरा अलीगंज के हनुमान मंदिर से ही शुरू हुई। चंद्रमास जेठ के पहले मंगल का मेला यहां की प्रधान परंपरा है। बड़े मंगल पर यहां मेला लगता आया है। अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह ने बड़ा मंगल की इस परंपरा को उत्साहपूर्वक निभाया और आगे बढ़ाया। बड़े मंगल पर अलीगंज हनुमान मंदिरों की परिक्रमा करने के लिए दूरदराज से लोग आते हैं। मनोरथ प्राप्ति के लिए भक्त लेटकर ही घर से मंदिर तक ही यात्रा तय करते हैं। पहले बड़े मंगल की परंपरा अलीगंज हनुमान मंदिरों से ही जुड़ी थी। धीरेधीरे बड़े मंगल की प्रतिष्ठा लखनऊ भर के अन्य हनुमान मंदिरों तक भी पहुंचने लगी। एक अन्य कथानक के अनुसार इत्र कारोबारी लाला जाटमल ने अलीगंज में हनुमान मंदिरों को बनवाया। अलीगंज हनुमान मंदिर का विग्रह स्वयंभू है और यह मूर्ति महंत खासाराम को एक स्वप्न निर्देश में जमीन से मिली। महंत खासाराम के अनुरोध पर ही इस मंदिर का निर्माण करवाया गया।

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