लखनऊ। सृष्टि के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित कार्तिक मास की पूर्णिमा व गंगा स्नान का पर्व शुक्रवार (15 नवम्बर) को मनाया जाएगा। इसी दिन श्री गुरु साहिब गुरु नानक देव जी का प्रकाशपर्व और देव दीपावली भी मनायी जाएगी। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को सबसे पवित्र दिनों में से एक माना गया है। इस दिन व्रत, पूजन, दान और गंगा स्नान का अपना ही विशेष महत्व होता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर बन रहे शुभ योग
इस बार कार्तिक पूर्णिमा पर शुभ योगों का दुर्लभ संयोग बन रहा है। इसलिए यह परिवार में सुख शांति, धन और सौभाग्य में वृद्धि दायक रहेगा। ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल बताते हैं कि इस बार कार्तिक पूर्णिमा पर चंद्रमा मेष राशि में होकर मंगल के साथ राशि परिवर्तन योग बना रहा है। साथ ही मंगल और चंद्रमा के एक दूसरे से चतुर्थ दशम होने से धन योग भी बनेगा। चंद्रमा और गुरु के एक दूसरे से द्विद्वाश योग होने से सुनफा योग भी बनेगा। शनिदेव अपनी मूल त्रिकोण राशि में विराजमान हैं इसलिए शश राजयोग भी बन रहा है।
कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान से प्राप्त होता है अनंत पुण्य
कार्तिक पूर्णिमा को ही भगवान विष्णु अपने मत्स्य अवतार में प्रकट हुए थे। पंडित रवि प्रकाश मिश्रा ने बताया कि इसलिए हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है। इस दिन लोग व्रत, पूजन और दान करते हैं। वहीं कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान व पवित्र नदियों में स्नान- दान करने से अनंत पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
देव दीपावली पर पृथ्वी पर आते हैं देवता
कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को प्रदोष काल में देव दीपावली का पर्व भी मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। इसलिए देवताओं ने स्वर्ग में दीपक जलाए थे। ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवताओं का पृथ्वी का आगमन होता है। उनके स्वागत के लिए धरती पर दीप जलाये जाते हैं। पवित्र नदियों के तट को दीपकों से जगमगाया जाता है। वाराणसी में देव दीपावली का विशेष महत्व है।
दीपदान का है महत्व
इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा सुनी जाती है। इस दिन घर, मंदिर और नदी, तालाब में दीप दान कर देवदीपाावली की जाती है।अग्निपुराण में कहा गया है कि दीपदान से बढ़कर कोई व्रत नहीं है, इसका बहुत पुण्य मिलता है। यह भी मान्यता है कि भगवान शिव ने भी अपने पुत्र कार्तिकेय जी को दीपदान का माहात्म्य बताया है। इसलिए कार्तिक के पूरे महीने में दीपदान किया जाता है। इसका बहुत अधिक फल मिलता है। इस दिन अपनी श्रद्धा के अनुसार 11, 21, 51 दीपों का दान करना चाहिए।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूरे महीने किए गए स्नान समाप्त होते हैं। कार्तिक पूर्णिमा का पर्व नाता भगवान शिव से भी है। इस दिन भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर को हराया था। इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है।
जानें पूजा का मुहूर्त
स्नान और दान मुहूर्त: प्रात: 4:58 बजे से प्रात: 5:51 बजे तक
सत्यनारायण पूजा: सुबह 6:44 बजे से 10:45 बजे तक
देव दिवाली प्रदोष मुहूर्त: शाम 5:10 बजे से शाम 7:47 बजे तक
चंद्रोदय: शाम 4:51 बजे
लक्ष्मी पूजा: 15 नवंबर को रात 11:39 बजे से 16 नवंबर को रात 12:33 बजे तक
कार्तिक पूर्णिमा की पूजा-विधि
पवित्र नदी में स्नान करें या पानी में गंगाजल मिलकर स्नान करें। भगवान श्री हरि विष्णु और मां लक्ष्मी का जलाभिषेक करें। माता का पंचामृत सहित गंगाजल से अभिषेक करें। अब मां लक्ष्मी को लाल चंदन, लाल रंग के फूल और श्रृंगार का सामान अर्पित करें। मंदिर में घी का दीपक प्रज्वलित करें। संभव हो तो व्रत रखें और व्रत लेने का संकल्प करें। कार्तिक पूर्णिमा की व्रत कथा का पाठ करें। श्री लक्ष्मी सूक्तम का पाठ करें, पूरी श्रद्धा के साथ भगवान श्री हरि विष्णु और लक्ष्मी जी की आरती करें। माता को खीर का भोग लगाएं। चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य दें। अंत में क्षमा प्रार्थना करें।