उत्तराखंड महापरिषद, कुर्मांचल नगर, में नाटक का मंचन
लखनऊ। उतराखंड महापरिषद का रंगमंडल भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, नई दिल्ली के सहयोग से हिंदू नववर्ष एवं चैत्र नवरात्रि के अवसर पर मोहन सिंह बिष्ट सभागार, उत्तराखंड महापरिषद, कुर्मांचल नगर, लखनऊ में नाटक सरहद का मंचन किया गया। सागर सरहदी द्वारा लिखित नाटक की परिकल्पना एवं निर्देशन डॉ. पूर्णिमा पाण्डेय, सहायक निर्देशन -रोजी मिश्रा का था। यह नाटक बहुत ही मार्मिक एवं दिल को छूने वाला है, 1947 में भारत पाकिस्तान बंटवारे की त्रासदी और साथ ही रिफ्यूजी (शरणार्थियों) लोगों का एक अलग ही दर्द भरा चित्रण इस नाटक में था। यह पढ़ाया गया कि आजादी अहिंसा से मिली और बंटवारा शांति से हो गया। दोनों मुल्क के सियासतदानों ने एक दूसरे को कोसा, तोहमतें दी और अपने अपने मुल्को के मसीहा बन गये। लेकिन कहा जाता है कि इतिहास कितने गहरे दफन कर दीजिए मगर वो कुदरतन खुद सामने आ जाता है। नाटक में सरहद की जीवंत कहानी दिखाने की एक ईमानदार कोशिश की गयी।
सुप्रसिद्ध लेखक व नाटककार सागर सरहदी जी का यह नाटक वर्ष 1947 के भारत पाकिस्तान के बंटवारे पर शरणार्थियों की सामाजिक एवं मानसिक मनोदशा को दशार्ता है। सरहद पर एक शरणार्थी शिविर लगा है। जिसमें सारे शरणार्थी निर्वासित है और अपने प्रियजनों का, जो बिछड़ गए हैं उनका वहां इंतजार करते हैं। सरहद के दोनो तरफ दोनों मुल्क के सिपाही तैनात है, जो बंटवारे से पहले एक ही गांव में रहते थे और उन्हें मास्टर संतराम ने पढ़ाया था। वतन के लिए कुर्बान होने का हौसला तथा मां बहन की इज्जत करने की तालीम भी उन्होंने दी थी। कैप्टन भी मास्टर संतराम जी का शिष्य रहा है। इसलिए उनकी बहन जो इस बंटवारे में बिछड़ गयी, को ढूढ़ने में उनकी मदद करता है साथ ही मास्टर जी के दु:ख को बांटने की कोशिश भी करता है। इन्हीं हालातों का मारा एक किरदार गुमनाम भी है जो हर वक्त नशें में रहता है। उन खौफनाक मंजरो को वो कभी याद भी नहीं करना चाहता है। मास्टर जी सरहद पर रात दिन बस अपनी बहन का टकटकी लगाकर इंतजार करते है। एक दिन मास्टर जी की बहन लाड़ली को लेकर कैप्टन आता है। जो कि अर्धविक्षिप्त हो गयी है तथा मानसिक, शारीरिक यातनाओं को झेलकर बॉर्डर पर पाक से लौटती है। उसके दिमाग में यातनाओं का इतना गहरा सदमा लगा है कि वह अपने भाई से भी दूर भागती है। अन्तत: दोनों, सिपाहियो की गोलियों का शिकार हो जाते है। तब गुमनाम चीख चीख कर लोगों को बतलाता है कि देश और सरहद का बंटवारा करने वाले राजनेता मसीहा नहीं है। बल्कि मसीहा वो शरणार्थी है जिनके अपनों की लाशों पर चन्द सियासतदानों ने भारत देश को हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में बांट कर अपने अपने सरहदों की लकीरें खड़ी कर दी। यही पर नाटक का समापन होता है।