प्रभु श्रीराम का आदर्श जीवन देख दर्शक हुए मंत्रमुग्ध

श्रीराम सहस्त्रनाम का भव्य नृत्य-नाट्य संगीतमय मंचन

लखनऊ। अंतर्राष्ट्रीय रामायण एवं वैदिक शोध संस्थान व भातखण्डे संस्कृति महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में 22 दिवसीय रामलीला कार्यशाला में प्रशिक्षण के साथ तैयार संगीतमय रामायण नाट्य प्रस्तुति श्रीराम सहस्त्रनाम का मंचन कलामंडपम में किया गया। भातखण्डे राज्य विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. मांडवी सिंह कुलसचिव डॉ सृष्टि धवन, आईआरवीआरआई के निदेशक संतोष कुमार शर्मा के मार्गनिर्देशन में संगीतमय रामायण प्रस्तुति की परिकल्पना लेखन संगीत व निर्देशन वरिष्ठ नौटंकी व नाट्य निर्देशक अमित दीक्षित रामजी द्वारा की गई। इसमें प्रभु श्रीराम के जन्म से लेकर धनुष यज्ञ प्रसंग तक की लीला का मंचन किया गया।
इस संगीतमय नृत्य-नाट्य प्रस्तुति में प्रभु राम के आदर्श व चरित्र का पूर्ण चित्रण है। पहली बार रामायण के प्रसंग में मंच पर 2024 में नारदजी का आना और सूत्रधार के रूप में समाज को प्रभु श्रीराम की लीला व उनके सुकुत्यों का वर्णन कर उनके मर्यादित व्यक्तित्व व उत्कृष्ट भावों से समाज को अभिप्रेरित करना प्रस्तुति में नवीनता दशार्ता है। कथा रावण के महायज्ञ में दसशीश के समर्पण से आरंभ होती है। शिव जी से वरदान के उपरांत वो और भी अधिक बलशाली और अत्याचारी हो जाता है। उसके इन कुकृत्यों के परिणाम स्वरूप प्रभु को अवतरित होना पड़ता है। प्रभु अपनी बाललीला करते हुए बड़े होते हैं और जब गुरु विश्वामित्र की यज्ञ रक्षार्थ जनकपुरी की ओर जाते हैं तभी उनकी मां जानकी से पुष्प वाटिका में भेंट है, फिर राजा जनक के धनुष के प्रण को पूर्णकर सीताजी को जीवन संगिनी बनाते हैं। चंचल चपल अनुज लक्ष्मण का स्वभाव हठी है साथ ही सीता जी का कोमल हृदय इस कहानी को गति प्रदान करता है। कहानी में हनुमान जी का आगमन इस प्रस्तुति को पूर्ण करता है। राम-सीता का विवाह इस कहानी में श्रृंगार रस का संचार करता है। श्रीराम जन्म से लेकर धनुष यज्ञ व सीता स्वयंवर तक का यह प्रसंग कथक के रंगों व उ.प्र. के लोक नाट्य नौटंकी विधा पर केन्द्रित है। नाट्य प्रस्तुति में यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि मानवता को ही धर्म मानने वाले प्रतीक पुरुष वीतरागी श्रीराम का जीवन कठिन अवश्य था पर उसमे समाज के प्रत्येक व्यक्ति के कल्याण हेतु मूलमंत्र था। धनुषयज्ञ तक की सम्पूर्ण लीला को सविस्तार वर्णित किया गया है, जिसमें दशार्या गया है कि कैसे प्रभु श्रीराम त्रेतायुग में वो सारे संदेश दे चुके थे जो कलयुग के कल्याणार्थ थे। प्रभु अपनी लीला रचते हुए समाज को गंगा सफाई अभियान, स्वच्छता अभियान, माता पिता की सेवा, किन्नर समाज का सम्मान, राजा का प्रजा के प्रति उदार स्वभाव, बड़े छोटों का आदर जैसे अनेकानेक संदेश देते हैं।

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