नाटक नेतागिरी ने मंच पर दिया महिला सशक्तीकरण का संदेश

एसएनए में 17 दिवसीय नाट्य महोत्सव के सातवें दिन तीन नाटकों का मंचन

लखनऊ। मंचकृति समिति संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश के सहयोग से आयोजित 17 दिवसीय नाट्य महोत्सव के सातवें दिन एसएनए के संत गाडगे प्रेक्षागृह में तीन नाटकों का मंचन किया गया जिसका निर्देशन संगम बहुगुणा व विकास श्रीवास्तव ने किया। नाट्य समारोह में सबसे पहले नाटक नेतागिरी का मंचन किया गया।
सारांश-कभी-कभी हमें घर में बैठे-बैठे लगता है कि हम कुछ ऐसा करें जिससे लोग हमें प्रशंसा की दृष्टि से देखें। बस इसी कड़ी में सरोज के मन में एक विचार आता है, क्यों ना वह अपनी नेतागिरी के विचारों से अपनी महरी को अवगत कराये और उसे बाध्य करें कि वह अपने पति से दवे नहीं, क्योंकि अब महिला सशक्तिकरण का युग है जब उसकी नौकरानी (महरी) ये ठान लेती है कि अब वह अपने पति से बिल्कुल नहीं दबेगी और अपने पति की गलत बातों का विरोध करेगी, तब देखिए होता है क्या। मंच-पर-अनीता शुक्ला, निशु सिंह ने अभिनय किया।

वापसी
सारांश – आज भी हमारे समाज में हिंदू और मुस्लिम के बीच विवाह एक विकट समस्या है, दोनों की तरफ से कन्या को ही झुकना पड़ता है, कमल कपूर अपने प्यार का त्याग करना पड़ता है। इसी को लेकर कमल कपूर जी ने हिंदू लड़की इंदू और मुस्लिम लड़के साहिल के प्यार की कहानी को विस्तार (लेखिका) दिया हालांकि दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे, परंतु समाज की निगाहें और समाज की व्यवस्था इसे स्वीकार करने में असमर्थ थी, इसी कारण अपने परिवार को बचाने के लिए इंदु अपने प्यार का बलिदान दे देती है। 22 सालों बाद जब वह दोनों एक रेस्टोरेंट मिलते हैं, तो बहुत समय गुजर जाने के बाद भी उनके अंतर मन में कहीं ना कहीं उस प्यार की टीस रह जाती है कि उनका प्यार आज भी अधूरा है, केवल समाज और लोगों के भय से। अपनी मयार्दा में रहकर भी दोनों आज भी एक दूसरे को उतना ही प्यार करते है जितना पहले करते थे, पर विवश है। प्यार सिर्फ साथ रहने का नाम नहीं, जुदा होकर, दूर रहकर भी निभाया जा सकता है। मंच-पर-संगम बहुगुणा, पुनीता अवस्थी, मिन्त्री दीक्षित।

दोष
सारांश – बालिका बबुई यानी वेदना अपने चाचा के विवाह में सम्मिलित होने अम्मा पापा दीदी और भड़या के साथ छोटी दादी के घर आयी है। उसे बारात के लौटने पर नयी चाची के साथ रहने और उनका ध्यान रखने को कहा जाता है और वह इस जिम्मेदारी को पा कर अपने को बहुत महत्वपूर्ण समझती है क्योंकि उस सामान्य रूढ़िवादी परिवार में इसके पहले उसे कोई नहीं पूछता था। काम को अच्छी तरह से करने की प्रशंसा भी पाती है। नयी चाची के मायके जाने पर दादी के अनुशासन के बिना शेष परिवार पिकनिक पर घूमने जाता है। वहां अंग्रेजों के जमाने का एक खंडहरनुमा बेगला था जहां बड़े भाइयों को खेलता देख कर चचेरे छोटे भाई के साथ वह भी खेलने चली जाती है। वहां से लौटने पर घर में ऐसा कुछ होता है कि मासूम बबुई अचानक बहुत कुछ समझने लगती है, अपना दोष भी। मंच-पर-डॉ० अनामिका श्रीवास्तव, उन्नति श्रीवास्तव, मिन्नी दीक्षित, अर्चना शुक्ला, ज्योति सिंह।

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