भाजपा सरकार में पहुंचाई सभी वर्गों के हितों पर चोट : अखिलेश

  • 2022 के विधानसभा चनावों में चुकानी पड़ेगी बड़ी कीमत

लखनऊ। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने रविवार को कहा कि मुख्यमंत्री को अपनी दिव्यशक्ति से हकीकत को फसाना बना देना खूब आता है। प्रदेश में रोजगार संकट है, नौजवान परेशान है। मुख्यमंत्री झूठे आंकड़ों से लोगों को भ्रमित करते हैं।

वास्तव में प्रदेश में मनरेगा, माटी कला सहित जिन-जिन योजनाओं से रोजगार के अवसर सृजित करने की लम्बी चौड़ी डींगे हांकी जा रही हैं वे सब खुद संकट ग्रस्त हैं। इनसे संबंधित दो जून रोटी के लिए भी तरस रहे हैं। खुद सरकारी वोकेशनल करियर सर्विस पोर्टल बताता है कि सितम्बर के मुकाबले अक्टूबर में ही रोजगार में 60 प्रतिशत गिरावट आयी है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार समाज के सभी वर्गों के हितों को चोट पहुंचा कर उसको रोजी-रोटी के लिए तरसा रही है। 2022 में भाजपा को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

अखिलेश ने कहा कि भाजपा राज में मनरेगा मजदूरों को भुगतान नहीं मिल रहा है। बदायूं में भुगतान वेबसाइट में खराबी आने के कारण उनके खातों में रुपये ट्रांसफर नहीं हुए। मनरेगा में काम करके चार पैसे मिलते तो घर का काम चलता पर सरकारी तंत्र ने तो उनकी दीवाली ही फीकी कर दी हैं इनमें प्रवासी मजदूरों की हालत सबसे ज्यादा दयनीय है।

सपा अध्यक्ष ने कहा कि जिला उद्योग केंद्रों में विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना तहत माटी कला के प्रशिक्षण प्राप्त लोगों को टूल किट न दिए जाने से वे अब तक कोई काम काज नहीं कर पा रहे हैं। कन्नौज में कुम्हारों के लिए सरकारी योजनाएं कागजों में ही सिमट कर रह गयी है। कुम्हारी कला प्रोत्साहन में जिन कुम्हारों को बिजली से चलने वाला चाक दिया गया है उसके बढ़ते बिल के मुकाबले उनके उत्पाद की बिक्री नहीं होती है। वे कर्जदार बनते जा रहे हैं। उन्हें परंपरागत तरीका ही अच्छा लगने लगा है।

अखिलेश ने कहा कि माटी कला में लगे लोगों के हित में तीन योजनाएं राज्य सरकार ने घोषित की। जिन्होंने बैंक से कर्ज लिया वे अब पछता रहे हैं। बहुतों ने यह काम छोड़ने का मन बना लिया है। भाजपा राज में शासन प्रशासन की कागजी कार्यवाहियों का यही नतीजा है कि सरकार विज्ञापन पर तो खूब खर्च कर देती है लेकिन अपनी योजनाओं को फाइलों में ही समेट लेती है।

सपा अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा राज में प्रदेश में नयी नौकरियां दिखी नहीं, पुरानी फैक्ट्रियां भी बंद हो गईं कर्मचारियों की लाकडाउन में ही छंटनी हो गयी थी। आज भी तमाम लोग काम पाने के लिए भटक रहे हैं। चौराहों पर श्रमिकों की सुबह लगने वाली भीड़ रोजगार के सरकारी दावो की पोल खोलती है।

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