वरिष्ठ संवाददाता लखनऊ। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत विकसित राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-फाउंडेशनल स्टेज की तर्ज पर उप्र राज्य की राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा-फाउंडेशनल स्टेज विकसित किये जाने के लिए एससीईआरटी में बुधवार से तीन दिवसीय कार्यशाला की शुरुआत स्कूल शिक्षा महानिदेशक विजय किरण आनन्द ने किया। कार्यशाला में देशभर के प्रख्यात शिक्षाविदों ने राज्य की पाठ्यचर्या रूपरेखा बनाने वाली टीम का मार्गदर्शन किया। स्कूल शिक्षा महानिदेशक ने कहा कि राज्य की पाठ्यचर्या की रूपरेखा ऐसी होगी, जिससे शिक्षक कक्षा-कक्ष में उत्कृष्ट पद्धतियों के संवाहक बने तथा बाल-केन्द्रित गतिविधि एवं आनंददायक शिक्षण अधिगम प्रक्रिया संचालित कर सकें।
उन्होंने सभी का उत्साहवर्धन करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में हमें राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा- फाउंडेशनल स्टेज का विकास करना तथा मिलकर निपुण प्रदेश के सपने को साकार करना है। कार्यशाला में देश के शिक्षाविद तथा लर्निंग एण्ड लैंग्वेज फाउण्डेशन के निदेशक डॉ धीर झिंगरन ने तीन से आठ वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए विकसित की जाने वाली राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा के उद्देश्य, लक्ष्य, दक्षताओं और सीखने के प्रतिफल पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा-फाउण्डेशनल स्टेज में खेल का विशेष महत्व है। गतिविधि भी खेल आधारित हो, यह ध्यान में रखना है। उन्होंने भाषा तथा गणित विषय के सीखने की पद्धतियों पर विस्तार से बोलते हुए कहा कि आठ वर्ष तक के बच्चे मौखिक भाषा के माध्यम से बहुत तेजी से सीखते हैं। उन्होंने पंचादि-पांच चरणों वाली सीखने की प्रक्रिया की जानकारी देते हुए आकलन के तरीकों, बहुभाषी शिक्षण, विषयवस्तु के चयन व छात्र-शिक्षक आत्मीय सम्बन्धी पर अपने विचार रखें।
कार्यशाला में शिक्षा मंत्रालय की उप सचिव व शिक्षाविद डॉ रितु चन्द्रा ने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षक, पाठ्यक्रम एवं सीखने के वातावरण को मुख्य घटक बताते हुए कहा कि पाठ्यचर्या की रूपरेखा में इनको समुचित स्थान मिलना चाहिए। भारत सरकार द्वारा पूर्व में जारी सभी राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा की जानकारी देते हुए प्रारम्भिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा तथा शिक्षण शास्त्र पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यशाला में लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रो अमिता वाजपेयी ने राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा में विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों से जुड़े प्रावधानों पर अपनी बात रखी। उन्होंने विद्यालय में समावेशी वातावरण के महत्व पर विशेष बल देते हुए कहा कि जेंडर, जाति, संप्रदाय, रंगरूप, सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी बच्चों पर समान ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।